मानव-वन्यजीव संघर्ष : मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण एवं बचने के उपाय
प्रश्न: हाल के वर्षों में भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। इसके पीछे उत्तरदायी कारणों का वर्णन करते हुए, उन तरीकों का उल्लेख कीजिए जिनके द्वारा इन्हें टाला जा सकता है।
दृष्टिकोण:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष की व्याख्या कीजिए तथा कुछ आंकड़ों के साथ इनकी पुष्टि कीजिए।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारणों एवं इससे बचने के उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।
- आगे की राह का सुझाव देते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर:
वर्ल्ड वाइड फंड फ़ॉर नेचर द्वारा मानव-वन्यजीव संघर्ष को इस रूप में परिभाषित किया गया है: “मानव और वन्यजीवों के मध्य किसी भी प्रकार की अंतर्किया, जिसके परिणामस्वरूप मानव के सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक जीवन पर, वन्यजीव आबादी के संरक्षण पर अथवा पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है”। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 2013 से वर्ष 2017 के मध्य बाघों, तेंदुओं, भालुओं और हाथियों को शामिल करते हुए मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों में 1608 से अधिक मनुष्यों की मृत्यु हुई है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पर्यावास का विखंडन: विकास और जनसंख्या वृद्धि के कारण वृहत अधिवासों का विखंडन और वन क्षेत्रों के आकार में संकुचन के परिणामस्वरूप वन्य जीवों के प्राकृतिक पर्यावास की क्षति हुई है।
- शिकार किए जाने वाले जीवों की आबादी में कमी: शाकाहारी जीवों के अवैध शिकार से कम होते हुए शिकार आधार के कारण मांसाहारी जंतु शिकार की खोज में वनों से बाहर निकल रहे हैं।
- पशु चराई: नीलगाय जैसे वन्य जंतु खाद्य चारे की खोज में कृषि क्षेत्रों में विचरण करते हैं, जिससे फसलों को क्षति पहुँचती है, परिणामस्वरूप किसानों की आजीविका प्रभावित होती है।
- सड़क परिवहन और ट्रेन से होने वाली दुर्घटनाएं: वनीय जिलों में सड़कों और रेलवे ट्रैक जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाओं की बढ़ती संख्या जंतुओं के स्वतंत्र विचरण को प्रतिबंधित करती है, जिससे मानव-पशु संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
- भूमि उपयोग में परिवर्तन: कृषि और बागवानी भूमि के विकास हेतु मानव द्वारा संरक्षित वन खंडों (patches) के वृहत क्षेत्रों पर अतिक्रमण किया जाता है।
- इलेक्ट्रोक्यूशन (विद्युत् आघात से मृत्यु होना): कुछ जंतुओं की मृत्यु कम ऊंचाई वाले तारों अथवा विद्युत् के बाड़ की उपस्थिति के कारण होती है।
- पर्यटन: उचित दिशा-निर्देशों के बिना पारिस्थितिक रूप से असंवेदनशील पर्यटन जंतु अधिवासों को अव्यवस्थित करता है जिससे मानव-पशु संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- बायो-फ्रेंसिंग बैरियर: इलेक्ट्रिक फेंसिंग के बजाय लेमनग्रास, एगेव, रामबांस और मिर्च जैसे बायो-फेंसिंग बैरियरों का उपयोग करना, जो कृषि क्षेत्रों और वन्य गांवों में वन्यजीवों के हमले को रोकने के लिए एक किफायती एवं पर्यावरण अनुकूल तरीके हैं।
- हरित आवरण में वृद्धि: वनाच्छादन को बढ़ाने हेतु खुले, निम्नीकृत वनों, प्राचीन वृक्षारोपणों, जल स्रोतों के निकट की भूमि का उपयोग करना, जो वन्यजीवों और स्थानीय लोगों की आजीविका सृजन दोनों के लिए लाभप्रद है।
- वन क्षेत्रों में खाद्य पदार्थों और जल की पर्याप्तता सुनिश्चित करना: यह शिकार या जल के लिए मानव बस्तियों में वन्य जंतुओं के प्रवेश में कमी लाने हेतु आवश्यक है, जैसा कि छत्तीसगढ़ में सफलतापूर्वक किया गया है। वन्यजीव गलियारे: अंडरपास (उपमार्गो), ओवरपास (परिमार्गो), चेक गेट और पुलों की संख्या में वृद्धि करना और उनका रखरखाव सुनिश्चित करना, साथ ही उन्हें अधिसूचित संरक्षित क्षेत्र घोषित करना।
- तकनीकी नवाचार: शेरों, बाघों, हाथियों, ओलिव रिडले कछुओं आदि की गतिविधियों की निगरानी करने हेतु बायो अकॉउस्टिक्स (bioacoustics), रेडियो कॉलर, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम और सैटेलाइट अपलिंक सुविधाओं पर आधारित उपकरणों का उपयोग करना।
- क्षमता निर्माण कार्यक्रम: मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्याओं का समाधान करने हेतु, पुलिस अधिकारियों और वन रेंजरों को उचित दिशानिर्देशों के साथ प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है।
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: पारंपरिक ज्ञान के उपयोग, अनुसंधान और अकादमिक संस्थानों की सहभागिता तथा मानव वन्यजीव संघर्ष परिस्थितियों का प्रबंधन करने में विशेषज्ञता रखने वाले प्रमुख-स्वैच्छिक संगठनों को प्रोत्साहित करना।
इसके अतिरिक्त, प्रतिकारी हत्याओं को कम करने हेतु वन्यजीवों के हमले के पीड़ितों के लिए प्रतिपूरक सहायता त्वरित रूप से प्रदान की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, इन संघर्षों को कम करने और वन्यजीवों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के साथसाथ मानव जीवन की सुनिश्चितता हेतु मनुष्यों को संवेदनशील बनाने के लिए जागरुकता कार्यक्रमों को आयोजित किया जाना चाहिए।