राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण : चुनावी वित्त-पोषण में पारदर्शिता संबंधी कई चुनौतियाँ

प्रश्न: हाल के वर्षों में राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण के संबंध में विधायी परिवर्तनों के बावजूद, चुनावी वित्त-पोषण में पारदर्शिता संबंधी कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। चर्चा कीजिए। क्या राज्य द्वारा चुनावों का वित्त-पोषण इन चुनौतियों को दूर करने में सहायता कर सकता है।(250 words)

दृष्टिकोण

  • भारत में चुनावी वित्त-पोषण के संदर्भ में हालिया वर्षों में हुए कुछ विधायी परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। 
  • भारत में चुनावी वित्त-पोषण से संबंधित चुनौतियों को रेखांकित कीजिए। 
  • ‘राज्य द्वारा चुनावों के वित्त-पोषण’ की अवधारणा की व्याख्या इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क देते हुए कीजिए। 
  • उपर्युक्त तर्कों के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

भारत में चुनावी वित्त-पोषण प्रक्रिया में सुधार करने तथा इसमें अधिक पारदर्शिता का समावेश करने हेतु विभिन्न विधायी परिवर्तन किए गए हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन निम्नलिखित हैं:

  • इलेक्टोरल ट्रस्ट्स को कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 में समाविष्ट करते हुए वर्ष 2013 में वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। एक इलेक्टोरल ट्रस्ट (चुनावी न्यास) के माध्यम से राजनीतिक अंशदान करने वाली कंपनियां ऐसे किसी भी राजनीतिक दल के द्वेष से बच सकती हैं, जिसे उन्होंने अनुदान नहीं दिया था।
  • राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अनाम नकद अनुदानों की सीमा को 20,000 रुपए से कम करके 2000 रुपए तक करने हेतु आयकर अधिनियम में संशोधन किया गया है।
  • कंपनी अधिनियम में भी संशोधन किया गया है। इस संशोधन के तहत उस उच्चतम सीमा को हटा दिया गया जिसके अंतर्गत कॉर्पोरेट संस्थाएं राजनीतिक अनुदान में अपने विगत तीन वित्तीय वर्षों के औसत निवल लाभ के केवल 7.5% का ही योगदान कर सकती थीं।
  • इसके अतिरिक्त, कंपनी के लाभ एवं हानि संबंधी विवरणों में लाभार्थी राजनीतिक दलों के नामों के प्रकटीकरण की पूर्ववर्ती आवश्यकता को भी इस संशोधन के साथ समाप्त कर दिया गया है।
  • वित्त अधिनियम, 2017 कॉर्पोरेट संस्थाओं सहित किसी भी व्यक्ति को चुनावी बॉण्ड्स के माध्यम से राजनीतिक दलों को अनुदान देने की अनुमति प्रदान करता है। ज्ञातव्य है कि यह उपाय “वैध धन (white money) के साथ लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का संचालन करने” हेतु किया गया है, क्योंकि यह अनुदानकर्ताओं की पहचान सुनिश्चित करने हेतु चेक और डिजिटल भुगतान पर केंद्रित है।
  • इन परिवर्तनों के बावजूद अभी भी चुनावी वित्त-पोषण में पारदर्शिता से संबंधित अनेक चुनौतियां विद्यमान हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्स (ADR) के अनुसार, वर्ष 2017-18 हेतु भारत के राष्ट्रीय दलों की संपूर्ण आय का आधे से भी अधिक भाग अज्ञात स्रोतों से प्राप्त हुआ।

इन चुनौतियों में से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • माना जा रहा है कि सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदम स्वयं भी पारदर्शिता में कमी लाते हैं। उदाहरणार्थ:
  • चुनावी बॉण्ड जैसी योजनाएं अनामिकता को और अधिक प्रोत्साहित करती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, अनाम नकद अनुदानों हेतु सीमाएं नकद के माध्यम से अनाम रूप से एकत्रित की जा सकने वाली धनराशि पर एक उच्चतम सीमा के बिना अप्रभावी हैं।
  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 2013 में राजनीतिक दलों को RTI मानदंडों के तहत शामिल करने संबंधी केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) की अनुशंसा के बावजूद राजनीतिक दल RTI के दायरे से बाहर हैं।
  • हालांकि, प्रत्येक प्रत्याशी हेतु चुनावी व्यय पर सीमाएं आरोपित की गयी हैं, परन्तु राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले व्यय पर किसी भी प्रकार की उच्चतम सीमा आरोपित नहीं की गई है।

इन चुनौतियों के निराकरण हेतु कुछ समितियों एवं आयोगों, जैसे- इन्द्रजीत गुप्ता समिति, विधि आयोग, द्वितीय प्रशासनिक आयोग आदि ने राज्य द्वारा चुनावों के वित्त-पोषित किए जाने का समर्थन किया है। यह निम्नलिखित रीति से चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता को बढ़ावा देने में सहायता कर सकता है:

  • यह तर्क दिया गया है कि राज्य द्वारा चुनावों का वित्त-पोषण, राजनीतिक दलों को न्यूनतम धन के साथ एक समान प्रतिस्पर्धा स्तर प्रदान करेगा। यह राजनीतिक दलों को अवैध साधनों से निधियों को प्राप्त करने से हतोत्साहित करेगा तथा इस प्रकार व्यवसायियों अपराधियों-राजनीतिज्ञों के गठजोड़ को कमजोर करेगा।
  • यह व्यक्तियों में लोक सेवा हेतु चुनाव लड़ने की भावना को प्रोत्साहित करेगा जबकि वित्तीय संसाधनों को अर्जित करने की भावना को हतोत्साहित करेगा।

हालाँकि, राज्य द्वारा चुनावों के वित्त-पोषण के संदर्भ में कुछ चिंताएं भी विद्यमान हैं, यथा:

  •  राज्य वित्त-पोषण संबंधी व्यवस्था को तब तक लागू नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली और वित्तीयन को पारदर्शी न बना लिया जाए। यह तर्क इसलिए दिया गया है क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि राज्यों द्वारा चुनावों का वित्त-पोषण राजनीतिक दलों को अघोषित अतिरिक्त निधियों का उपयोग करने से प्रतिबंधित करेगा।
  • निधियों के वितरण में भी स्पष्टता का अभाव है। उदाहरणार्थ, यदि राजनीतिक दलों को पूर्ववर्ती चुनावों में प्राप्त मतों के आधार पर निधि प्रदान की जाती है तो विजेता दल अन्यों की अपेक्षा सदैव अनुचित लाभ की स्थिति में रहेगा।
  • इसके अतिरिक्त, यह तर्क भी दिया गया है कि इससे अयोग्य प्रत्याशियों पर करदाताओं के धन का दुरुपयोग होगा।

चुनावी वित्त-पोषण को वास्तव में पारदर्शी बनाने हेतु चुनावों के समय केवल प्रत्याशी स्तर पर ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों के स्तर पर भी सुधार किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि राजनीतिक दल संपूर्ण वर्ष किसी न किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, चाहे चुनाव हो अथवा न हो। इस प्रकार, राजनीतिक दलों को RTI के दायरे के अंतर्गत लाने संबंधी केन्द्रीय सूचना आयोग की अनुशंसा, राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु एक प्रारंभिक बिंदु हो सकता है।

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