जैव ईंधन : आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक संधारणीयता
प्रश्न: विगत दशक से ही जैव ईंधन के उपयोग पर बल दिए जाने के बावजूद, उनकी आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक संधारणीयता वाद -विवाद का मुद्दा है। टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- जैव ईंधन का संक्षेप में वर्णन कीजिए। इसके संबंध में उठाए गए कदमों का उल्लेख करते हुए इस पर विचार कीजिए।
- इसके महत्व को सूचीबद्ध कीजिए।
- आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक उप-शीर्षकों के अंतर्गत जैव ईंधन से सम्बंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
- सुझावों के साथ उत्तर समाप्त किजिए।
उत्तर
जैव ईंधन, कृषि और अवायवीय पाचन जैसी जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से उत्पादित ईंधन होते हैं। जैव ईंधन के कुछ उदाहरण हैं- एथेनॉल, जेट्रोफा, ग्रीन डीजल, शैवाल आदि। ये पर्यावरण की दृष्टि से परंपरागत ईंधन की तुलना में बेहतर हैं। यह देखते हुए सरकार द्वारा वर्ष 2009 में जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति अपनाने के बाद से इनके उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जैव ईंधन का महत्व
- ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में जैव ईंधन रणनीतिक लाभ प्रदान करते हैं।
- बढ़ती परिवहन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जैव ईंधन पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के पूरक हैं।
- जैव ईंधन लागत प्रभावी एवं कम प्रदूषणकारी होते हैं तथा ये ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 65 प्रतिशत तक कम कर देते हैं। जैव ईंधन विभिन्न स्रोतों से निर्मित किए जाते हैं जैसे कि खाद, फसलों के अवशेष और इस उद्देश्य हेतु विशेष रूप से उगाये गये पौधे। इस प्रकार इनके लिए संसाधन जुटाना और इनका उत्पादन करना आसान होता है।
- जैव ईंधन फसलें फसल विविधता को बढ़ाती हैं और कृषि से होने वाली आय में वृद्धि करती हैं।
- जैव ईंधन से सम्बंधित उभरते हुए उद्योगों में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं।
हालांकि, कुछ चिंताओं के कारण जैव ईंधन का उपयोग संधारणीयता के संदर्भ में वाद-विवाद का विषय रहा है, जैसे कि:
आर्थिक चिंताएँ:
- तेल की कीमतों में कमी वैश्विक स्तर पर तेल को प्रतिस्पर्धी और जैव ईंधन को कम आकर्षक बना रही हैं।
- परमाणु ऊर्जा और शेल गैस जैसे ऊर्जा के स्रोत बेहतर आर्थिक विकल्प प्रस्तुत करते हैं।
सामाजिक चिंताएँ
- “फूड बनाम फ्यूल” विवाद अर्थात् जैब ईंधन की कृषि के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि, भारत जैसे देशों में खाद्य सुरक्षा और गरीबी कम करने के लक्ष्य को प्रभावित करती है। इससे जानवरों के लिए चारे की खेती भी प्रभावित हो सकती है।
पर्यावरणीय चिंताएँ
- उत्पादन के दौरान कार्बन उत्सर्जन का स्तर: बड़े पैमाने के जैव ईंधन उद्योग कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि करते हैं और जल को भी अल्प स्तर पर प्रदूषित करते हैं। अतः उत्पादन के दक्ष साधनों के बिना कुल कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया जा सकेगा।
- जैव विविधता पर प्रभाव: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जैव ईंधन के उत्पादन के विस्तार के परिणामस्वरूप उष्णकटिबंधीय वनों व आर्द्रभूमियों की क्षति हुई है और समशीतोष्ण क्षेत्रों में जैव ईंधन उत्पादन ने ‘सेट असाइड भूमियों (set-aside lands)’ पर अतिक्रमण किया है। जैव ईंधन फीडस्टॉक हेतु वृक्षारोपण प्राकृतिक पारिस्थितिक प्रणालियों की तुलना में जैव-विविधता का बहुत ही निम्न स्तर प्रदर्शित करते हैं। साथ ही ये मृदा अपरदन तथा जलमार्गों के प्रदूषण का कारण भी बन सकते हैं।
उपर्युक्त लाभों के साथ ही जैव ईंधन से सम्बंधित चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकारें ऐसी जैव ईंधन उत्पादन पद्धतियों को बढ़ावा दें जो न तो खाद्य और रेशा उत्पादन में बाधा डालें और न ही जल या पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करें। साथ ही साथ ये मृदा उर्वरता में वृद्धि भी करें। फीडस्टॉक उगाने के लिए भूमि का चयन, जैव ईंधन द्वारा संधारणीय समाधान प्रदान करने की क्षमता का महत्वपूर्ण घटक है।
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