भारत में सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम

प्रश्न: जल के उत्तरोत्तर दुर्लभ संसाधन बनते जाने के कारण भारत में सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों का व्यापक पैमाने पर अंगीकरण निर्णायक सिद्ध हो सकता है। विश्लेषण कीजिए। साथ ही, भारत में सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को भी सूचीबद्ध कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में जल संसाधन की उपलब्धता और उपयोग का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
    चर्चा कीजिए कि किस प्रकार सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को अपनाना निर्णायक सिद्ध हो सकता है।
  • सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

भारत में विश्व की 17% जनसंख्या निवास करती है लेकिन यहाँ विश्व के अलवणीय जल संसाधनों का केवल 4% ही पाया जाता है। भारत में जल की माँग 2025 तक लगभग 833 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) और 2050 तक लगभग 899 BCM बढ़ना अनुमानित है। वर्तमान में, जल की माँग 712 BCM है।

जल की उपलब्धता कृषि उपज का एक महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है। विशेषकर हरित क्रांति और उसके बाद से खराब सिंचाई प्रणाली और मानसून की अनिश्चितता के कारण भारत की लगभग 75% कृषि भूजल पर निर्भर है। हालांकि, भू सतह पर इसका प्रयोग अकुशल तरीके से किया गया है।

इस संदर्भ में, यह तर्क दिया जाता है कि सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों का व्यापक पैमाने पर अंगीकरण भारतीय कृषि के लिए निम्न प्रकार से निर्णायक सिद्ध हो सकता है:

  • ड्रिप (टपक) और स्प्रिंकलर (छिड़काव) जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकें सिंचाई के लक्षित दृष्टिकोण से जल उपयोग की दक्षता में वृद्धि करती हैं, इस प्रकार फ़सल उत्पादन पर आरोपित बाध्यता को समाप्त करती हैं और व्यापक पैमाने पर सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध कराती हैं।
  • यह शुष्क क्षेत्रों में कृषि की सुविधा प्रदान करेगा, इस प्रकार देश के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य व्याप्त कृषि उत्पादन असमानता में सुधार होगा।
  • अत्यधिक सिंचाई के कारण मृदा लवणता में वृद्धि जैसी समस्याओं का समाधान कर भूमि सुधार में सहायक होगा।
  • स्प्रिंकलर सिंचाई के उपयोग के कारण खेत में एलेलोपैथी प्रभाव वाले हानिकारक खरपतवार नहीं उगते हैं। 
    यह जल के उपयोग पर अधिक नियंत्रण प्रदान करती है अर्थात, अपवाह हानि काफी कम हो जाती है क्योंकि जल का उपयोग अंत:स्यंदन दर (infiltration rate) से कम या उसके बराबर ही किया जाता है।
  • सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली से उपार्जित समग्र लाभ किसानों की आय बढ़ाने के रूप में परिलक्षित होते हैं।

सूक्ष्म सिंचाई ने उत्पादकता बढ़ाने के संदर्भ में किसानों को लाभ प्रदान किया है। उदाहरण के लिए, फसल अंतराल, जल के न्यायसंगत उपयोग और अन्य आगतों आदि के कारण फलों और सब्जियों की औसत उत्पादकता में क्रमशः लगभग 42.3% और 52.8% की वृद्धि हुई है।

हालांकि, भारत को व्यापक पैमाने पर सूक्ष्म सिंचाई को अपनाने में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है जिनमें उच्च पूंजी और रखरखाव लागत, जोत के आकार में कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में अनियत विद्युत कटौती और सिंचाई के कारण मृदा में लवणों का जमाव आदि है। कृषि विकास को गति प्रदान करने के लिए इन समस्याओं को शीघ्र संबोधित करने की आवश्यकता है। भारत में सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाए गए हैं। इनमें से कुछ निम्नानुसार हैं:

  • सूक्ष्म सिंचाई कार्यक्रम पर राष्ट्रीय मिशन को शीघ्र अपनाना, जिसे अब प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ घटक के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है। इसके तहत किसानों को सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को अपनाने हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जाती है।
  • PMKSY के तहत नाबार्ड के अंतर्गत एक समर्पित सूक्ष्म सिंचाई निधि स्थापित की गई है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकी ज्ञान को साझा करने के उद्देश्य से इज़राइल जैसे देशों के साथ साझेदारी की जा रही है।

इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने हेतु प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और संवादात्मक बैठकों का आयोजन, प्रदर्शनियों, किसान मेलों तथा लघु फिल्मों के माध्यम के द्वारा प्रचार जैसे कई सराहनीय कदम उठाए गए हैं।

अंततः, यदि सूक्ष्म सिंचाई के सफल कार्यान्वयन को प्राप्त करने में बाधाओं और सीमाएं को समाप्त कर लिया जाए तो सूक्ष्म सिंचाई निश्चित रूप से भारतीय कृषि में व्याप्त जल अभाव की समस्या का निराकरण करने में निर्णायक सिद्ध होगी।

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