‘गोल्डन फाइबर’ : भारत में ‘गोल्डन फाइबर’ उद्योग के वितरण पैटर्न में आए परिवर्तन
प्रश्न: विगत आधी सदी के दौरान भारत में ‘गोल्डन फाइबर’ उद्योग के वितरण पैटर्न में आए परिवर्तन का आकलन कीजिए। साथ ही, इसके ह्रास के कारणों को बताते हुए, इसे पुनर्जीवित करने हेतु सरकार द्वारा किए गए उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।
दृष्टिकोण
- गोल्डन फाइबर फसल का संक्षेप में परिचय दीजिए एवं उल्लेख कीजिए कि यह इस नाम से क्यों जाना जाता है।
- भारत में विगत आधी सदी के दौरान जूट उद्योग के वितरण में हुए स्थानांतरण की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए एवं इस स्थानांतरण के कारण बताइए।
- देश में जूट उद्योग के ह्रास के कारणों को सूचीबद्ध कीजिए। इस ह्रास को रोकने हेतु सरकार द्वारा की गयी पहलों का उल्लेख कीजिए। कुछ सुझावों एवं उपायों के साथ अपना उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
गोल्डन फाइबर जूट ‘गोल्डन फाइबर’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसका कारण न केवल इसकी रेशमी सुनहरी चमक है, बल्कि नकदी फसल होने के कारण इस उद्योग का लाभदायक आर्थिक उद्यम के रूप में विख्यात होना भी है। कपास के पश्चात जूट सभी प्रकार के वस्त्र संबंधी रेशों में सबसे सस्ता एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे (जियो-टेक्सटाइल से लेकर परिधान, कालीन, सजावटी वस्तुओं, गृह सामग्री एवं साजो-सामान आदि में) विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता है एवं इसमें कोमलता, मजबूती, लम्बाई, चमक और एकरूपता जैसी अन्य विशेषताएं पाई जाती हैं।
जूट उद्योग का वितरण पैटर्न
1947 में विभाजन के पश्चात जूट उत्पादक क्षेत्र बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में चले गए जबकि अधिकांश जूट मिलें भारत में रह गयीं। द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ही जूट के स्थान पर सिंथेटिक फाइबर का प्रचलन बढ़ने लगा था। विगत आधी सदी के दौरान, भारतीय जूट उद्योग को अनेक उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा है। भारत अब कच्चे जूट का सबसे बड़ा निर्यातक नहीं रह गया है, भारत का यह स्थान अब बांग्लादेश ने ले लिया है, जबकि यह अब भी विश्व का सबसे बड़ा जूट उत्पादक और जूट उत्पादों का उपभोक्ता बना हुआ है।
वर्तमान में जूट उद्योग पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश राज्यों में वितरित है।
जूट उद्योग का स्थानांतरण
विगत कुछ समय में जूट उद्योग के वितरण में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं:
- पश्चिम बंगाल अपना औद्योगिक महत्व खो चुका है और कई उद्योगों की स्थिति या तो संकटपूर्ण हैं या वे बंद हो चुके हैं। हुगली की पारंपरिक औद्योगिक बेल्ट में अतिसंकुलता (ओवरक्राउडिंग) के कारण, उद्योग उत्तरी मैदानों में गंगा नदी के किनारे स्थानांतरित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त, कोलकाता अब महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय पत्तन नहीं रह गया है।
- गोदावरी नदी डेल्टा की ओर इस उद्योग का उल्लेखनीय स्थानातरण हुआ है। इसका कारण इस क्षेत्र में कागज उद्योग का विकसित होना है, जिसमें कच्चे माल के रूप में जूट और सबई घास के मिश्रण का उपयोग किया जाता है।
- चीनी, गेहूं और चावल के पैकिंग बैगों जैसे पारंपरिक उपयोगों के अतिरिक्त शहरी क्षेत्रों से जूट की मांग ने इस उद्योग को बाजार के निकट स्थानांतरित कर दिया है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं आन्ध्र प्रदेश जैसे स्थानों पर भी परिस्थितियां जूट उद्योग की प्राकृतिक आवश्यकताओं के अनुकूल हैं। यहां सस्ता श्रम भी उपलब्ध है।
जूट उद्योग के ह्रास के कारण
स्थानांतरण के अतिरिक्त भारतीय जूट उद्योग का ह्रास भी हुआ है। इसके निम्नलिखित कारण हैं:
A. आपूर्ति पक्ष संबंधी बाधाएँ:
- घरेलू कच्चे माल की कमी ,क्योंकि प्रमुख उत्पादक क्षेत्र अब बांग्लादेश में अवस्थित हैं।
- बाजार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों को उन्नत बनाने में मिल मालिकों की अक्षमताएं।
- परंपरागत जूट उत्पादक क्षेत्र में सशक्त ट्रेड यूनियन आंदोलन के कारण, निवेशकों ने अपनी पूँजी अन्य क्षेत्रों और यहाँ तक कि अन्य उद्यमों में स्थानांतरित कर दी है।
- फसलों के अनियमित उत्पादन के कारण जूट की कीमतों में अस्थिरता।
- मशीनों के उन्नयन की कमी के कारण उत्पादन हेतु उच्च निवेश (इनपुट) लागत।
B. मांग पक्ष संबंधी बाधाएँ:
- यूरोप और उत्तरी अमेरिका के विकसित देशों की सिंथेटिक पैकिंग सामग्री से कड़ी प्रतिस्पर्धा।
- नये विकल्पों का उद्भव एवं व्यापक पैमाने पर कन्टेनर का उपयोग तथा प्लास्टिक्स का विकास।
सरकार द्वारा किये गये उपाय
- जूट उद्योग का संरक्षण करने के उद्देश्य से जूट पैकेजिंग सामग्री (पैकिंग जिंसों में अनिवार्य उपयोग) अधिनियम, 1987।
- अत्याधुनिक विनिर्माण हेतु राष्ट्रीय जूट नीति (2005)।
- इस उद्योग के सभी आयामों में अनुसंधान और विकास हेतु जूट प्रौद्योगिकी मिशन (JTM) लांच किया गया था।
- राष्ट्रीय जूट बोर्ड अधिनियम, 2008 के तहत जूट उद्योग के सर्वांगीण विकास हेतु कदम उठाने के लिए राष्ट्रीय जूट बोर्ड को स्वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।
- जूट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कच्चे जूट की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम होने पर MSP प्रक्रिया के माध्यम से जूट किसानों को समर्थन प्रदान करता है।
आगे की राह
जूट उद्योग अत्यधिक श्रम गहन और पर्यावरण अनुकूल है, इसलिए उत्तरोत्तर पर्यावरण के प्रति जागरूक होते विश्व में इसके पुनरुद्धार की आवश्यकता है।
भारत को वर्तमान कच्चे जूट की खरीद और निर्यात नीतियों पर पुनर्विचार कर, उत्पादन मशीनों के नवीकरण और आधुनिकीकरण, संबंधित उत्पादों के विविधीकरण, गुणवत्ता में सुधार और नए उत्पादों के विकास द्वारा इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
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