स्वतंत्रता-पश्चात् पूर्वोत्तर भारत के एकीकरण की प्रक्रिया
प्रश्न: उन चुनौतियों पर चर्चा कीजिए जो स्वतंत्रता-पश्चात् पूर्वोत्तर भारत के एकीकरण की प्रक्रिया के लिए विशिष्ट थीं।
दृष्टिकोण
- स्वतंत्रता-पश्चात् भारत के एकीकरण के संबंध में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- चर्चा कीजिए कि किस प्रकार पूर्वोत्तर भारत में इस प्रक्रिया के दौरान सामने आ रही चुनौतियाँ भारत के शेष हिस्सों से भिन्न थीं।
- जहां आवश्यक हो, उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
विभाजन-पश्चात् भारत के एकीकरण और एक प्रशासनिक व्यवस्था के तहत 565 से अधिक रियासतों को एकीकृत करना तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष एक महत्वपूर्ण कार्य था। अनुनय और दबाव के कूटनीतिक कौशल के माध्यम से, सरदार पटेल इन रियासतों को एकीकृत करने में सफल रहे। इस प्रक्रिया के दौरान चुनौतियों की विशिष्ट प्रकृति के कारण भिन्न-भिन्न मामलों में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण अपनाया गया था।
पूर्वोत्तर भारत के एकीकरण की प्रक्रिया में निम्नलिखित चुनौतियाँ विद्यमान थीं:
- भौगोलिक तथा नृजातीय विविधता: भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र भारत की मुख्य भूमि से अलग-थलग रहा है तथा साथ ही, नृजातीयता, भाषा, सामाजिक संगठन और आर्थिक विकास के स्तरों की व्यापक विविधता ने एकीकरण की प्रक्रिया में एक बाधा के रूप में कार्य किया।
- पारंपरिक समाजों की बहुलता: इसने एकल सुसंगत राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के कार्य को कठिन बना दिया। सांस्कृतिक अलगाव: विभिन्न जनजातियों की विशिष्ट पहचान और इन नृजातीय समूहों की उप-राष्ट्रीय आकांक्षाओं ने स्वतंत्रता-पश्चात सत्ता प्राप्त करने हेतु परस्पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया। उदाहरण के लिए, पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों के मध्य व्याप्त वैमनस्य की भावना।
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से अलगाव: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्यधारा से अलगाव की स्थिति के कारण पूर्वोत्तर के मूल निवासियों में राष्ट्रीयता और एकता की भावना का अभाव था। पृथक्करण और शोषण की नीति: अंग्रेजों द्वारा इस नीति का अनुसरण किया गया, जिसने इस क्षेत्र के लोगों को अपने मूल क्षेत्र से ही बाहर कर दिया। ।
- उग्रवादी समूहों द्वारा निभाई गई भूमिका: उग्रवादी समूहों ने भारतीय संघ में इन क्षेत्रों के विलय का विरोध किया था। उदाहरण के लिए, असम में उग्रवादी वर्गों ने असम के अतीत के गौरव और स्वतंत्रता का गुणगान किया तथा भारत से अलग होने का समर्थन किया। अन्य देशों का प्रभाव: मिज़ो नेता बर्मा में शामिल होना चाहते थे, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि वहां वे राजनीतिक मामलों में अधिक भागीदारी प्राप्त कर सकते हैं।
- पहचान का मुद्दा: व्यापक पैमाने पर प्रवासन के कारण पहचान खोने का संकट इस क्षेत्र के लोगों को अलग-थलग बना देता है। उदाहरण के लिए, पूर्वी बंगाल से बड़ी संख्या में लोगों के अंतःप्रवेश ने असम के लोगों के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया।
भारतीय राज्य द्वारा वार्ताओं, वादों, प्रलोभनों और यहां तक कि बल प्रयोग जैसे एकीकरण के विभिन्न तरीकों को अपनाया गया था। भारत सरकार की ओर से इस क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास और सांस्कृतिक विशिष्टता को समझने में विफलता ने मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड और मिजोरम के एकीकरण की प्रक्रिया में “लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अवरुद्ध (democratic deficiency)” किया और इस प्रकार राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया अभी भी जारी है।
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