SHGs का एक संक्षिप्त परिचय : SHGs के समक्ष व्याप्त बाधाओं और सुधारात्मक उपायों के सुझाव
प्रश्न: स्वयं सहायता समूह (SHGs) ग्रामीण विकास के वाहक हैं तथा ये हाशिए पर मौजूद समूहों के उत्थान में सहायता करते हैं। स्पष्ट कीजिए। साथ ही, SHGS द्वारा सामना की जा रही बाधाओं का उल्लेख कीजिए। इन बाधाओं को कैसे दूर किया जा सकता है।
दृष्टिकोण
- SHGs का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- ग्रामीण विकास में और सीमांत समूहों के उत्थान में उनकी भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- SHGs के समक्ष व्याप्त बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
- सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिए।
उत्तर
स्वयं सहायता समूह (SHG) निर्धन ग्रामीणों के छोटे स्वैच्छिक संघ हैं जिनमें से प्रत्येक के 10-20 सदस्य होते हैं। वे परस्पर सहायता द्वारा अपनी सामूहिक समस्याओं के समाधान के प्रयोजन से जुड़ते हैं।
ग्रामीण विकास और सीमांत समूहों के उत्थान में SHG की भूमिका:
- उद्यमों को प्रोत्साहन: SHG ऋण सहायता, उत्पाद विकास, विपणन आदि के माध्यम से गरीबों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करते हैं।
- ऋण तक पहुंच: SHG अपनी बचत को संगृहीत करते हैं और जिन्हें आवश्यकता होती है, उन सदस्यों को कम ब्याज दरों पर पुन: उधार दे देते हैं। यह महिलाओं, जनजातियों, अल्पसंख्यकों आदि को उनके संस्थागत ऋण के आभाव में अनौपचारिक ऋणग्रस्तता से संरक्षित करता है।
- विशेषकर ग्रामीण महिलाओं की आय में वृद्धि: SHG ने भारत में लगभग 46 मिलियन महिलाओं की आय और उनके जीवन स्तर में वृद्धि की है।
- ग्राम पंचायतों में दबाव समूह: वे दहेज, शराब जैसे मुद्दों पर दबाव समूह के रूप में कार्य करते हैं, जिनसे मुख्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं।
- क्षमता निर्माण: SHG प्रशिक्षण और कार्यशालाओं के आयोजन के माध्यम से कौशल निर्माण द्वारा मानव संसाधनों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सामूहिक आवाज़: SHG सीमांत समूहों को सामूहिक सौदेबाजी के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।
- दिव्यांगों के सम्मलित होने को प्रोत्साहन: दिव्यांगों के SHG स्वास्थ्य देखभाल, पुनर्वास, शिक्षा, सूक्ष्म ऋण और प्रचार अभियान जैसी व्यापक गतिविधियों में सम्मलित हो रहे हैं।
SHG के सामने आने वाली कुछ बाधाओं में शामिल हैं:
स्वभाविक रूप से SHG अनौपचारिक संगठन है। क्योंकि वे अधिकांश रूप से गरीब और सुभेद्य लोगों से निर्मित होते हैं। उनके पास ऋण प्रदान करने हेतु अधिक राशि नहीं होती है। इस संबंध में प्रायः उनको सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं (जैसे उन्हें उचित ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए बैंकों को प्रेरित करना आदि) द्वारा समर्थन प्रदान किया जाता है। इसके बावजूद भी उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे:
- अपर्याप्त वित्त सहायता: सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में दीन दयाल अंत्योदय योजना -राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAYNRLM) और शहरी क्षेत्रों में DAY-NULM के माध्यम से SHGs की सहायता करती है। यह सहायता इन SHGs को व्यवहार्य बनाने के लिए दी जाती है और यह तब तक जारी रहती है जब तक उनकी आय में एक सराहनीय वृद्धि नहीं हो जाती और वे निर्धनता से बाहर नहीं आ जाते। किन्तु संसाधनों की कमी के कारण यह निधियन अपर्याप्त है।
- ऋण प्राप्त करने में कठिनाई: SHGs की ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन करना कठिन होता है इसलिए बैंक उन्हें ऋण देने हेतु आगे नहीं आते।
- अपर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाएँ: SHGs के सदस्यों को उत्पादन तकनीकों, प्रबन्धन क्षमता आदि जैसे क्षेत्रों में दिया जाने वाला प्रशिक्षण बड़ी औद्योगिक इकाइयों के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए अपर्याप्त होता है।
- विपणन सम्बन्धी समस्याएं: SHGs को अपने उत्पादों के विपणन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- पर्याप्त आर्डर का अभाव, एक व्यवहार्य ब्रांड-नेम का न होना आदि।
- आंतरिक विसंगतियां: कई अध्ययनों में SHGs के कामकाज में अभिशासन, पारदर्शिता, जवाबदेही, अनियमितताओं आदि से सम्बंधित मुद्दों का उल्लेख किया गया है।
- साक्षरता का निम्न स्तर और सदस्यों में कौशल का अभाव: बड़ी संख्या में SHGs के सदस्यों का साक्षरता स्तर अत्यंत निम्न है और उन्होंने कोई कौशल प्रशिक्षण भी प्राप्त नहीं किया है।
इन बाधाओं को दूर करने के उपाय:
- SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से जोड़ने के लिए NABARD की एक पहल है।
- बैकिंग नेटवर्क में सुधार और गैर-सरकारी संगठनों को सम्मलित कर, पूर्वोत्तर तथा उत्तर भारत के बहिष्कृत क्षेत्रों में SHG के गठन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- प्रसंस्करण और विपणन संगठनों के साथ फॉर्वर्ड लिंकेज और प्रौद्योगिकी के साथ बैकवर्ड लिंकेज के अर्थ में SHG की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु एक समेकित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- मात्रात्मक और गुणात्मक जानकारी एकत्र करने हेतु प्रत्येक राज्य में एक अलग SHG निगरानी प्रकोष्ठ स्थपित किया जाना चाहिए।
- SHG के लिए नियमित प्रशिक्षण और क्षमता-निर्माण सत्रों का आयोजन किया जाना चाहिए।
स्व-नियोजित महिला संघ (SEWA), कुदुम्बश्री आदि जैसे SHGs यह सिद्ध करते हैं कि SHGS सामाजिक लामबंदी के एक प्रभावी उपकरण हैं। उनकी चिंताओं पर ध्यान देना आवश्यक है ताकि वे भारत में सशक्तिकरण और विकास के इंजन के रूप में कार्य कर सकें।
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