भारत में निर्धनता के आकलन के लिए अपनाई गई पद्धतियां

प्रश्न: भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् अपनाई गई गरीबी का अनुमान लगाने की पद्धतियों का सविस्तार वर्णन कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भारत में निर्धनता के आकलन (गरीबी का अनुमान लगाने) का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  • भारत में स्वतंत्रता के पश्चात निर्धनता के आकलन के लिए अपनाई गई पद्धतियों पर चर्चा कीजिए।
  • संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

भारत में निर्धनता का आकलन (गरीबी का अनुमान लगाना) निर्धनता रेखा की अवधारणा द्वारा निर्देशित है, निर्धनता रेखा आधारभूत जीवन-यापन के मानकों को पूरा करने के लिए आवश्यक न्यूनतम स्तर की आय को इंगित करती है। जीवन-यापन के न्यूनतम स्वीकार्य मानकों के संदर्भ में यह अवधारणा समय और स्थान के साथ परिवर्तित होती रहती है। स्वतंत्रता के पश्चात इन परिवर्तित अवधारणाओं के अनुरूप निर्धनता के आकलन के लिए एक तंत्र के संचालन हेतु विभिन्न प्रयास किए गए हैं।

  • भारत में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम आधिकारिक ग्रामीण और शहरी निर्धनता रेखाओं के निर्धारण की शुरुआत वर्ष 1979 में वाई के अलघ समिति द्वारा की गई तथा प्रथम बार आधिकारिक निर्धनता आकलन का आरंभ हुआ। इसने पोषण संबंधी आवश्यकताओं (ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों के लिए 2100 कैलोरी) के आधार पर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण किया।
  • तत्पश्चात वर्ष 1993 में लकड़ावाला समिति द्वारा निर्धनता के आकलन के लिए कैलोरी के उपभोग आधारित पद्धति को जारी रखते हुए राज्य विशिष्ट निर्धनता रेखा की अनुशंसा की गयी।
  • वर्ष 2009 में योजना आयोग द्वारा तेंदुलकर समिति को नियुक्त किया गया जिसने निर्धनता के आकलन की पद्धति को और अधिक परिष्कृत किया तथा निम्नलिखित प्रमुख परिवर्तनों की अनुशंसा की:
  • कैलोरी उपभोग-आधारित निर्धनता आकलन की पद्धति का त्याग करना;
  • भारत में समग्र ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के लिए एकसमान निर्धनता रेखा बास्केट को अपनाना;
  • स्थानिक और अस्थायी मुद्दों का मूल्य समायोजन के माध्यम से निपटान करने के लिए मूल्य समायोजन प्रक्रिया में परिवर्तन;
  • निर्धनता का अनुमान करते समय स्वास्थ्य और शिक्षा पर निजी व्यय का समावेशन।
  • एकसमान संदर्भ अवधि (Uniform Reference Period: URP) आधारित अनुमानों के बजाय मिश्रित संदर्भ अवधि (Mixed Reference Period: MRP) आधारित अनुमानों का उपयोग करना।
  • निम्न निर्धनता रेखा के संदर्भ में निरंतर हो रही आलोचना को देखते हुए निर्धनता रेखा के आकलन हेतु पद्धति के पुनः निर्धारण के लिए वर्ष 2012 में रंगराजन समिति की नियुक्ति की गई।
  • समिति द्वारा यह अनुशंसा की गई कि उपभोग बास्केट में एक खाद्य घटक होना चाहिए जो कुछ न्यूनतम पोषण आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करता हो तथा साथ ही इसमें व्यवहार द्वारा तय होने वाले गैर-खाद्य व्यय के एक अवशिष्ट समूह के अतिरिक्त आवश्यक गैर-खाद्य पदार्थ समूहों (शिक्षा, वस्त्र, वाहन और आवास किराए) पर उपभोग व्यय को भी शामिल किया जाए।

लाभार्थियों की पहचान करने, निर्धनता की अवधारणा की प्रकृति के विकास, नीति निर्माण इत्यादि में निर्धनता के मापन के अनेक महत्वपूर्ण निहितार्थ होते हैं। लाभार्थियों की पहचान करने हेतु सामाजिक, आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना (Socio Economic and Caste Census: SECC) का उपयोग इसका स्पष्ट उदाहरण है। अतः निर्धनता हेतु एक उपयुक्त माप की आवश्यकता है। इसके पश्चात् ही सभी नागरिकों को एक न्यूनतम जीवन-यापन मानक प्रदान करने के संदर्भ में अर्थव्यवस्था की क्षमता का मूल्यांकन संभव होगा।

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