शस्य प्रतिरूप की अवधारणा : भू-जलवायविक, सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक कारक

प्रश्न: किसी क्षेत्र का शस्य प्रतिरूप भू-जलवायविक, सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित होता है। प्रासंगिक उदाहरणों के साथ पुष्टि कीजिए।

दृष्टिकोण

  • शस्य प्रतिरूप की अवधारणा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार शस्य प्रतिरूप निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता है:
  • भू-जलवायविक
  • सामाजिक-सांस्कृतिक
    आर्थिक
  • ऐतिहासिक
  • राजनीतिक
  • संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

शस्य प्रतिरूप (cropping pattern) किसी इकाई क्षेत्र में किसी विशेष अवधि के दौरान विभिन्न फसलों के तहत क्षेत्र के अनुपात को संदर्भित करता है। अन्य शब्दों में, यह किसी दिए गए क्षेत्र में बुवाई की गई भूमि तथा परती छोड़ी गई भूमि का वार्षिक अनुक्रम और स्थानिक व्यवस्था है।

किसी क्षेत्र के शस्य प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं:

  • भू-जलवायविक कारक: इसमें मृदा की प्रकृति, जलवायु, वर्षा आदि जैसे कारक शामिल हैं। पश्चिम बंगाल जैसे पर्याप्त वर्षा और जल भराव वाले क्षेत्रों में सर्वाधिक उपयुक्त फसल चावल की है। राजस्थान और गुजरात जैसे अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्वार और बाजरे की कृषि की जाती है। सिंधु-गंगा के मैदान की सु-अपवाहित उपजाऊ मृदा गेहूं की कृषि हेतु उपयुक्त है। दक्कन और मालवा पठार की काली मृदा कपास की कृषि हेतु सर्वाधिक उपयुक्त है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक कारक: इसमें धर्म, रीति-रिवाजों, परंपराओं आदि से संबंधित कारक शामिल होते हैं। उदाहरणार्थ: सिख कृषक समुदाय द्वारा तंबाकू कृषि की लाभप्रदता तथा अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के बावजूद पंजाब में तम्बाकू की कृषि का नहीं की जाती है। इसी प्रकार छोटी भू-जोत वाले गरीब किसान नकदी फसलों के स्थान पर अनाज और अन्य खाद्यान्न फसलों की कृषि को वरीयता देते हैं।
  • आर्थिक कारक: कृषि वस्तुओं के मूल्य, किसानों की आय, भू जोतों का आकार, कृषि आदानों एवं विपणन सुविधाओं की उपलब्धता, भू-स्वामित्व की प्रकृति, वित्त की उपलब्धता आदि भी शस्य प्रतिरूप का निर्धारण करते हैं। गन्ना और गेहूं जैसी फसलों के लिए MSP/FRP जैसे मूल्य प्रोत्साहन किसानों को इन फसलों की कृषि करने हेतु प्रेरित कर सकते हैं।
  • ऐतिहासिक कारक: चाय, कॉफी, तंबाकू और काजू जैसी फसलों को ब्रिटिश एवं पुर्तगालियों द्वारा भारत लाया गया था। ब्रिटिश द्वारा पंजाब, नर्मदा घाटी और आंध्र प्रदेश में व्यापक स्तर पर नहर नेटवर्क का निर्माण किया गया था। इसने इन क्षेत्रों में कृषिगत सुधारों का समर्थन किया तथा साथ ही शस्य प्रतिरूप को प्रभावित किया।
  • राजनीतिक कारक: खाद्य सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ने देश भर में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की है। समाजवादी देशों में वहां की सरकारों द्वारा यहां तक की फसल संयोजन और उचित फसल चक्रण का भी निर्धारण किया जाता है।

उपर्युक्त कारकों के अतिरक्त, भारत जैसे देशों में शस्य प्रतिरूप को अवसंरचनात्मक और तकनीकी सहायता तथा भोजन, चारा, ईंधन एवं फाइबर इत्यादि घरेलू आवश्यकताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है।

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