भारत में पशुधन क्षेत्रक की वर्तमान स्थिति : भारत में पशुधन क्षेत्रक का संधारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिए कुछ रणनीतियां

प्रश्न: एक वृद्धिशील पशुधन क्षेत्रक निम्न आय वाले परिवारों के लिए अपनी आय में वृद्धि करने और गरीबी से बाहर निकलने हेतु शुभ संकेत है। चर्चा कीजिए। इसके अतिरिक्त, भारत में पशुधन क्षेत्रक का संधारणीय विकास सुनिश्चित करने हेतु कुछ रणनीतियों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में पशुधन क्षेत्रक की वर्तमान स्थिति को रेखांकित करते हुए परिचय प्रस्तुत कीजिए। 
  • संक्षिप्त में चर्चा कीजिए कि किस प्रकार एक वृद्धिशील पशुधन क्षेत्रक निम्न आय वाले परिवारों के लिए अपनी आय में वृद्धि करने और निर्धनता को कम करने में सहायता कर सकता है।
  • भारत में पशुधन क्षेत्रक का संधारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिए कुछ रणनीतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं। पशुधन क्षेत्रक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कुल 4.11% और कुल कृषि GDP में 25.6% का योगदान करता है। वास्तव में, पशुधन सबसे तीव्र वृद्धि करने वाला क्षेत्रक है। कृषि क्षेत्रक के कुल उत्पादन में इसका योगदान वर्ष 198182 में 15 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2010-11 में 26 प्रतिशत हो गया। ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 73 प्रतिशत परिवारों के पास पशुधन के किसी न किसी रूप का स्वामित्व है, जिसमें लगभग तीन-चौथाई लघु और सीमांत किसान हैं।

वृद्धिशील पशुधन क्षेत्रक निम्न आय वाले परिवारों के लिए अपनी आय में वृद्धि करने और निर्धनता को कम करने में सहायक हो सकता है:

  • आय का अतिरिक्त स्रोत: किसान और भूमिहीन श्रमिक पशुपालन से अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में, पशुधन क्षेत्रक परिवार की आय का मुख्य स्रोत है। ये पशु गतिशील बैंक और परिसंपत्ति के रूप में कार्य करते हैं और इनके स्वामियों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • रोजगार: यह उन लोगों को भी मंद कृषि मौसम में रोजगार प्रदान करता है जो अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं।
  • पोषण सुरक्षा: पशुधन न केवल पोषण सुरक्षा में सुधार करने की दिशा में योगदान करता है बल्कि ग्रामीण परिवारों द्वारा भोजन के लिए किये जाने वाले अतिरिक्त व्यय को प्रतिबंधित कर ग्रामीण निर्धनता को भी कम करता है।
  • समान वितरण: ग्रामीण निर्धनों के पास फसल उत्पादन के सीमित अवसर उपलब्ध हैं। इसकी तुलना में, पशुधन संपदा अधिक समान रूप से वितरित होती है तथा पशु खाद्य उत्पादों की बढ़ती मांग निर्धनों के लिए पशुधन उत्पादन बढ़ाने और विविधता के माध्यम से निर्धनता में कमी के महत्वपूर्ण अवसर उत्पन्न करती है।
  • सामाजिक सुरक्षा: पशु, समाज में स्वामियों की स्थिति (स्टेटस) के रूप में उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं, जो उन्हें निर्धनता की ओर जाने से भी बचाता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्यता: चूंकि पशुधन वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन के लिए कम प्रवण है, इसलिए इसे वर्षा-आधारित कृषि की तुलना में अधिक विश्वसनीय माना जा सकता है। पशुधन उत्पादन और विपणन खाद्य आपूर्ति को स्थिर करने तथा व्यक्तियों और समुदायों को आर्थिक आघातों एवं प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध एक बफर प्रदान करने में सहायता कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, पशुधन क्षेत्र का प्रतिफल त्वरित है। यदि कोई क्षति होती है तो शीघ्र ही उसकी पुनर्घाप्ति भी हो जाती है और यहां तक कि इसे कम आय वाले परिवार भी वहन कर सकते हैं। हालाँकि इसकी क्षमता का अभी तक पूर्णत: उपयोग नहीं किया गया है। भारत की पशुधन उत्पादकता वैश्विक औसत से 20-60 प्रतिशत कम है जिसका कारण आधुनिक पशुधन सेवाओं तक पहुंच में कमी, निम्नस्तरीय विपणन समर्थन, ऋण सहायता का अभाव इत्यादि जैसे कारक हैं।

भारत में पशुधन क्षेत्रक के संधारणीय विकास को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • पशु आहार एवं चारे की कमी तथा पशुओं के स्वास्थ्य और प्रजनन सेवाओं के वितरण में सुधार।
  • प्रौद्योगिकी विकास का एक प्रमुख चालक होगा तथा उपज बढ़ाने और उपज-बचत-प्रौद्योगिकियों को विकसित करने एवं प्रसारित करने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
  • पशुधन क्षेत्रक को पुनः सक्रिय करने के लिए सार्वजनिक व्यय में वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है।
  • सहकारी संस्थाओं, उत्पादकों के संघों और अनुबंध कृषि जैसे संस्थानों के माध्यम से उत्पादन और बाजारों के मध्य लिंकेज को सुदृढ़ करना।
  • ऋण और बीमा के संदर्भ में संस्थागत समर्थन कम है और इसे सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को भारतीय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान परिषद, जैसे उपायों तथा ऑपरेशन फ्लड, कामधेनु योजना आदि जैसी योजनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, सरकारों एवं उद्योग जगत को घरेलू और वैश्विक बाजार में एक गुणवत्ता-संचालित प्रतिस्पर्धा के लिए उत्पादकों को तैयार करना चाहिए। पशुधन उत्पादन में वृद्धि किस सीमा तक त्वरित की जा सकती है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रौद्योगिकी, संस्थाएं और नीतियां किस प्रकार पशुधन क्षेत्रक के समक्ष विद्यमान अवरोधों का समाधान करती हैं।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.