वायु प्रदूषण के स्रोत : घरों के भीतर वायु गुणवत्ता में सुधार लाने में सामने आने वाली चुनौतियां
प्रश्न: भारतीय घरों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, वायु की गुणवत्ता कई कारकों से प्राणघातक है। इस संदर्भ में, घरों के भीतर वायु गुणवत्ता में सुधार लाने में सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए उनसे निपटने हेतु अपनाए जा सकने वाले उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।
दृष्टिकोण
- घरों के भीतर के वायु प्रदूषण के स्रोतों का उल्लेख करते हुए इसे परिभाषित कीजिए।
- विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में घरों के भीतर वायु प्रदूषण के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- घरों के भीतर के वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
- घरों के भीतर की वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- इस समस्या को रोकने/कम करने के उपायों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
हानिकारक रसायनों और अन्य पदार्थों से घरों के भीतर की वायु की गुणवत्ता में गिरावट को ‘घरों के भीतर का वायु प्रदूषण’ कहा जाता है। इसके प्रमुख स्रोत हैं: दहन, निर्माण सामग्री और बायो-एरोसोल आदि । विकासशील देशों में घरों के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव, बाह्य वायु प्रदूषण की तुलना में बहुत अधिक होते हैं।
भारत में घरों के भीतर वायु प्रदूषण के कारण:
- विकासशील देशों में, अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या अभी भी अस्वच्छ ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करती है, जैसे लकड़ी,गोबर, कोयला आदि।
- बायोमास ईंधनों के अपूर्ण दहन के कारण निलंबित कणिकीय पदार्थ (Suspended Particulate Matter-SPM), कार्बन मोनोऑक्साइड, पॉली एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन आदि का उत्सर्जन होता है।
- खराब वेंटिलेशन से परिसर के अंदर हानिकारक प्रदूषकों का संचय होता है।
- सर्दियों के मौसम में घरों के भीतर की वायु की गुणवत्ता अधिक चिंता का विषय बन जाती है ,क्योंकि निम्न तापमान और स्थिर वायु के कारण धरातल के निकट प्रदूषकों का संकेन्द्रण हो जाता है और लोगों को घरों में लंबी अवधि तक खराब वेंटिलेशन के साथ रहना पड़ता है।
- घरों के भीतर तंबाकू युक्त धूम्रपान और निष्क्रिय धूम्रपान (passive smoking)।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची सड़कों और मिट्टी से निर्मित फर्श के कारण वायु में धूल कणों की अत्यधिक मात्रा होती है जो वायु प्रदूषण में वृद्धि करती है।
घरों के भीतर वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी कई प्रतिकूल प्रभाव होते हैं, जैसे कि निमोनिया, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीस आदि।
घरों के भीतर वायु की गुणवत्ता में सुधार करने के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ:
- परंपरागत चूल्हों के लिए स्थानीय उपलब्धता के आधार पर दहन हेतु ईंधनों के अनेक विकल्प उपलब्ध होते हैं। यह ऐसे कार्यक्रमों के निष्पादन को कठिन बना देता है जिनका उद्देश्य लोगों को अधिक पर्यावरण-अनुकूल ईंधन की ओर ले जाना होता है।
- जागरूकता की कमी, डिजाइन संबंधी जटिलताओं, रख-रखाव की उच्च लागत व कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव के कारण गैर-पारंपरिक चूल्हे अपनाने की दर निम्न है।
- नीति निर्माताओं को भोजन पकाने के पारंपरिक तरीकों के निरंतर उपयोग के लिए उत्तरदायी प्रासंगिक और मनोसामाजिक कारकों की बेहतर समझ का अभाव।
- घरों के भीतर प्रदूषकों के जोखिम स्तर का आकलन करने के लिए शोध का अभाव।
- केवल बाह्य वायु प्रदूषण पर अधिक बल देना।
- स्वच्छ घरेलू ऊर्जा प्रणालियों के प्रति अंतर-क्षेत्रीय दृष्टिकोण का अभाव होना।
आवश्यक उपाय:
- स्वच्छ ईंधन का उपयोग बढ़ाने हेतु प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से स्वच्छ ईंधन का बड़े पैमाने पर वितरण।
- पारंपरिक ईंधनों के गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों के प्रति जन जागरूकता को बढ़ाना।
- खाना पकाने के चूल्हों की डिजाइन में संशोधन और इसके निर्माण में पारंपरिक कारकों, स्थानीय मानदंडों और प्रथाओं को सम्मिलित करना। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (2009-10) के अंतर्गत शुरू की गयी राष्ट्रीय बायोमास कुक स्टोव पहल इसका एक उदाहरण है।
- घरों की डिजाइन के माध्यम से वेंटिलेशन में सुधार।
- अंतर-क्षेत्रीय समन्वय और वैश्विक पहल।
विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान देते हुए घरों के भीतर के वायु प्रदूषण को कम करना, बेहतर स्वास्थ्य, गरीबी को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा के लक्ष्य प्राप्त करने का अवसर उपलब्ध कराता है।
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