भारत-यूनाइटेड किंगडम (यूके) संबंध : भारत-यूके संबंधों हेतु राष्ट्रमंडल के महत्व का परीक्षण
प्रश्न: भारत-यूनाइटेड किंगडम संबंधों के प्रमुख पहलुओं का परीक्षण कीजिए। इस संदर्भ में, राष्ट्रमंडल समूह कितना महत्वपूर्ण है? हाल के घटनाक्रमों के आलोक में चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत-यूनाइटेड किंगडम (यूके) संबंधों के प्रमुख पहलुओं को सूचीबद्ध कीजिए।
- ब्रेक्सिट (BREXIT: ब्रिटेन का यूरोपीय संघ छोड़ना), उच्च स्तरीय सहभागिता, वैश्विक आर्थिक एवं सामरिक चिंताओं, प्रवास संबंधी चिंताओं आदि के संदर्भ में, भारत-यूके संबंधों हेतु राष्ट्रमंडल के महत्व का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
भारत और यूनाइटेड किंगडम सुदृढ़ ऐतिहासिक संबंधों पर आधारित एक रणनीतिक भागीदारी साझा करते हैं। इसके विभिन्न आयामों में शामिल हैं
- व्यापार और निवेश: दोनों देशों के मध्य 13 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार रहा है तथा भारत यूनाइटेड किंगडम में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक एवं दूसरा सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय रोजगार सृजक है। यूनाइटेड किंगडम भारत का चौथा सबसे बड़ा आंतरिक निवेशक है जो भारत में सभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेशों के लगभग 7% का प्रतिनिधित्व करता है।
- यूके में भारतीय प्रवासियों की 1.5 मिलियन जनसंख्या वहां के सकल घेरलू उत्पाद में लगभग 6% का योगदान करती है।
- सुरक्षा में सहयोग: तीनों सेनाओं के स्तरों पर सुरक्षा सहयोग तथा तीनों सेनाओं के मध्य संयुक्त सैन्य अभ्यास और व्यापक श्रेणी के आदान-प्रदान नियमित रूप से संचालित किए जाते हैं।
- भारतीय संस्कृति की क्रमिक मुख्यधारा के साथ गहन तथा व्यापक सांस्कृतिक सम्पर्क: नेहरु सेंटर (यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायोग का सांस्कृतिक विंग) भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् (ICCR) के विदेश स्थित सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक केन्द्रों में से एक है।
- शिक्षा: इंडिया-यूके एजुकेशन फोरम, यूके-इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव (UKIERI), जॉइंट वर्किंग ग्रुप ऑन एजुकेशन, न्यूटन-भाभा फण्ड तथा छात्रवृत्ति योजनाएं विभिन्न द्विपक्षीय पहलों में शामिल हैं।
भारत-यूनाइटेड किंगडम संबंधों के संदर्भ में, राष्ट्रमंडल एक महत्वपूर्ण आयाम है। परन्तु यह कई वर्षों से निष्क्रिय रहा है। हाल ही में यूके द्वारा यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की घोषणा तथा भारत द्वारा अपनी वैश्विक उपस्थिति में वृद्धि करने हेतु नए अवसरों की तलाश के संदर्भ में, राष्ट्रमंडल दोनों देशों के संबंधों हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इसे निम्नलिखित कारकों द्वारा समझा जा सकता है:
- राष्ट्रमंडल को पुनर्संरचित करने में भारत की अग्रणी भूमिका हेतु अवसर: BREXIT के पश्चात् भारत राष्टमंडल का सबसे बड़ा सदस्य तथा उभरती आर्थिक महाशक्ति होने के नाते व्यापार, सुरक्षा, संयोजकता तथा वैश्विक अभिशासन में अपने कौशल के प्रदर्शन में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
- BREXIT के बाद के परिदृश्य में व्यापार अवसर: ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के पश्चात् भारत और यूनाइटेड किंगडम के मध्य एक नवीन मुक्त व्यापार समझौता (FTA) विचाराधीन है।
- द्विपक्षीय संबंधों तथा सामरिक क्षेत्रों में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र का महत्व: भारत द्वारा राष्ट्रमंडल मंच का प्रयोग उन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ करने में किया जा सकता है, जिन क्षेत्रों में चीन अधिक सक्रिय है। उदाहरणार्थ अफ्रीका, हिंद महासागर, प्रशांत और कैरीबियाई क्षेत्र में भारत की विकासात्मक भूमिका को बढ़ाने में।
- सहयोग के अन्य क्षेत्र: शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा तथा नवप्रवर्तन में समन्वय विकसित किया जा सकता है। यूनाइटेड किंगडम ने नवीकरणीय उर्जा एवं ग्रीन फाइनेंस व्यवसायों हेतु अवसर प्रदान करने के लिए भारत के नेतृत्व में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की भी सदस्यता ग्रहण की है।
- उच्च स्तरीय यात्राओं में वृद्धि: उच्च स्तरीय यात्राओं जैसे कि 2015 और 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा 2016 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे’ की यात्रा ने राष्टमंडल संबंधों को मजबूती प्रदान की तथा रक्षा, निवेश, व्यापार और आतंकवाद जैसे साझा मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित किया है।
इस प्रकार, अप्रैल 2018 में राष्ट्रमंडल सरकार प्रमुखों की बैठक (CHOGM) में भारतीय प्रधानमंत्री की भागीदारी ने संगठन से जुड़े रहने हेतु भारत की इच्छा को प्रदर्शित किया था। साथ ही यूनाइटेड किंगडम की भारत को संलग्न करने की इच्छा के परिपेक्ष्य में राष्ट्रमंडल महत्वपूर्ण परिवर्तनों हेतु तैयार है।
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