वर्ष 1979 में पश्चिमी एशिया और अफगानिस्तान
प्रश्न: वर्ष 1979 में पश्चिमी एशिया और अफगानिस्तान में घटित घटनाक्रमों का क्षेत्र की राजनीति पर गंभीर प्रभाव पड़ा, जिसका दीर्घकालिक महत्व था। परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण:
- वर्ष 1979 में पश्चिमी एशिया और अफगानिस्तान में हुई प्रमुख घटनाओं की चर्चा कीजिए।
- इस क्षेत्र की राजनीति पर इसके महत्व और प्रभाव जैसे पश्चिम एशियाई राजनीति में अमरीका का बढ़ता हस्तक्षेप आदि का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
1979, पश्चिम एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक वर्ष था। इस वर्ष के दौरान मध्य पूर्व में विभिन्न परिवर्तन हुए तथा इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रभावशाली परिणामों का पूरे विश्व, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप, ने अनुभव किया। इसमें कुछ अतिमहत्त्वपूर्ण घटनायें भी घटित हुईं जिन्होंने क्षेत्रीय राजनीति की कार्यप्रणाली को परिवर्तित कर दिया।
इस क्षेत्र की पहली प्रमुख घटना 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के रूप में हुई। इस क्रांति के तहत ईरान के शासक शाह रजा पहलवी को सत्ता से हटा दिया गया तथा अयातुल्ला खोमैनी ने इस्लामिक गणराज्य के सर्वोच्च नेता के रूप में स्थान ग्रहण किया। ईरान में नई शासन पद्धति ने इसके आन्तरिक मामलों में किसी भी विदेशी प्रभाव और हस्तक्षेप को अस्वीकृत कर दिया। परिणामस्वरुप, अमेरिका ने इसका विरोध किया और विभिन्न एकपक्षीय प्रतिबंध लागू किए।
ईरान की क्रांति के फलस्वरूप अमेरिका ने इस क्षेत्र में एक प्रमुख सैन्य बल के रूप में प्रवेश किया और यहाँ की भू-राजनीति को परिवर्तित किया। साथ ही इस क्रांति ने कई ऐसी घटनाओं को प्रेरित किया जिससे इस क्षेत्र में कई अन्य संघर्षों का आविर्भाव हुआ। इन घटनाओं का आरम्भ ईरान पर इराक के आक्रमण करने के साथ हुआ। इसके अतिरिक्त इसने इस क्षेत्र में राजतन्त्र को पदच्युत करने के लिए आंदोलन और इस्लामी गणराज्यों के आरम्भ को प्रेरित किया।
नवंबर-दिसंबर 1979 में सऊदी अरब में अल-हरम मस्जिद (ग्रांड मॉस्क्यू) की घेराबंदी ने सऊदी शासकों के प्राधिकार को चुनौती दी। इसके बाद इस क्षेत्र में धार्मिक कट्टरपंथियों को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गईं तथा सऊदी अरब द्वारा इस क्षेत्र में धार्मिक प्रभुत्व के प्रयास किये गए।
एक अन्य प्रमुख घटना 1979 के अंत में सोवियत द्वारा अफगानिस्तान पर अधिकार कर लेने के रूप में घटित हुई। अफगानी साम्यवादी सरकार और साम्यवादी सरकार के विरोधी मुस्लिम गुरिल्ला लड़ाकों के मध्य हो रहे संघर्ष में सोवियत संघ ने अफगानी साम्यवादी सर्कार को समर्थन दिया। ऐसे में चूँकि 1970 के दशक में अमेरिकी-रूस शांति समझौता (detente) भंग हो चुका था, अतः अमेरिका ने सऊदी और पाकिस्तान सेना की सहायता से रूसी साम्यवादियों के विरुद्ध जिहाद को संगठित करने के लिए कदम उठाए।
यद्यपि 1989 तक सोवियत सेनाएँ अफगानिस्तान से बाहर हो गयी थीं, तथापि इस आक्रमण ने इस क्षेत्र पर कई नकारात्मक प्रभाव छोड़े। इसने धार्मिक चरमपंथ को वैधता प्रदान की और एक कमजोर धार्मिक राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। यह कालांतर में इस क्षेत्र में आतंकवाद को आधार प्रदान करने का कारण बना।
सऊदी अरब और ईरान द्वारा क्रमशः सुन्नी और शिया शिविरों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष की शुरूआत के भी भू-राजनीतिक प्रभाव देखे गए। क्षेत्रीय वर्चस्व और सर्वोच्चता के लिए सऊदी अरब और ईरान के बीच की प्रतिस्पर्धा ने पश्चिमी एशियाई क्षेत्र में सीरियाई संकट और अस्थिरता को जन्म दिया है।
इस प्रकार पश्चिम एशिया और अफगानिस्तान दोनों ने 1979 में उत्पन्न उथल-पुथल की भारी कीमत चुकाई है। वास्तव में, विभिन्न घटनाओं और व्यक्तित्वों ने धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया ताकि ऐसे राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके जो उपमहाद्वीप की राजनीति को परिवर्तित कर दें।
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