‘मध्यम आय पाश’ : भारत

प्रश्न: ऐसे तर्क दिए गए हैं कि भारत ‘मध्यम आय पाश’ में फंस सकता है। इस परिघटना की व्याख्या करते हुए, ऐसे तर्कों के लिए उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए। भारत इससे किस प्रकार बच सकता है?

दृष्टिकोण

  • स्पष्ट कीजिए कि ‘मध्यम आय पाश’ से आप क्या समझते हैं।
  • भारत ‘मध्यम आय पाश’ में फंस सकता है।
  • इसके लिए दिए गए तर्कों के पीछे निहित कारणों को वर्णित कीजिए।
  • भारत के लिए पाश से बचने हेतु उपाय सुझाइए।

उत्तर

‘मध्यम-आय पाश’ आर्थिक विकास की एक सैद्धांतिक स्थिति है जिसमें एक मध्यम आय वाला देश कई प्रतिकूल कारकों के कारण उच्च-आय वाले समूह में शामिल होने में असमर्थ होता है। विश्व बैंक ‘मध्यम-आय सीमा’ वाले देशों को एक ऐसे देश के रूप में परिभाषित करता है, जिसका प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद स्थिर (2011) मूल्यों पर $ 1,000 से $ 12,000 के मध्य हो। भारत इस समूह में 2008 से शामिल है।

कुछ तर्कों के अनुसार भारत निम्नलिखित कारकों के चलते ‘मध्यम-आय पाश’ में फंस सकता है:

  • मांग-संचालित संवृद्धि: भारत की संवृद्धि अधिकांशतः देश के सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के उच्च स्तर पर स्थित लगभग 100 मिलियन लोगों द्वारा सृजित मांग से प्रेरित है। हालाँकि, इस मांग में कमी आने लगी है, जो हाल के दिनों में ऑटोमोबाइल बिक्री में आई मंदी से स्पष्ट है।
  • मध्यम वर्ग द्वारा खपत में कमी: यह आय वृद्धि में कमी, धन की आपूर्ति में कमी तथा आंतरिक कारकों जैसे- विमुद्रीकरण और GST के कारण बढ़ती अनिश्चितता का परिणाम है।
  • आर्थिक संवृद्धि में गिरावट: CSO ने अपने नेशनल अकाउंट डेटा में वित्त वर्ष 2019 के विकास अनुमान 7.2% से घटकर 7% के स्तर आ गया है जो गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाता है। यह विगत पांच वर्षों में सबसे कम है।
  • वैश्वीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रिया: अतिवैश्वीकरण (जिसने चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे राष्ट्रों को प्रारंभ में ही अभिसरण से लाभ पहुँचाया) ने उन्नत देशों में प्रतिक्रिया को उत्पन्न किया। इस प्रतिक्रिया को वर्ष 2011 के पश्चात् बढ़ते संरक्षणवाद और वैश्विक व्यापार- GDP अनुपात में कमी के रूप में देखा जा सकता है। इसका अर्थ है कि अभिसरण करने वाले (आर्थिक वृद्धि की दौड़ में शामिल) नए देशों को पहले की भांति व्यापार अवसर उपलब्ध नहीं होंगे।
  • सामाजिक असमानता: धन संबंधी असमानता और आय का पदानुक्रमित वितरण समानता के लिए बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं। इससे असममित विस्तार होता है।
  • ऋण संबंधी मुद्देः गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और बैंकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि NBFCS का असंतुलित परिसंपत्ति-देयता अनुपात, बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA), जिसके कारण उनकी ऋण क्षमता बाधित हो रही है।

हालांकि, 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि एक समूह के रूप में मध्यम आय वाले देशों की मांग अभिसरण मानक की तुलना में तीव्रता से बढ़ रही है। इसके अलावा, मध्यम-आय पाश को प्रकट करने के लिए कोई वास्तविक डेटा उपलब्ध नहीं है।

मध्यम-आय पाश से बचने हेतु कुछ उपायों में निम्न शामिल हैं:

  • स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, कौशल विकास, आय में वृद्धि आदि के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के निचले और मध्य के स्तरों पर विद्यमान गतिशीलता सम्बन्धी अवरोधों का समाधान किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था का विकास समग्र रूप से हो, न कि खंडों में।
  • संसाधन-गहन अर्थव्यवस्था से उच्च आय एवं ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में सफल रूपांतरण को सक्षम बनाने के लिए विचारों और नवाचार की वृद्धि को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक और विनिर्माण संबंधी व्यवसायों के विस्तार हेतु पहल प्रारंभ की जानी चाहिए जो बड़ी संख्या में श्रमिकों की भर्ती तथा निर्यात को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • बैंकों और NBFCs की ऋण क्षमता में सुधार हेतु उपाय किए जाने चाहिए जैसे कि पूंजी उपलब्धता, NPA के प्रबंधन में सुधार, कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार आदि।
  • प्राकृतिक संसाधनों (जैसे भूमि, वायु और जल) के कुशल उपयोग की दिशा में किए गए प्रयास मौजूदा विकास को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। ये संसाधन अधिग्रहण विवादों से जूझ रहे हैं, प्रदूषण के चिंताजनक स्तर और उपलब्धता की कमी की समस्या से ग्रसित हैं।

नीति-निर्माताओं को आर्थिक संवृद्धि की विकासमान प्रवृति और भारत की अर्थव्यवस्था के तीव्रतम विकास की संभावनाओं के संरक्षण को सुनिश्चित करने हेतु सतत दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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