कर्नाटक युद्धों की पृष्ठभूमि : युद्धों में फ्रांसीसियों की विफलता के कारण
प्रश्न: भारत पर फ्रांसीसी राजनीतिक प्रभाव तृतीय कर्नाटक युद्ध के बाद पूर्णतया ओझल हो गया। टिप्पणी करते हुए इस संबंध में फ्रांसीसियों की विफलता के कारणों की व्याख्या कीजिए।
दृष्टिकोण
- कर्नाटक युद्धों की पृष्ठभूमि को संक्षेप में बताइए।
- इस बात को रेखांकित कीजिए कि किस प्रकार तृतीय कर्नाटक युद्ध में फ्रांस की पराजय ने इसके प्रभुत्व को पूर्णतया समाप्त कर दिया।
- युद्धों में फ्रांसीसियों की विफलता के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- यह प्रतिद्वंदिता भारत में ब्रिटिश शक्ति के उदय में किस प्रकार सहायक रही, इसकी व्याख्या करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
हालांकि ब्रिटिश और फ्रांसीसी (फ्रेंच) व्यापारिक उद्देश्यों से भारत में आए, परंतु उनका दीर्घकालिक लक्ष्य इस क्षेत्र में राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होना था। प्रभुत्व बनाए रखने के क्रम में दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता का आरंभ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप इन दोनों शक्तियों के मध्य तीन कर्नाटक युद्ध हुए।
तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758-1763)- यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध (1756-63) तृतीय कर्नाटक युद्ध का प्रमुख कारण था। यह युद्ध ब्रिटेन और फ्रांस के मध्य लड़ा गया। भारत में इसका आरम्भ 1758 में तब हुआ जब काउंट डी लाली के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने सेंट डेविड और विजयनगरम स्थित ब्रिटिश किलों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। अंग्रेजों ने पलटवार करते हुए फ्रांसीसी बेड़े को वृहत स्तर पर नुकसान पहुंचाया।
इस युद्ध के एक भाग के रूप में, वांडीवाश का युद्ध फ्रांसीसियों के लिए निर्णायक सिद्ध हुआ। इस युद्ध में, जनरल आयरकूट के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने फ़्रांसीसी सेना को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया। युद्ध में पांडिचेरी (वर्तमान पुदुचेरी), जिंजी और माहे को खोकर फ्रांसीसी शक्ति अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच गयी थी।
यद्यपि पेरिस शांति संधि (1763) द्वारा भारत में फ्रांसीसी कारखानों को पुनर्स्थापित किया गया, किन्तु फ्रांसीसी राजनीतिक प्रभाव कम हो गया था। इसके पश्चात् वे केवल मुख्य रूप से व्यापार एवं वाणिज्य गतिविधियों तक ही सीमित रह गए।
फ्रांसीसियों की विफलता के प्रमुख कारण:
- अंग्रेजी कंपनी एक निजी उद्यम थी: इसने लोगों के मध्य उत्साह और आत्मविश्वास की भावना को उत्पन्न किया। दूसरी ओर, फ्रांसीसी कंपनी को फ्रांस की सरकार द्वारा नियंत्रित एवं विनियमित किया जाता था। इसके परिणामस्वरूप निर्णय लेने में विलंब होता था।
- अंग्रेजी नौसेना फ्रांसीसी नौसेना की तुलना में अधिक उन्नत थी: इससे अंग्रेज़ों को भारत में फ्रांसीसियों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों से फ्रांस का संपर्क काटने में सहायता प्राप्त हुई।
- कलकत्ता, बंबई और मद्रास जैसे तीन महत्वपूर्ण पत्तन अंग्रेज़ों के नियंत्रण में थे जबकि फ्रांसीसियों के नियंत्रण में केवल पांडिचेरी था।
- धन की कमी: फ्रांसीसियों ने अपने व्यावसायिक हितों के स्थान पर क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा को अधिक महत्व दिया, जिस कारण फ्रांसीसी कंपनी को धन की कमी का सामना करना पड़ा।
- कमांडरों की श्रेष्ठता: अंग्रेजी पक्ष के कमांडरों की लंबी सूची में सर आयरकूट, रॉबर्ट क्लाइव और कई अन्य शामिल थे, जबकि इसकी तुलना में फ्रांसीसी पक्ष में केवल डुप्ले प्रमुख कमांडर था। अतः तीन कर्नाटक युद्धों के रूप में, आंग्ल-फ्रांसीसी प्रतिद्वंद्विता ने यह निश्चित कर दिया कि भारत पर शासन करने के प्रमुख दावेदार फ्रांसीसी नहीं बल्कि अंग्रेज हैं।
Read More
- मॉर्ले-मिंटो सुधार : राष्ट्रवादियों एवं आंदोलन पर अधिनियम के प्रभाव का मूल्यांकन
- नमक सत्याग्रह : नमक कर को लक्षित करने में गांधीजी की कार्यनीतिक निपुणता
- भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन : भारतीय समाज पर इन सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के सकारात्मक प्रभाव
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) : गठन तथा इसके उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन
- स्वतंत्रता पूर्व भारत में श्रमिक आंदोलन के विभिन्न चरण