सुपोषण की अवधारणा : इसके पारिस्थितिकीय परिणाम

प्रश्न: सुपोषण क्या है? इसके पारिस्थितिकीय परिणामों पर प्रकाश डालते हुए, इससे निपटने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • सुपोषण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • इसके पारिस्थितिकीय परिणामों का उल्लेख कीजिए।
  • इनसे निपटने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः

सुपोषण (eutrophication) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक जलीय निकाय घुलित पोषक तत्वों (मुख्य रूप से नाइट्रेट्स और फॉस्फेट) से समृद्ध हो जाता है। इस प्रचुरता के कारण जलीय पौधों के जीवन विकास में वृद्धि होती है और जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन का अवक्षय होने लगता है।

यह प्राकृतिक रूप से हजारों वर्षों में घटित होता है, क्योंकि झीलें समय के साथ परिवर्तित होने लगती हैं और अवसादों से भर जाती हैं। हालांकि मानवजनित कारकों जैसे सीवेज, अपमार्जक, उर्वरक और अन्य पोषक स्रोतों के पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश के माध्यम से इस प्रक्रिया को गति प्राप्त हो जाती है तथा इसे संवर्द्ध (cultural) या त्वरित सुपोषण कहा जाता है। सुपोषण से संबद्ध दो सर्वाधिक तीव्र परिघटनाएं, झील के गहरे भाग में हाईपॉक्सिया (ऑक्सीजन का न्यून स्तर) और हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन हैं।

सुपोषण के पारिस्थितिकीय परिणाम:

जैव विविधता में कमी: 

  • शैवाल प्रस्फुटन सूर्य के प्रकाश के प्रवेश को अवरुद्ध करता है, जिसके परिणामस्वरूप जलीय पौधों की मृत्यु हो जाती है और इस प्रकार इससे ऑक्सीजन की पुनःपूर्ति भी बाधित होती है।
  • जब जल में घुलित ऑक्सीजन हाइपॉक्सिक स्तर तक कम हो जाती है, तो कई समुद्री जंतुओं का श्वसन बाधित होने लगता है तथा उनकी मृत्यु हो जाती है। इससे जल निकाय की प्रभावी जैव विविधता कम हो जाती है और अक्रिय क्षेत्रों (dead zones) का निर्माण होने लगता है।
  • सुपोषण द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का भी उत्पादन हो सकता है, जो समुद्री जल के Ph मान को कम (महासागरीय जल के अम्लीकरण में वृद्धि) करता है। इससे जलीय जीवों के खोल (शेल) के निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है।

जल विषाक्तता में वृद्धि: सुपोषित जल में हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन (जैसे साइनोबैक्टीरियल ब्लूम्स) न्यूरोटॉक्सिन और हिपैटोटॉक्सिन निर्मुक्त करते हैं। ये विषाक्त पदार्थ शेलफिश या अन्य समुद्री जंतुओं के माध्यम से संपूर्ण खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं और अनेक जंतुओं की मृत्यु का कारण बनते हैं।

नई प्रजातियों द्वारा हस्तक्षेप: सुपोषण, एक पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकाश और कुछ पोषक तत्वों की उपलब्धता में परिवर्तन को बढ़ावा देता है। इसके कारण प्रजातियों की संरचना में बदलाव होने लगता है। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन में वृद्धि से हायसिंथ जैसी नई प्रतिस्पर्धी प्रजातियां हस्तक्षेप करने और मूल अधिवासित प्रजातियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर करने में सक्षम हो जाती हैं। 

जल की गुणवत्ता का ह्रास: सुपोषण से जल की अपारदर्शिता या आविलता (turbidity) में वृद्धि हो जाती है, जिससे स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी आती है।

सुपोषण से निपटने हेतु उपाय:

  • मौजूदा जल निकायों की जल गुणवत्ता का नियमित अंतरालों पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
  • औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट जल को जल निकायों में निर्मुक्त करने से पूर्व उपचारित किया जाना चाहिए।
  • प्रवाह के माध्यम से पोषक तत्वों की क्षति के शमन हेतु मानकों, तकनीकी आवश्यकताओं या विभिन्न क्षेत्रकों के लिए प्रदूषण की उच्चतम सीमा के निर्धारण जैसे विनियमों को क्रियान्वयित किया जाना चाहिए।
  • करों एवं शुल्कों, सब्सिडी और पर्यावरणीय बाजारों के माध्यम से पोषक तत्वों को कम करने वाली कार्रवाईयों को प्रोत्साहित करना। उदाहरण के लिए, कृषि में उर्वरक के उपयोग का युक्तिकरण।
  • पोषक तत्वों का अभिग्रहण एवं चक्रण करने वाले प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों का संरक्षण और पुन:स्थापन करना।
  • सुपोषण की समस्या का समाधान करने हेतु नीतियों को क्रियान्वयित एवं प्रवर्तित करने के लिए सुदृढ़, संबद्ध एवं समन्वित संस्थानों की स्थापना करना।
  • सुपोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु एजुकेशनल आउटरीच प्रोग्राम।

उपर्युक्त उपायों के प्रभावी क्रियान्वयन से सुपोषण की समस्या से निपटने में सहायता प्राप्त हो सकती है। इस संबंध में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने GPS (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) प्लेटफार्मों पर जल निकायों के मानचित्रण की आवश्यकता को रेखांकित किया है तथा दिल्ली में सभी जल निकायों हेतु एक विशिष्ट पहचान (ID) का सुझाव दिया है, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वयित किया जा सकता है।

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