स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का संक्षिप्त परिचय : ग्रामीण विकास और महिला उद्यमिता के जुड़वां लक्ष्यों के संदर्भ में विश्लेषण 

प्रश्न: SHG’s ने वित्तीय समावेशन प्रदान करने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन उनके लिए व्यवहार्य व्यापार उद्यम के रूप में विकसित होने के लिए एक भिन्न दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ग्रामीण विकास और महिला उद्यमिता के जुड़वां लक्ष्यों के संदर्भ में विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • तथ्यों/उदाहरणों का उल्लेख करते हुए वित्तीय समावेशन प्रदान करने में SHGs की सफलता पर विचार कीजिए।
  • उन विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा कीजिए जो ग्रामीण विकास तथा महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के संदर्भ में SHGs के एक व्यापार उद्यम के रूप में विकसित होने के लिए आवश्यक हैं।

उत्तर

1980-90 के दशकों में अपने उद्भव के बाद से SHGs ने भारत में वित्तीय समावेशन की प्राप्ति में महत्वपूर्ण योगदान किया है। नाबार्ड (NABARD) के अनुसार 85.77 लाख स्वयं सहायता समूहों ने भारत में 10 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को कवर किया है। नाबार्ड के स्वयं सहायता समूह-बैंक सहबद्धता कार्यक्रम (SHG-BLP) ने गरीब महिलाओं को ब्याज की सामान्य दरों पर मुख्य बैंकिंग प्रणाली से संपार्श्विक (collateral) मुक्त ऋण उपलब्ध कराने के क्षेत्र में उत्प्रेरक प्रभाव उत्पन्न किया है।

पिछले कुछ वर्षों में SHGs ने स्वयं को केवल गैर-उत्पादक उद्देश्यों के लिए ऋण प्रदाताओं से बदलकर सूक्ष्म उद्यमों को प्रोत्साहन देने वाले समूहों के रूप में स्थापित किया है। उदाहरणार्थ कैफ़े कुदुम्बश्री, केरल में स्थित एक ब्रांडेड भोजनालय (eatery) जो कुदुम्बश्री इकाइयों द्वारा संचालित किया जा रहा है। यह भोजनालय महिलाओं द्वारा चलाया जा रहा है।

इन सफलताओं के बावजूद SHGs अपनी पूर्ण क्षमताओं एवं सामर्थ्य को प्राप्त करने में काफी पीछे हैं। वर्तमान परिदृश्य में वैश्वीकरण और गुणवत्ता के प्रति उपभोक्ताओं की जागरूकता के कारण प्रतिस्पर्द्धा अत्यंत उच्च है। ऐसे में इन SHGs को रणनीतिक व्यापारिक उद्यम के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है।

ग्रामीण विकास और महिला उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के जुड़वां लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सामाजिक लामबंदी के स्थान पर बाजार के कठोर एवं जटिल स्वरूप (hard metrics) की ओर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।

यह निम्नलिखित की मांग करता है:

  • उद्यमशीलता विकास: SHGs के सदस्यों के मध्य उद्यमिता कौशल एवं ज्ञान में वृद्धि हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रमों तथा कार्यशालाओं को सतत रूप से निष्पादित किया जाना चाहिए।
  • राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLMS) के साथ एक गहन कार्यात्मक संबंधों का निर्माण ताकि ग्रामीण व्यवसायों के सफलतापूर्ण परिपोषण हेतु SRLMs की लामबंदी की क्षमता, उसकी अंतिम बिंदु तक उपस्थिति तथा कौशल समुच्चयों का लाभ उठाया जा सके।
  • सूक्ष्म उद्यम विकास में विभिन्न हितधारकों की संलग्नता: उदाहरण के लिए युवा व्यवसायी प्रबंधन पेशेवरों, प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत अनुभवी लोक सेवकों, सफल सूक्ष्म और लघु उद्यमियों आदि को इसमें शामिल किया जा सकता है।
  • वित्त हेतु अवसरों की खोज: प्रारंभिक स्टार्ट-अप लागतों के लिए सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। अंततः परिचालन लागत की पुनर्घाप्ति हेतु उद्यमियों को, लाभ और अन्य बाजार आधारित प्रणालियों के माध्यम से उनके स्वयं के राजस्व को सृजित करने में सक्षम बनाना चाहिए।
  • उद्यमों के स्तर और आकार पर आधारित वित्तीय एवं तकनीकी सहायता हेतु एक पिरामिड रणनीति को अपनाना। उन उद्यमियों के लिए, जिन्हें विकास हेतु विशेषीकृत सहायता की आवश्यकता होती है, विशेषीकृत (कस्टमाइज्ड) सहायता प्रदान करने हेतु निर्वाह-उन्मुख संस्थानों की एक एकल श्रेणी में सभी सूक्षम उद्यमों को शामिल करने की प्रवृति को कम किया जाना चाहिए।

इस प्रकार,बाजार संभावनाओं को सुसाध्य बनाने के अतिरिक्त क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, व्यावसायिक प्रशिक्षणों, तकनीकी एवं वित्तीय सहायता, कौशलों के सम्मिश्रण तथा ऋण, विशेष रूप से स्टार्ट-अप पूँजी तक आसान पहुँच सहित एक नीतिगत रूपरेखा एवं कार्यान्वयन तन्त्र SHGs को एक व्यवहार्य व्यापार उद्यम में परिवर्तित करने में योगदान दे सकते हैं।

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