सुपरबग की अवधारणा का परिचय : भारत में सुपरबग के खतरे से निपटने के लिए व्यावहारिक अनुशंसायें

प्रश्न: सुपरबग को परिभाषित करते हुए, मूल्यांकन कीजिए कि भारत इनके प्रति विशेष रूप से सुभेद्य क्यों है। साथ ही, भारत में सुपरबग के खतरे से निपटने के लिए किए जा सकने वाले उपाय भी सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • सुपरबग की अवधारणा का परिचय दीजिए।
  • भारत को सुपरबग के प्रति सुभेद्य बनाने वाले कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत में सुपरबग के खतरे से निपटने के लिए कुछ व्यावहारिक अनुशंसाओं को सुझाइए।

उत्तर

सुपरबग ऐसे बैक्टीरियल स्ट्रेन का गठन करते हैं, जिन्होंने आनुवंशिक उत्परिवर्तन अथवा समय के साथ प्रतिरोधक क्षमता निर्मित कर कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त कर ली है। एक अनुमान के अनुसार भारत में पहली पंक्ति की एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोधता के कारण प्रति वर्ष लगभग 58,000 नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है। निम्नलिखित कारकों के साथ मिलकर यह समस्या और अधिक भयावह हो रही है

  • एंटीबायोटिक दवाओं की अनियंत्रित बिक्री: अधिकांश एंटीबायोटिक दवाएं बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के किसी भी फार्मेसी पर किसी भी व्यक्ति के लिए ‘ओवर द काउंटर ड्रग्स’ के रूप में आसानी से उपलब्ध हैं।
  • पशुधन एवं मत्स्य पालन में एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक उपयोग: वर्तमान में भारत में पशुधन क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को नियंत्रित करने हेतु किसी भी प्रकार के विधिक प्रावधान का अभाव है। अनियंत्रित उपयोग खाद्य श्रृंखला को संदूषित कर मानव रोगजनकों के पुनरुद्भवन को बढ़ावा देता है जिससे वर्तमान दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।
  • नैदानिक संबंधी जागरूकता का अभाव: बाजार में उपलब्ध फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन (FDC) की एक विस्तृत श्रृंखला की उपलब्धता भी प्रतिरोधक क्षमता के विकास की समस्या में वृद्धि करती है।
  • स्वास्थ्य चिकित्सकों के मध्य गठजोड़: कुछ चिकित्सकों को अधिक से अधिक एंटीबायोटिक के प्रिस्क्रिप्शन के लिए दवा कंपनियों तथा दवा निर्माताओं द्वारा प्रतिफल प्रदान किया जाता है।
  • सेल्फ-मेडिकेशन: एंटीबायोटिकस की आसान उपलब्धता के कारण, सेल्फ-मेडिकेशन (बिना चिकित्सीय परामर्श के स्वयं दवा ले लेना) की प्रवृत्ति में कई गुना वृद्धि हुई है। इससे लोग सुपरबग के खतरों के प्रति अतिसंवेदनशील बन गए हैं।
  • अनुपचारित निस्सरण (Untreated discharge): एंटीबायोटिक्स खेतों, आवासीय क्षेत्रों, अस्पतालों, दवा कंपनियों इत्यादि से निस्सृत जल को संदूषित कर देते हैं। अंततोगत्वा यह जल पारिस्थितिक तंत्र में प्रविष्ट हो जाता है और इसे सुपरबग के लिए एक आदर्श प्रजनन स्थल बना देता है।

सुपरबग के खतरों से निपटने हेतु समाधान:

  • ओवर द काउंटर बेची जाने वाली अत्यधिक प्रभावकारी एंटीबायोटिक दवाओं से सुरक्षा हेतु दवा विनियामक निकायों का क्षमता निर्माण करना।
  • अनियंत्रित एंटीबायोटिक उपयोग के खतरों के संबंध में जागरूकता बढ़ाकर चिकित्सकों (Physicians), स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों (Healthcare Practitioners) तथा रोगियों में व्यवहारगत परिवर्तन लाना।
  • सुपरबग की अवधारणा को पूर्ण रूप से समझने एवं इसके समाधान हेतु अधिक से अधिक वैज्ञानिक अनुसंधानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, ऐसे यौगिकों की प्राप्ति के लिए अनुसंधान कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो प्रतिरोधी जीन के प्रभावों को कम कर सके।
  • एंटीबायोटिक की उपयोग सीमा को विनियमित करने के लिए पशुधन, मत्स्य पालन और फार्मास्युटिकल क्षेत्र के लिए वैधानिक मानदंडों का निर्माण करना।
  • ‘फार्माकोविजिलेंस’ को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिसमें दवा उत्पादों के प्रतिकूल प्रभावों की पहचान, मूल्यांकन, निगरानी और रोकथाम की जा सके।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सुपरबग के खतरों की रोकथाम हेतु आशा कार्यकर्ताओं के मध्य जागरूकता उत्पन्न करेना।

2012 की ऐतिहासिक ‘चेन्नई घोषणा’ के द्वारा एंटीमाइक्रोबियल (सूक्ष्मजैविक) प्रतिरोधकता के क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी चिकित्सा संगठनों और एजेंसियों को एकजुट करने के साथ ही देश में तर्कसंगत एंटीबायोटिक के उपयोग के संबंध में यथार्थवादी उद्देश्यों और लक्ष्यों का निर्माण किया गया है। हाल ही में, भारत सरकार द्वारा GAP-AMR के अनुरूप एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधक पर एक राष्ट्रीय कार्यवाही योजना भी तैयार की गई है। वस्तुतः इस उभरते खतरे से निपटने के लिए इसके प्रभावी कार्यान्वयन को बेहतर स्वच्छता एवं जन जागरूकता के विस्तार के साथ संबद्ध किया जाना चाहिए।

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