उत्तर प्रदेश में मृदा हास एवं मृदा अपरदन की समस्या की विवेचना करें। इसके समाधान हेतु उपाय सुझाइए।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • उत्तर प्रदेश में मृदा के महत्व को बताएँ।

मुख्य भाग

  • मृदा हास की सोदाहरण समस्या बताएँ।
  • मृदा अपरदन की समस्या व प्रभावित क्षेत्र बताएँ।
  • समाधान के उपायों पर चर्चा करें।

उत्तर

भूमिकाः

उत्तर प्रदेश कृषि प्रधान राज्य है। इस दृष्टि से मृदा राज्य में उपलब्ध सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। लेकिन विभिन्न कारणों से राज्य की एक-तिहाई से अधिक भूमि हास और अपरदन की समस्या से प्रभावित हो गयी।

मुख्य भागः

मृदा हास

  • मृदा हास का तात्पर्य मृदा की गुणवत्ता में गिरावट है। उत्तर प्रदेश में मृदा हास की सर्वाधिक गंभीर समस्या बागर मदा क्षेत्र में उत्पन्न हो रही है। अलीगढ. मैनपरी कानपर, उन्नाव, इटावा, रायबरेली, सुल्तानपुर, जानपुर, लार इत्यादि जिलों में मदा लवणीय एवं क्षारीय हो रही है। प्रदेश की कल भमि का लगभग 10% लवणायता का की समस्या से ग्रसित हो चुका है।
  • लवणीयता सोडियम पोटैशियम सल्फेट और कैल्सियम की अधिकता से उत्पन्न होते है। इनका PH R1 कम होता है। क्षारीयता सोडियम लवणों की अधिकता से उत्पन्न होती है और इसका pH मान 8.1 है।
  • लवणीयता और क्षारीयता में अधिक वद्धि से भमि अंततः अनुपजाऊ और ऊसर हा जा लवणायता व क्षारीयता की समस्या प्रदेश में जल-जमाव, नहरी-सिंचाई, अति-सिंचाई, क्षारीय उर्वरकों का लगातार प्रयोग तथा लवणयुक्त जल से सिंचाई के कारण उत्पन्न हो रही है।

मृदा अपरदन

  • मृदा अपरदन, मिट्टी के ऊपरी आवरण के क्रमिक अपनयन को कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में मृदा अपर समस्या आत भीर उना पटेश के आगरा (1,06,000 हे.), इटावा (93,000 8. 9000 और मथुरा जनपदों में चम्बल और यमना नदियों के किनारे “अवनालिका अपरदन” से विस्तृत क्षेत्र उत्खान (Bad Land) और बिहड़ों में परिणत हो गयी है। गंगा, घाघरा, रामगंगा इत्यादि नदियों द्वारा तटवर्ती भागों में का अपरदन हो रहा है।
  • उत्तर प्रदेश का दक्षिण-पश्चिमी भाग वायु-अपरदन से प्रभावित है। आगरा, मथुरा और इटावा जिले वायु अपर से अधिक प्रभावित हैं। ग्रीष्मकाल में वायु अपरदन अधिक तीव्र हो जाता है। अनुमानत: 3200 एकड़ कृषि योग भूमि का प्रतिवर्ष प्रदेश में विनाश वायु अपरदन से हो रहा है।
  • मृदा अपरदन एवं हास के कारण मृदा उर्वरता घटती है जिससे अंततः कृषि उत्पादकता में कमी आती है। आप्लावन व निक्षालन से मृदा के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। सूखा एवं बाढ़ का प्रकोप बढ़ता है। आर्थिक विकास एवं सांस्कृतिक समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होता है।

समाधान के उपाय

प्रदेश में मृदा हास एवं अपरदन पर नियंत्रण हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं

  1.  उत्तर प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र में विस्तृत बीहड एवं उत्खात भूमि के पुनरूद्धार हेतु बड़ी परियोजनाओं का क्रियान्वयन आवश्यक है। जिसमें अवनालिका मुख रोधन, धरातल समतलन, अति पशुचारण पर रोक इत्यादि गतिविधियों के लिए सामूहिक व एकीकृत प्रयास होने चाहिए।
  2. प्रदेश में जल द्वारा अपरदन की समस्या के समाधान हेतु नदियों को जोड़ने की योजना अत्यंत कारगर सिद्ध होगी। इसके अतिरिक्त पक्के बाँधों का निर्माण, वनरोपण इत्यादि भी आवश्यक है।
  3. क्षारीय एवं लवणीय भूमि की समस्या के समाधान के लिए गहन जुताई, जैव उर्वरकों का अधिकाधिक प्रयोग तथा जल निकास की उचित प्रणाली का विकास आवश्यक है।
  4. वायु अपरदन प्रभावित क्षेत्रों में वायु-विच्छेदकों का निर्माण, सुरक्षा-पेटियों तथा वायु-अवरोधकों का विकास तथा पौध एवं झाड़ियों को उगाना प्रभावी होगा।
  5. इसके अतिरिक्त प्रदेश में वैज्ञानिक शस्यावर्तन (Crop rotation), गहरी जुताई, जैविक कृषि को प्रोत्साहन इत्यादि प्रयास भी आवश्यक हैं।

 

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