मेला क्या है? उत्तर प्रदेश के मेलों एवं उसके महत्व की चर्चा करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • संक्षेप में मेला को उदाहरण सहित परिभाषित करें।

मुख्य भाग:

  • उत्तर प्रदेश के प्रमुख मेलों का, वर्गीकरण करते हुए उदाहरण सहित बताएं।

निष्कर्ष:

  • बताएं कि मेला केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं अपितु यह संस्कृति, परम्परा एवं व्यापार से भी संबंधित होता है|

उत्तर

भूमिकाः

किसी विषेश आस्था, संस्कृति या परम्परा को हर्षोल्लासित रूप में किसी निर्धारित स्थान पर मनाने या अभिया क लिए इकट्ठा हुआ जन समूह ‘मेला’ कहलाता है। मेले में भोज्य पदार्थों तथा मनोरंजन के साधनों की अधिकता होती है।

मुख्य भागः

प्रतिवर्ष उत्तर प्रदेश में लगभग 2250 मेले लगते हैं। सबसे अधिक मेला मथुरा में लगभग (86) और उसके बाद कानपुर तथा हमीरपुर में लगभग (79) लगते हैं। इकटठा होने के वाले लोगों के समूह के आधार पर छोटा या बडा मेला घोषित होता है।

वाराणसी महापालिका में फातमा (चेतगेज) में लगभग एक लाख व्यक्ति मोहर्रम के दसवें दिन एकत्र होते हैं। इसी प्रकार प्रयाग में अर्द्धकुम्भ एवं कुम्भ मेले के अवसर पर करोडों जनसमूह एकत्र होता है। सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण के अवसरों पर गंगा स्नान के लिए भी बडी संख्या में लोग वाराणसी व अन्य तीर्थ स्थलों पर इकट्ठा हात है।

प्रकृति के आधार मेले के कई प्रकार हो सकते हैं जैसे- धर्मनिष्ठ मेला, जैसे- मथुरा का केस मेला, वृंदावन का गडिया मेला. सावन मेला. जन्माष्टमी मेला. देव छठ मेला, झुला मेला, देवा शरीफ मेला, दवापाटन मला, अयाध्या का परिक्रमा मेला, रामायण मेला आदि।

त्यौहारनिष्ठ मेला- दीपावली, होली, ईद आदि के अवसर पर लगने वाले स्थानीय मेले।

वस्तुनिष्ठ मेला- इसमें कला तथा साहित्य को प्रदर्शित करने के मेला लगाया जाता है, जैसे शिल्प मला, पुस्तक मेला।

परम्परा निष्ठमेला- किसी विशेष व्यक्तित्व या घटना के कारण परम्परा से चले आ रहे मेलों को इसमें शामिल किया जाता है, जैसे- गोविन्द साहब मेला, बहराइच का सैय्यद सालार उर्स, मगहर में कबीर मेला, वाराणसी का नककतेया तथा रथयात्रा मेला, बलिया का ध्रुपद मेला आदि।

जन्मोत्सवनिष्ठ मेला- इसमें महापुरूषों की जयंतियों के अवसर पर श्रद्धात्मक स्वरूप में लोक इकट्ठा होते हैं, जैसेबुद्ध पूर्णिमा, महावीर जयंती, गुरूनानक जयंती आदि।

पशुनिष्ठ मेला- इसमें पशु प्रदर्शन या व्यापार प्रमुख उद्देश्य होता है, जैसे- बलिया का ददरी पशु मेला, आगरा का बटेश्वर मेला (पशु एवं ऊंट मेला) आदि।

निष्कर्षः

इस तरह मेला मात्र मनोरंजनात्मक नहीं होता बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण, धार्मिक अनुष्ठान, कला प्रदर्शन तथा व्यापार का माध्यम होता है। मेला सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है।

 

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