उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातीय समुदाय की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातियों का संक्षिप्त उल्लेख करें।

मुख्य भाग

  • प्रमुख जनजातीय समुदाय की विशेषताओं को लिखें।
  • विशेषताओं में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक पक्ष को दर्शाएं।

निष्कर्ष

  • समग्र विशेषताओं को समाहित करते हुए मुख्य धारा में समावेश की आवश्यकता को बताएं।

उत्तर

भूमिकाः

जनगणना 2011 के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 0.6 है। राज्य में थारू, बक्सा, खरवार, सहरिया, बैगा, गोण्ड, चेरो इत्यादि जनजातियाँ अधिवासित हैं। प्रत्येक जनजाति समुदाय की अलग विशिष्टता है।

मुख्य भागः

  • थारू, जनसंख्या की दृष्टि से प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है। यह जनजाति मुख्यतः प्रदेश के तराई भाग (महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, बहराइच और लखीमपुर खीरी) जिला में निवास करती है। शारीरिक दृष्टि से थारू, कद में छोटे, चौड़ी मुखाकृति और पीत वर्ण (पीला रंग) के होते हैं। थारूओं में संयुक्त परिवार की प्रथा पायी जाती है। धार्मिक रूप से थारू हिन्दु धर्म के अनुयायी हैं। भैरव और महादेव विशेष रूप से पूज्य हैं। थारू हिन्दु त्योहार जैसे-होली, दशहरा इत्यादि हर्ष-उल्लास से मनाते हैं। लेकिन दिपावली को “शोक’ के रूप में मनाते हैं। “बजहर” नामक पर्व थारू जनजाति का विशेष त्योहार है जो ज्येष्ठ या साख में मनाया जाता है। थारू जनजाति की अर्थव्यवस्था कृषि और पशुपालन आधारित है।
  • बुक्सा जनजाति उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में निवास करती है। शारीरिक दृष्टि से बुक्सा, कद में छोटे होते हैं। इनकी छोटी आँख, चौड़ा चेहरा, चपटी नाक और भारी पलकें, इन्हें अलग पहचान देती हैं। सामाजिक रूप से बुक्सा हिन्दु समाज के नियमों को मानते हैं। समाज में स्तरीकरण पाया जाता है जिसमें बुक्सा ब्राह्मण को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होता है। वैवाहिक सम्बन्धों में बुक्सा अनुलोम, प्रतिलोम तथा अन्तर्जातीय विवाह करते हैं लेकिन हिन्दु समाज से भिन्न बुक्सा जनजाति में विवाह मात्र एक अनुबन्ध होता है। बुक्सा समाज में विधवा विवाह भी प्रचलित है। पारिवारिक दृष्टि से बुक्सा समाज में थारूओं के समान संयुक्त प्रथा प्रचलित है। बुक्सा हिन्दु धर्म के अनुयायी होते है, महादेव, लक्ष्मी, राम, कृष्ण इत्यादि देवताओं की अराधना करते हैं। काशीपुर की चामुण्डा देवी इनकी सबसे बड़ी देवी मानी जाती हैं। बुक्सा की अलग राजनीतिक संस्था होती है जिसे “बिरादरी पंचायत” कहा जाता है। बुक्सा जनजाति, नौकरी करना कम पसंद करती है इसलिए आर्थिक रूप से ये कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर होते हैं। साथ हा डलिया बुनना, मछली पकड़ने का जाल बनाना तथा बर्तन इत्यादि बनाने का व्यवसाय भी करते हैं।
  • खैरवार जनजाति प्रदेश के मिर्जापुर, सोनभद्र, देवरिया, गाजीपुर और बलिया जिले में निवास करती मूल क्षेत्र झारखण्ड का पलाम क्षेत्र है। ये कई उपजातियों-सूरजवंशी, परबन्दी, दौलतबन्दी. खेरी रात में विभाजित हैं। शारीरिक रूप से खैरवार बलिष्ठ और बहादुर होते हैं। इनकी बोली/भाषा में “कर्षण है। ये अनुनासिक ध्वनियों (रे, तोर, मोर, केकर) का अधिक प्रयोग करते हैं। धार्मिक रूप से खैरवार के अनुयायी होते हैं लेकिन साथ ही प्रकृति-पूजक भी हैं। ये सेमल, पीपल, नीम इत्यादि वक्षों तथा इत्यादि जन्तुओं की पूजा करते हैं। हिन्दू पर्व-त्योहार हर्षोल्लास से मनाते हैं। आर्थिक दृष्टि से खैरवार पर एवं वनोत्पाद पर निर्भर थे क्योंकि ये भूमिहीन रहे हैं। वन क्षेत्र में प्रतिबंध आरोपित हो जाने के कारण व अधिकांश खैरवार मजदूरी और भिक्षाटन पर निर्भर हैं।
  • महीगीर जनजाति उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नजीबाबाद क्षेत्र में मुख्यतः अधिवासित है। महीगीर जनजाति इस्लाम धर्म की अनुयायी है। समाज में वर्ण एवं जाति का विभेद कम पाया जाता है। ये अपने समाज में ही वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं। आर्थिक रूप से महीगीर “मत्स्यन” पर निर्भर हैं। ये मछुआरे हाते हैं। महीगीर जनजाति की अलग राजनीतिक संरचना/संस्था होती है। ग्राम व नगर अलग-अलग पंचायतों द्वारा प्रशासित होता है। पंचायत में प्रमुख पदाधिकारियों का पद आनुवांशिक होता है।
  • इसके अतिरिक्त प्रदेश में अगरिया (सोनभद्र), बैगा (सोनभद्र), सहरिया (ललितपुर), पढारी (सोनभद्र) इत्यादि अन्य जनजातियाँ भी पायी जाती हैं। जो हिन्दु धर्म के अनुयायी हैं तथा आर्थिक रूप से प्राथमिक क्रियाकलाप करते हैं।

निष्कर्षः

संस्कृति, धार्मिक और मुख्य धारा से अलग जनजातीय समाज आर्थिक-सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है। इसलिए जनजातीय समुदाय को मुख्य धारा में लाकर ही समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

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