उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्यों की चर्चा करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • संक्षेप में लोकनृत्य को परिभाषित करें।

मुख्य भाग:

  • उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोक नृत्यों जैसे- चरकुला, नौटंकी, कलाबाजी, धोबिया राग इत्यादि का महत्व बताएं।

निष्कर्ष:

  • बताएं कि लोकनृत्य उत्तर प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक है परन्तु वर्तमान सिनेमा आदि क्षेत्रों ने इसके महत्व को प्रभावित किया है।

उत्तर

भूमिकाः

लोक परम्पराओं का लोक धुन पर संगीतमय अभिनय जो शरीर के विभिन्न अंगों के विशेष मुद्राओं के माध्यम से अभिव्यक्त लोक नृत्य कहलाता है। उत्तर प्रदेश में इसे कई नामों से जाना जाता है, जैसे- चरकुला, शैरा नृत्य, धोबिया राग आदि।

मुख्य भागः

उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य इस प्रकार से हैं-

  • चरकुला: एक घड़ा नृत्य है जो ब्रजभूमि का प्रसिद्ध है। यह नृत्य सिर पर रथ का पहिया रखकर उस पर कई घड़ों को रखकर किया जाता है।
  • नौटंकी: उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक प्रचलित लोकनृत्य है, जिसका मूल स्वरूप, वीथि नाटक का है। इसमें हाथरसी तथा कानपुरी नाट्य शैलियों द्वारा संवाद, गायन एवं लोकनृत्य के माध्यम से लोक कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
  • धोबिया राग: यह धोबी जाति का नृत्य है, इसमें एक नर्तक धोबी तथा दूसरा उसका गधा बनता है।
  • कलाबाजी: अवध क्षेत्र के इस नृत्य में नर्तक कच्ची घोड़ी पर सवार होकर तथा मोर बाजा (विंड पाइप) लेकर कलाबाजी करते हुए नृत्य करते हैं।
  • जोगिनी: साधु वेशधारी स्त्री रूप पुरूष नर्तक तथा साधुवेशधारी पुरूष नर्तकों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।
  • पाई डंडाः यह बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध नृत्य है, जो अहीरों द्वारा किया जाता है।
  • राई नृत्य: यह बुन्देलखण्ड की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
  • धुरिया समाजः यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र की कुम्हार जाति के नर्तक पुरूषों द्वारा स्त्री वेश धारण करके प्रस्तुत किया जाता है।
  • शैरा नृत्य: यह बुन्दलेखण्ड क्षेत्र के हमीरपुर, झांसी तथा ललितपुर जिलों में प्रसिद्ध है। यह नृत्य वर्षा ऋतु में युवकयुवतियों द्वारा हाथ में डंडा लेकर किया जाता है।
  • नटवरी नृत्यः पूर्वी उत्तर प्रदेश के अहीरों तथा यादवों में प्रचलित यह नृत्य संगीत एवं नक्कारों की लय पर खेल मुद्राओं में प्रदर्शित किया जाता है।
  • धीवर रागः यह धीवर अथवा कहार जाति द्वारा किया जाने वाला गायन नृत्य मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
  • छोलियाः राजपूतों में प्रचलित इस नत्य गीत का प्रस्तुतिकरण तलवार और ढाल लेकर किया जाता है।
  • करमानृत्यः यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों में केवल कोल जनजातियों के स्त्री एवं पुरूषों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।

निष्कर्षः

निष्कर्षतः यही कहा जाता है कि लोकनृत्यों का भी विषयवस्तु लोकगीतों की तरह सांस्कृतिक परम्पराओं पर आधारित होता है। इसकी निरन्तरता संस्कृति संरक्षण को प्रोत्साहित करती है यद्यपि अब आधुनिक सिनेमा एवं अन्य मनोरंजन के साधनों की उपलब्धता ने लोकनृत्यों का महत्व कमतर किया है।

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