प्रौद्योगिकी में बदलाव के साथ, वित्तीय धोखाधड़ियाँ संगठित अपराध

प्रश्न: प्रौद्योगिकी में बदलाव के साथ, वित्तीय धोखाधड़ियाँ संगठित अपराध के आकार एवं तौर-तरीके ग्रहण कर रही हैं। ऐसी प्रवृत्ति के निहितार्थों की चर्चा कीजिए और भारत में एक सुदृढ़ धोखाधड़ी प्रबंधन प्रणाली विकसित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • प्रौद्योगिकी में बदलावों तथा हाल के वर्षों में संगठित अपराध का आकार ग्रहण करने वाले वित्तीय धोखाधड़ियों के विस्तार के मध्य संपर्क स्थापित कीजिए।
  • इस प्रकार की प्रवृत्ति के प्रभावों को विविध आयामों के अनुसार सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत में एक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली विकसित करने हेतु एक समग्र दृष्टिकोण सुझाइए।

उत्तर

प्रौद्योगिकी के बढ़ते साधनों के माध्यम से वित्तीय लेन-देन के साथ-साथ वित्तीय धोखाधड़ी की घटनाओं में भी वृद्धि देखी गई है। IIM के एक अध्ययन के अनुसार, 2012 से 2016 के मध्य बैंकिंग गतिविधियों में धोखाधड़ी के कारण भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को कम से कम 22,743 करोड़ रुपये की हानि हुई है। कम जोखिम होने की धारणा, राष्ट्रीय कानूनों में असमानता और धोखाधड़ी से संबंधित उच्च लाभ इसे संगठित आपराधिक समूहों हेतु एक बहुत ही आकर्षक गतिविधि बनाते हैं।

यद्यपि, प्रौद्योगिकी परिवर्तन का सबसे बड़ा संचालक है किन्तु वित्तीय संस्थानों द्वारा अपनाई गयी नई प्रौद्योगिकियां उन्हें विभिन्न खतरों, जैसे- फिशिंग, कार्ड स्किमिंग, विशिंग (Vishing), SMSishing, सोशल इंजीनियरिंग, वेबसाइट क्लोनिंग और साइबर स्टॉकिंग इत्यादि के प्रति सुभेद्य बना रही हैं।

इस प्रकार की प्रवृति के प्रभाव:

  • मनी लॉन्ड्रिंग और फण्ड को बेईमानी से अन्यत्र स्थानांतरित करना (साइफ़निंग) : गैर हिसाबी धन के शोधन (laundering) और नियोजन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी को एक प्लेटफार्म के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • पहचान की चोरी (Identity theft): पहचान की चोरी और गोपनीय डेटा चोरी करने के लिए हॉस्टाइल सॉफ्टवेयर प्रोग्राम, मालवेयर अटैक्स, फ़िशिंग, SMSishing और व्हेलिंग (उच्च निवल संपत्ति वाले व्यक्तियों को फिशिंग के माध्यम से लक्षित करना) करना।
  • BHIM भुगतान, डिजिटल लॉकर, ई-हस्ताक्षर इत्यादि जैसे डिजिटल पहलों को बाधित करना और उन्हें डीलेजिटीमाइज़ (de-legitimise) करना।
  • पूंजी बाज़ार: इंटरनेट-आधारित (IP) प्लेटफॉर्म पर सिक्युरिटी एक्सचेंजों की बढ़ती निर्भरता ने उन्हें साइबर धोखाधड़ी के प्रति तीव्रता से अतिसंवेदनशील बना दिया है।
  • आतंकवादी वित्त पोषण: समाज-विरोधी तत्व वित्तीय प्रणालियों में व्याप्त सुभेद्यता का अनुचित लाभ उठाकर वित्तीय लेन देन के निष्पादन में अनामिता तथा गैर-पारदर्शिता के अनुपयुक्त स्तर को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • अर्थव्यवस्था को अस्थिर बनाना: उच्च स्तरीय वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित व्यापक हानियाँ सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को कमजोर करने के साथ ही आर्थिक व्यवस्थाओं को भी अस्थिर बनाती हैं।

सुदृढ़ धोखाधडी प्रबंधन फ्रेमवर्क

  • नियामकों की भूमिका को पुनः परिभाषित करना 
  • बैंकिंग: बैंकों को अनैतिक गतिविधियों के विरुद्ध ग्राहकों की सुरक्षा हेतु सक्षम उन्नत उपकरण और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के अतिरिक्त उच्च स्तरीय जांच को सम्मिलित करने की आवश्यकता है।
  • बीमा: इंश्योरेंस फ्रॉड मॉनिटरिंग फ्रेमवर्क (IFMF) ने बीमा कंपनियों के लिए जोखिम प्रबंधन समिति और बीमा जोखिम भंडार को स्थापित करना अनिवार्य बना दिया है।
  • विसिल ब्लोइंग का तंत्र स्थापित करना: कंपनी अधिनियम के अनुसार वित्तीय धोखाधड़ी की घटना की मिलीभगत को रोकने के लिए निदेशकों और कर्मचारियों द्वारा वास्तविक मामलों की रिपोर्ट करने हेतु एक सतर्कता तंत्र स्थापित करना।
  • अंतर एजेंसी समन्वय: RBI एवं अन्य आर्थिक खुफिया एजेंसियों द्वारा अन्य वित्तीय एजेंसियों के साथ अपनी वित्तीय निरीक्षण रिपोर्टों का संक्षिप्त विवरण अधिक नियमित रूप से साझा किया जाना चाहिए।
  • डेटा विजुअलाइजेशन टूल्स: इनका उपयोग बहुआयामी डेटा को अर्थपूर्ण चित्रों अथवा ग्राफिक्स में परिवर्तित करने के लिए, जटिल डेटा पैटर्न्स और आउटलाइर्स को विजुअल रिप्रेजेंटेशन प्रदान करने हेतु किया जाना चाहिए। इस संबंध में, CBI बैंकिंग धोखाधड़ी की रोकथाम हेतु बैंक केस इनफार्मेशन सिस्टम (BCIS) को विकसित कर रही है।
  • व्यवहार विश्लेषण (Behavioural analytics): रियल टाइम अथवा घटना घटित हो जाने के बाद धोखाधडी गतिविधि की पहचान हेतु ग्राहक व्यवहार एवं वरीयताओं को समझने के लिए संस्थानों द्वारा डेटा एनालिटिक्स क्रियान्वयित किया जाना चाहिए।

भविष्य में आने वाली शाखा रहित बैंकिंग की प्रवृत्ति के लिए डिजिटल बैंकिंग का मुख्य आधार कनेक्टिविटी ही होने वाली है। अतः इस बात को समझते हुए आंतरिक नियंत्रणों के साथ ही ग्राहकों को भी शिक्षित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, वित्तीय संस्थानों द्वारा मौजूदा सुरक्षा नियंत्रणों को एक नए दृष्टिकोण तथा जोखिम सहने की क्षमता सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए।

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