भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट की स्थिति : प्लास्टिक अपशिष्ट एक प्रमुख पर्यावरणीय और लोक स्वास्थ्य संबंधी समस्या

प्रश्न: भारत में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, प्लास्टिक अपशिष्ट एक प्रमुख पर्यावरणीय और लोक स्वास्थ्य संबंधी समस्या है। स्पष्ट कीजिए। क्या प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 प्लास्टिक अपशिष्ट से संबंधित समस्याओं को हल करने में सहायता कर सकते हैं?

दृष्टिकोण

  • उत्तर की शुरुआत भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट की स्थिति और शहरी परिवेश में प्लास्टिक के उपयोग पर प्रकाश डालते हुए कीजिये।
  • पर्यावरण और लोक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक अपशिष्ट के हानिकारक प्रभावों के संबंध में लिखिए।
  • अंत में, चर्चा कीजिए कि नए नियमों के प्रावधानों से इस मुद्दे का समाधान करने में किस प्रकार सहायता मिल सकती है।

उत्तर

भारत, प्लास्टिक के शीर्ष 10 वैश्विक उपभोक्ताओं में से एक है। प्लास्टिक उत्पाद सस्ते, हल्के और बहु-उपयोगी होते हैं। इस कारण से उनका अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है। हालांकि, गैर-जैवनिम्नकरणीय होने के कारण यह पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जटिल समस्याएँ उत्पन्न करते है।

अन्य क्षेत्रों की तुलना में, शहरी भारत में प्लास्टिक की खपत अधिक है। प्लास्टिक कैरी बैग, प्लास्टिक अपशिष्ट के मुख्य स्रोतों में से एक है। इसके अतिरिक्त, अधिकांश प्लास्टिक पुनर्चक्रण इकाइयाँ घनी आबादी वाली शहरी मलिन बस्तियों में स्थित हैं। पुनर्चक्रण इकाइयों से निकलने वाला अपशिष्ट जल सीधे जल निकायों में प्रवाहित कर दिया जाता है।

पर्यावरण पर प्रभाव 

  • प्लास्टिक जलीय निकायों को अवरूद्ध कर देता है जिसके कारण जलीय जीवन प्रभावित होता है।
  • प्लास्टिक एक ऐसे नाभिक के रूप में कार्य करती है, जिस पर अन्य हानिकारक हाइड्रोफोबिक पदार्थ (जैसे DDT, हेक्सा क्लोरो बेंजीन) अवशोषित होते रहते हैं।
  • ये नाभिक मछलियों और अन्य समुद्री जीवों में अंतर्ग्रहण के माध्यम से समय के साथ जैव संचित (Bioaccumulate) होते रहते हैं।
  • उत्प्लवन के कारण, प्लास्टिक नए प्राकृतिक वासों में आक्रमक प्रजातियों के प्रवेश के लिए वाहक के रूप में कार्य करती है।

लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • जैव संचित प्लास्टिक खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • प्लास्टिक की थैलियाँ व बर्तन और अवरुद्ध नालियाँ व नाले, मच्छरों के लिए प्रजनन आधार बन जाते हैं। इन मच्छरों के कारण मलेरिया और चिकनगुनिया फैलता है।
  • प्लास्टिक में थेलेट्स (phthalates) और फायर रिटाडैट जैसे रसायन होते हैं, जो अंतःस्रावी तंत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
  • विषाक्त एकलकों (मोनोमर्स) से कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • निरंतर विस्तारित होने वाले लैंडफिल क्षेत्रों ने रोगाणुओं को प्रजनन आधार प्रदान करते हुए सार्वजनिक समस्या का रूप धारण कर लिया है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट के दहन से खतरनाक डाइऑक्सिन उत्पन्न होता हैं।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 से इस समस्या के समाधान में निम्नलिखित तरीकों से सहायता प्राप्त होगी।

  • प्लास्टिक की थैलियों के लिए 50 माइक्रॉन मोटाई निर्धारित करने के कारण इसकी लागत में 20% वृद्धि होने की संभावना है। इसलिए, नि:शुल्क कैरी बैग देने की प्रवृत्ति में कमी आएगी और कचरा-बीनने वालों द्वारा इसका संग्रह बढ़ जाएगा।
  • उत्पादों के निर्माता/ब्रांड स्वामियों द्वारा विभिन्न उत्पादों से उत्पन्न अपशिष्ट वापस एकत्र करने की प्रणाली प्रचलित करने से प्लास्टिक अपशिष्ट के संग्रह, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण में सुधार आएगा।
  • गैर-पुनर्चक्रण योग्ये अनेक परतों वाले प्लास्टिक का निर्माण और उपयोग चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाएगा।
  • इसमें अपशिष्ट उत्पादकों के उत्तरदायित्वों (पृथक्करण, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए शुल्क का भुगतान आदि) तथा खुदरा विक्रेताओं और फेरीवालों के उत्तरदायित्वों का स्पष्ट रूप से निर्धारण किया गया है।
  • प्लास्टिक के पुन: उपयोग के सम्बन्ध में अनुशंसित विभिन्न अनुप्रयोगों यथा सड़क निर्माण, अपशिष्ट से तेल निष्कर्षण और अपशिष्ट से ऊर्जा का निर्माण आदि के माध्यम से प्लास्टिक के पुनर्चक्रण में वृद्धि होगी।

हालांकि, वांछनीय परिणाम प्राप्त करने के लिए नियमों का भली-भाँति कार्यान्वयन अत्यंत आवश्यक है।

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