अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना की वापसी : भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों

प्रश्न: अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की स्थिति में भारत के समक्ष आ सकने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। परिवर्तित होती परिस्थितियों के संदर्भ में भारत के पास अपने हितों की रक्षा करने के लिए कौन-से विकल्प हैं?

दृष्टिकोण

  • परिचय के अंतर्गत इसमें शामिल मुद्दों को संक्षेप में रेखांकित कीजिए।
  • अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना की वापसी के कारण भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि परिवर्तित होती परिस्थितियों के संदर्भ में भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए कौन-से कदम उठाने चाहिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अफगानिस्तान में मौजूदा अमेरिकी सैन्य बलों को 14,000 से घटाकर 7,000 करने के निर्णय के अफगानिस्तान के लिए दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। हालाँकि, अफगानिस्तान के एक विकास साझेदार के साथ-साथ एक पड़ोसी देश होने के नाते भारत को भी इस निर्णय के परिणामस्वरूप निम्नलिखित संभावित चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा: 

  • सुरक्षा: अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्य बलों की वापसी से समझौता वार्ताओं के संदर्भ में तालिबान जैसे समूहों की शक्ति को मजबूती मिलेगी। यह भारत की सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा क्योंकि इस निर्णय से अल-कायदा एवं हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी संगठन मजबूत होंगे। विशेषकर जम्मू एवं कश्मीर में मौजूदा स्थिति प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती है।
  • मानवीय मुद्दे: नागरिक अशांति अफगान के एक बड़े पैमाने पर पलायन का कारण बन सकती है तथा इससे शरणार्थी संकट जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है जिसके भारत के लिए नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।

आर्थिक प्रभाव:

  •  यदि तालिबान सत्तारूढ़ हो जाता है तो भारत द्वारा अफगानिस्तान में सलमा बांध, अफगान संसद भवन के निर्माण आदि हेतु किए गए निवेश निरर्थक सिद्ध हो सकते हैं।
  • अफगानिस्तान में उत्पन्न अस्थिरता के कारण TAPI पाइपलाइन जैसी क्षेत्रीय परियोजनाओं के समक्ष अवरोध उत्पन्न हो सकते हैं।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता: अफगानिस्तान में इस्लामिक शासन की स्थापना से, पाकिस्तान इस देश में एक केंद्रीय अभिकर्ता के रूप में उभर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय अस्थिरता में वृद्धि हो सकती है।

अतः परिवर्तित होती परिस्थितियों के संदर्भ में अपने हितों की रक्षा हेतु भारत के समक्ष उपलब्ध विकल्प निम्नलिखित हैं:

  • कूटनीतिक प्रयास: भारत को समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर सहयोग करने की आवश्यकता है, ताकि इस क्षेत्र में शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के साथ-साथ अपने रणनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके। अफगानिस्तान में भावी कार्यवाहियों को समझने तथा स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु उपयुक्त कदम उठाने के लिए, भारत को अमेरिका के साथ संबद्धता बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
  • अफगानिस्तान की सुरक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करना: भारत को विकासात्मक सहायता से परे अपने वर्तमान प्रयासों में वृद्धि करने की आवश्यकता है, ताकि मौद्रिक और सामग्री सहायता प्रदान कर अफगान सरकार की सुरक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ किया जा सके।
  • अफगानिस्तान के साथ संबंध मजबूत करना: भारत द्वारा इस क्षेत्र में स्वयं द्वारा अर्जित साख तथा विकसित किए गए संपर्कों के माध्यम से तालिबान-विरोधी ताकतों (अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किए बिना) को सुदृढ़ बनाए जाने की आवश्यकता है। भारत को आर्थिक, सामाजिक और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में अफगानिस्तान के साथ अपने सहयोग को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करना: इस क्षेत्र में पहले से ही सुदृढ़ पाकिस्तान से निपटने हेतु पाकिस्तान के संदर्भ में एक अधिक सूक्ष्मतापूर्ण ढंग से निर्मित नीति को अपनाना होगा।
  • सीमा सुरक्षा को सुदृढ़ करना: घरेलू स्तर पर, भारत को अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य तैयारियों को बढ़ाने, खुफिया एवं सैन्य संगठनों के मध्य सहयोग विकसित करने और सशस्त्र बलों एवं सीमा सुरक्षा का आधुनिकीकरण करने की आवश्यकता है, ताकि अफगानिस्तान में नागरिक विद्रोह एवं सैन्य-बलों की वापसी के पश्चात उत्पन्न क्षेत्रीय अस्थिरता से निपटा जा सके।

यह न केवल अफगानिस्तान की भारत के साथ मित्रता को सुनिश्चित करेगा बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि यह भारतविरोधी समूहों के लिए शरणस्थली न बन सके। इसके अतिरिक्त, भारत को उपर्युक्त चुनौतियों से समग्र एवं प्रभावी तरीके से निपटने के लिए भी तैयार करेगा।

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