कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न व कानूनी और संस्थागत ढांचे

प्रश्न: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिए वर्तमान प्रावधानों के अधिक प्रभावी क्रियान्वयन के साथ ही, मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढांचे को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिए वर्तमान प्रावधानों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 
  • उनके अधिक प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  • मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढांचे में विद्यमान अंतराल को पाटने और उन्हें सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  • आगे की राह सुझाइए।

उत्तर

1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए विशाखा दिशानिर्देशों के पश्चात, सरकार द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013, को पारित किया गया इसके अंतर्गत “यौन उत्पीड़न” को परिभाषित करने के साथ-साथ इसके लिए निवारण तंत्र का प्रावधान किया गया है।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • अधिनियम के अनुसार यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों को सुनने और उनका निराकरण करने के लिए 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले किसी संगठन के प्रत्येक कार्यालय अथवा शाखा में सिविल न्यायालय की शक्तियां धारण करने वाली एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) गठित करना अनिवार्य है।
  • प्रत्येक जिले में ऐसे संगठनों से जहां दस से कम कर्मचारी होने के कारण ICC का गठन नहीं किया गया है या यदि शिकायत स्वयं नियोक्ता के विरुद्ध है, वहाँ लैंगिक उत्पीड़न की शिकायत की जांच करने के लिए स्थानीय शिकायत समिति (LCC) का गठन किया जाएगा।
  • अपराध की गंभीरता के आधार पर किसी व्यक्ति को 3 वर्ष का कारावास से आजीवन कारावास तक का दंड दिया जा सकता है।

वर्तमान प्रावधानों के अधिक प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता

  •  2016-2018 के दौरान राष्ट्रीय महिला आयोग के पास दर्ज यौन उत्पीड़न के मामलों की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है।
  • राष्ट्रीय मानव संसाधन विकास नेटवर्क और KelpHR द्वारा 2018 में किए गए एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि देश में 23% संगठनों द्वारा यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम 2013 का पूर्णतः अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
  • FICCI के एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 2015 तक, 50% से अधिक कंपनियों ने ICC में अप्रशिक्षित कर्मचारियों को नियुक्त किया था।
  • #Metoo आंदोलन के तहत सामने आने वाले यौन उत्पीड़न के मामले भी शिकायत तंत्र की स्थिति की गंभीरता को अभिव्यक्त करते हैं।
  • कार्य स्थल पर एक सुरक्षित परिवेश प्रदान करने में विफल रहने के लिए अभियोजन का कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जो अधिनियम की धारा 26(1)(b) के तहत दंडनीय है।

वर्तमान कानूनी और संस्थागत ढांचे को सुदृढ़ बनाना:

  • अपने वर्तमान स्वरूप में प्रचलित कानून, महिलाओं के अधिकारों और विधि की सम्यक प्रक्रिया को सीमित करता है: 
  • शिकायत दर्ज करने के लिए तीन महीने की समय सीमा के साथ समिति को प्राप्त सीमित शक्तियों को विस्तारित किया जाना चाहिए।
  • लिखित शिकायत पर बल दिया जाना चाहिए।
  • जांच करने के तरीकों संबंधी दिशानिर्देशों की संख्या अत्यधिक कम है।
  • जबकि झूठी और दुर्भावनापूर्ण शिकायतों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करने पर नियोक्ता हेतु एक आपराधिक अपराध निर्धारित किया गया है फिर भी कर्तव्यों का अनुपालन नहीं करने पर अधिरोपित जुर्माना अत्यल्प है।

संस्थागत क्षेत्र में, एक समग्र निरीक्षण की आवश्यकता:

  • महिलाओं के उत्पीडन के संबंध में नियोक्ता का कोई उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया गया है।
  • सुरक्षित कार्य परिवेश प्रदान करने में विफल रहने पर महिला के प्रति नियोक्ता का कोई सिविल दायित्व नहीं है।
  • स्थानीय समिति उन मामलों में स्वतः कार्रवाई नहीं कर सकती है और उन मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है,  जहां आंतरिक शिकायत समिति का गठन नहीं किया गया है या उसका मत एक स्पष्ट पूर्वाग्रह युक्त है।
  • एक ऐसे अपीलीय प्राधिकारी, जिसके पास शिकायतकर्ता शिकायत समिति के निर्णयों को चुनौती दे सके, की नियुक्ति के संदर्भ में स्पष्टता का अभाव है।
  • वर्तमान अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार तृतीय पक्षकार को हस्तक्षेप का अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • अधिनियम के अप्रभावी कार्यान्वयन के आलोक में, सरकार ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के निवारण और उनसे निपटने के लिए कानूनी और संस्थागत ढांचे को सुदृढ़ बनाने के लिए मंत्रियों (GoM) के एक समूह का गठन किया है। साथ ही, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने सेक्सुअल हैरेसमेंट इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स (SHe-Box) की स्थापना की है, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक ऑनलाइन शिकायत प्रणाली है।

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