‘कुपोषण मुक्त भारत’ :  भारत में जेनेरिक दवाओं की आवश्यकता

प्रश्न: विगत पहलों में किए गए उपर्युक्त सुधारों के माध्यम से भारत ‘कुपोषण मुक्त भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होगा। भारत में जेनेरिक दवाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए, उनकी कम उपलब्धता और स्वीकरण हेतु उत्तरदायी कारणों का विवरण प्रस्तुत कीजिए। साथ ही, इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों का भी उल्लेख कीजिए। (150 words)

दृष्टिकोण

  • जेनेरिक दवाओं की परिभाषा देते हुए उत्तर आरंभ कीजिए तथा उनकी आवश्यकता के संबंध में संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • उनकी कम उपलब्धता और कम उपयोग हेतु उत्तरदायी कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत में जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता और उनके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों का सुझाव दीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

जेनेरिक दवा एक प्रकार की फार्मास्यूटिकल दवा है जो मात्रा (डोज़), क्षमता, दवा प्रयोग करने के तरीकों (route of administration), गुणवत्ता, प्रभाव और इच्छित उपयोग के संदर्भ में ब्रांडेड दवाओं के समान ही होती है। ये ऐसी किसी भी दवा को संदर्भित करती है, जिनका विपणन विज्ञापन के बिना उनके रासायनिक नाम के अंतर्गत किया जाता है।

स्वास्थ्य पर नवीनतम राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) सर्वेक्षण के अनुसार, 2014 में दवाएं कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रमुख घटक के रूप में उभरी हैं अर्थात् इनकी भागीदारी ग्रामीण क्षेत्रों में 72% और शहरी क्षेत्रों में 68% है। भारत स्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (स्वास्थ्य पर किया जाने वाला वह व्यय जिसे राज्य या किसी बीमा कंपनी द्वारा वहन नहीं किया जाता है बल्कि स्वयं व्यक्ति द्वारा किया जाता है) वाले देशों में से एक है।

अत: दवाओं की कीमतों में मामूली कमी भी सैकड़ों परिवारों को ‘मेडिकल पावर्टी ट्रैप’ (चिकित्सा व्यय के कारण निर्धनता के दुष्चक्र में फंसना) से मुक्त कर सकती है।

इस परिदृश्य में, यह अपेक्षा की जाती है कि जेनेरिक दवाओं के कारण दवाओं की कीमतें कम होंगी (क्योंकि वे ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 30% से 70% तक सस्ती होती हैं) तथा साथ ही “सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा” प्राप्त करने के लिए वहनीय स्वास्थ्य समाधान तक पहुंच का विस्तार भी हो सकेगा। इसके अतिरिक्त, जेनेरिक दवा के उपयोग को बढ़ावा देकर भारत सरकार अपने जेनेरिक दवा उद्योग को संरक्षण प्रदान कर सकेगी। भारत विश्व में कम लागत वाली दवाओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।

जेनेरिक दवाओं को निम्न कारणों से कम उपलब्धता और लोगों द्वारा उपयोग संबंधी समस्या का सामना करना पड़ रहा है:

कम उपलब्धता:

  • आपूर्ति पक्ष संबंधी चुनौती: भारतीय फार्मेसी क्षेत्र निम्नस्तरीय आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन की समस्या का सामना कर रहा है। यह बड़े पैमाने पर घरेलू जेनेरिक दवा उत्पादन किए जाने को बाधित करता है।
  • कठोर बौद्धिक सम्पदा अधिकार व्यवस्था : भारतीय जेनेरिक दवा निर्माता एक स्पष्ट प्रतिबंधात्मक बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) व्यवस्था के तहत कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, जेनेरिक दवाओं का उत्पादन केवल तभी किया जा सकता है, जब उन दवाओं का पेटेंट और अनन्य रूप से संरक्षित ब्रांड-नेम संस्करण समाप्त हो जाए।
  • जेनेरिक दवाओं का कम प्रचार एवं प्रदर्शन: मेडिकल स्टोर्स (फार्मेसियों) को ब्रांडेड दवाओं की बिक्री पर कमीशन प्राप्त होता है, इसलिए वे जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता को प्रदर्शित नहीं करते हैं।
  • लाभ-संचालित बाजार: निजी फार्मा कंपनियों के मध्य अत्यधिक प्रतिस्पर्धा (cut-throat competition) एवं आक्रामक विपणन रणनीतियों का प्रचलन है और ऐसे में वे कम लाभ प्रदान करने वाली जेनेरिक दवाओं के बजाय उच्च मार्जिन प्रदान करने वाली वाली ब्रांडेड दवाओं की बिक्री से अपने मुनाफे को अधिकतम बनाती हैं।

कम उपयोग:

  • दवाओं की गुणवत्ता और निम्न स्तरीय उत्पादन पद्धतियां: वर्तमान में जेनेरिक दवाओं के प्रत्येक बैच (लॉट) की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए कोई व्यवस्थित प्रक्रिया निर्धारित नहीं है और इसके परिणामस्वरूप उनकी गुणवत्ता की निश्चित रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती है।
  • जेनेरिक दवाओं को प्रेस्क्राइब न किया जाना: जेनेरिक दवाओं को सामान्यतः चिकित्सकों और स्वास्थ्य पेशेवरों (जो ड्रग के ब्रांडेड संस्करण को प्रेस्क्राइब करने के लिए फार्मा कंपनियों से कुछ निश्चित कमीशन/लाभ प्राप्त करते हैं) द्वारा प्रेस्क्राइब नहीं किया जाता है।
  • पर्याप्त जागरुकता का अभाव: अधिकांश लोगों को दवाओं के रासायनिक या जेनेरिक नामों के बजाय दवाओं के ब्रांड नेम के बारे में पता होता है। इसके अतिरिक्त, लोगों में यह धारणा भी प्रचलित है कि जेनेरिक दवाओं की कीमत तुलनात्मक रूप से कम होने के कारण उनकी गुणवत्ता भी निम्न हो सकती है।

उपर्युक्त मुद्दों पर ध्यान देते हुए भारत में जेनेरिक दवाओं के प्रोत्साहन हेतु सरकार द्वारा उठाए गए मुख्य कदम निम्नलिखित हैं:

  • जन औषधि स्टोर (JAS) नाम से विशेष दुकानों की शुरुआत की गई है। इनके माध्यम से संपूर्ण देश में सभी को, विशेष रूप से निर्धन लोगों को, वहनीय कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि योजना प्रारंभ की गई है।
  • प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों (PMBJP) के माध्यम से कम से कम एक PMBJP केंद्र खोलने के लक्ष्य के साथ सभी को वहनीय कीमत पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराना है।
  • मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) द्वारा अनुशंसा की गयी है कि प्रत्येक चिकित्सक को दवाएं उनके जेनेरिक नाम के साथ प्रेस्क्राइब करनी चाहिए।
  • सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र में मौजूदा दवा कंपनियों की क्षमता का उपयोग करके जेनेरिक दवाएं वहनीय कीमत पर उपलब्ध करायी जा सकें।
  • तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों ने दवा खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर वर्ष दर वर्ष अत्यधिक प्रतिस्पर्धी कीमतों पर जेनेरिक दवाओं की सफलतापूर्वक खरीद की है।

जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला तंत्र में सुधार वर्तमान समय की मुख्य आवश्यकता है। इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं की जैविक विशिष्टाताएं समान हों, इन दवाओं के लिए व्यापक स्तर पर विपणन और जागरुकता अभियान प्रारंभ किया जाना चाहिए, फार्मेसियों को इन दवाओं की उपलब्धता दर्शाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और मौजूदा दवा नियामक एवं गुणवत्ता नियंत्रण संरचना को सुदृढ़ किया जाना चाहिए। साथ ही, ब्यूरो ऑफ फार्मा PSUs ऑफ इंडिया (BPPI) को जेनेरिक दवाओं के निर्माण में प्रभावी सहयोग एवं समन्वय स्थापित करना चाहिए।

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