प्रस्तावना में 73वें संशोधन तथा पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) का वर्णन : विभिन्न मापदंडों के आधार पर PRIs की सफलता और विफलता

प्रश्न: पंचायती राज संस्थाएं (PRIs) एक उल्लेखनीय सफलता होने के साथ-साथ स्तब्धकारी विफलता भी हैं, यह केवल इस बात पर निर्भर करता है कि इनका मूल्यांकन किन लक्ष्यों के आधार पर किया जा रहा है। चर्चा कीजिए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • प्रस्तावना में 73वें संशोधन तथा पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) का वर्णन कीजिए।
  • उन मापदंडों को रेखांकित कीजिए, जिनके आधार पर PRIs को सफल माना जा सकता है।
  • विभिन्न मापदंडों के आधार पर PRIs की विफलता को रेखांकित कीजिए।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

73वें संशोधन से प्राप्त संवैधानिक अधिदेशों सहित पंचायती राज संस्थाएं (Panchayati Raj Institutions: PRIs) भारत में लोकतांत्रिक शासन के प्रमुख स्तंभ हैं। अपनी स्थापना के दो दशकों की अवधि के दौरान PRIs ने कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं, हालाँकि इसकी अपूर्ण क्षमता को इसकी विफलता के रूप में देखा जाता है।

सफलता:

  • निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या: ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर लगभग 3 मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ PRIs के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हुई है।
  • महिलाओं का सशक्तिकरण: PRIs में महिलाओं हेतु 33% आरक्षण के संवैधानिक अधिदेश के उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त हुए हैं। कई राज्यों में महिलाओं को 50% तक आरक्षण प्रदान किया गया है। पंचायती राज संस्थाओं की महिला नेताओं ने विशेषकर महिला उन्मुखी मुद्दों की तरफ अधिक ध्यान केन्द्रित किया है।
  • हाशिए पर रह रहे लोगों को जमीनी स्तर पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करना: यह सरकार का एकमात्र ऐसा स्तर है, जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को शासन के अंतर्गत वास्तविक महत्त्व प्रदान किया गया है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार अनुसूचित जाति के सरपंचों द्वारा अनुसूचित जाति के ग्रामों में जनहित में निवेश करने की अधिक संभावना पाई जाती है।

विफलताएं:

  • अधिकार एवं कार्य: 73वें संशोधन अधिनियम के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा सूचीबद्ध कार्य हस्तांतरित किए जाने हैं, परन्तु उनके द्वारा PRIs को बहुत ही कम अधिकार एवं कार्य सौंपे गए हैं। जल, स्वच्छता, सामुदायिक संपत्तियों के रखरखाव जैसे मूलभूत कार्यों का संचालन अभी भी राज्य सरकारों द्वारा ही किया जाता है।
  • वित्त पोषण: करारोपण की शक्ति को, यहाँ तक कि PRIs के दायरे के अंतर्गत आने वाले विषयों के लिए भी, राज्य विधायिका द्वारा विशेष रूप से अधिकृत किये जाने की आवश्यकता होती है। यद्यपि राज्य वित्त आयोगों ने धन के अधिक से अधिक आवंटन का समर्थन किया है, परंतु इस सन्दर्भ में राज्यों द्वारा बहुत कम कार्रवाई की गई है।
  • कार्यकर्ता: कई राज्य सरकारों ने शक्तियों के विभाजन के पश्चात PRIs में आवश्यक कर्मचारियों का हस्तांतरण नहीं किया है। सरकारी अधिकारी भी निर्वाचित PRIs के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य करने के लिए तैयार नहीं हैं और पंचायतों के तहत सेवारत प्रशासनिक कर्मी भी स्थानीय निकायों की बजाए राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  • जिला योजना समिति: अधिकांश राज्यों में मसौदा विकास योजना तैयार करने हेतु जिला योजना समिति (District Planning Committee:DPC) स्थापित करने के आदेश का उल्लंघन एवं विरूपण किया गया है। समांतर निकाय स्थानीय सरकारों (Local Governments: LGs) के कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं।
  • क्षमता निर्माण: कमजोर वर्ग से संबंधित पंचायतों के सदस्यों का पर्याप्त मात्रा में क्षमता निर्माण नहीं हो पा रहा है। उदाहरण के लिए, ‘सरपंच पति’ जैसी चुनौतियों के कारण महिलाओं की वास्तविक भागीदारी नहीं हो पा रही है।
  • MPLAD (Member of Parliament Local Area Development) Site MLALAD (Member of Legislative Assembly Local Area Development) जैसी समानांतर योजनाओं और एजेंसियों द्वारा निरंतर स्थानीय सरकारों की अवहेलना की जाती है।

अतः जमीनी स्तर पर शासन की प्रभावकारिता हेतु एकमात्र दीर्घकालिक समाधान यही है कि वास्तविक वित्तीय संघवाद को बढ़ावा दिया जाए, जिसमें PRIs को अपने संसाधनों में वृद्धि करने हेतु करारोपण करने, उसे एकत्र करने एवं उसका उपयोग करने का अधिकार प्राप्त हो। साथ ही शक्तियों का उपयुक्त विभाजन भी किया जाए ताकि PRIs अपनी समस्याओं का निवारण करने में भली-भांति सक्षम बन सकें।

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