मौलिक कर्तव्यों और उनकी व्यापक विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: मौलिक कर्तव्यों की अहमियत, लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति उतना ही जागरूक बनाकर लोकतांत्रिक संतुलन स्थापित करने में निहित है, जितना वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  •  मौलिक कर्तव्यों और उनकी व्यापक विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • लोकतांत्रिक संतुलन स्थापित करने में मौलिक कर्तव्यों के महत्व को रेखांकित कीजिए।
  • मौलिक कर्तव्यों की आलोचना के सम्बन्ध में चर्चा कीजिए।
  • मौलिक कर्तव्यों में समाविष्ट करने योग्य कुछ अन्य मूल कर्तव्यों के सम्बन्ध में सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।

उत्तर

स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर 42वें संविधान संशोधन द्वारा भाग IVA में मौलिक कर्तव्यों (FD) को जोड़ा गया था। इन कर्तव्यों का समावेश पूर्ववर्ती USSR के संविधान और न्यायशास्त्र के शासन से प्रेरित होकर किया गया है जिसके अनुसार प्रत्येक अधिकार से संबंधित एक कर्तव्य होता है।

मौलिक कर्तव्यों की मुख्य विशेषताएं

  • यह नैतिक उत्तरदायित्वों (जो स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को प्रदर्शित करते हैं) और नागरिक कर्तव्यों का मिश्रण (जो संविधान का सम्मान करते हैं) है।
  • उन कर्तव्यों की संहिता जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग रहे हैं।
  • केवल नागरिकों पर लागू हैं।
  • गैर न्यायोचित।

मौलिक कर्तव्य एक प्रकार से लोकतांत्रिक संतुलन को बनाए रखते हैं क्योंकि वे उन मौलिक अधिकारों के पूरक हैं जो नागरिकों को राज्यों और नीति निदेशक तत्वों (जो राज्य पर नैतिक कर्तव्यों को लागू करते हैं) के विरुद्ध संवैधानिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करते हैं। मौलिक कर्तव्यों का महत्व है, क्योंकि वे:

  • अधिकारों का उपयोग करते समय नागरिकों को उनके कर्तव्यों का स्मरण कराते हैं ताकि लोकतंत्र को मजबूत बनाया जा सके।
  • राष्ट्र विरोधी और गैर सामाजिक तत्वों के विरुद्ध चेतावनी के रूप में कार्य करते है।
  • नागरिकों के लिए प्रेरणा-स्रोत हैं और उन्हें राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने की प्रक्रिया में सक्रिय सहभागी बनाते हैं।
  • कानून की संवैधानिक वैधता निर्धारित करने के लिए न्यायालयों द्वारा प्रयोग किये जा सकते हैं।
  • संसद के कानून द्वारा प्रवर्तित किये जा सकते हैं, उदाहरणार्थ – राष्ट्रीय सम्मान के प्रति अपमान रोकथाम विधेयक, 1971।

हालांकि मौलिक कर्तव्यों की संतुलित भूमिका पर निम्नलिखित कारणों से प्रश्न उठाये गए है:

  •  कर्तव्यों की सूची पूर्ण नहीं है – करों का भुगतान, मतदान इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों को सम्मिलित नहीं किया गया है।
  • न्यायालय द्वारा अप्रवर्तनीय होने के कारण ये केवल नैतिक नियम बनकर रह जाते हैं।
  • कुछ कर्तव्य अस्पष्ट, महत्वाकांक्षी और आम आदमी के लिए समझने में कठिन होते हैं, उदा- वैज्ञानिक प्रवृति/दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
  • मौलिक कर्तव्यों को, मौलिक अधिकारों के स्तर पर रखने के लिए इन्हें भाग III के बाद जोड़ा जाना चाहिए था।

हालांकि आपातकाल के परिणामस्वरूप मौलिक कर्तव्यों को एक संशोधन द्वारा संविधान में जोड़ा गया था किन्तु आगे चलकर उत्तरवर्ती सरकारों ने भी इसे वापस नहीं लिया। 86वें संवैधानिक संशोधन द्वारा इसमें 11वें कर्तव्य को जोड़ा गया। यह तथ्य संविधान में उल्लिखित कर्त्तव्य-संहिता की सामाजिक एवं राजनीतिक स्वीकार्यता को और मज़बूत बनाता है। संसद को इन कर्तव्यों की समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए, ताकि इनके सारतत्त्व को बनाए रखा जा सके।

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