कॉरपोरेट गवर्नेस : भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेस के मार्ग में आने वाली बाधाऐं
प्रश्न: कॉर्पोरेट गवर्नेस को सुदृढ़ करने की आवश्यकता के संदर्भ में, कोटक पैनल के रिपोर्ट में सूचीबद्ध कंपनियों हेतु मानदंडों में आमूलचूल परिवर्तन का आह्वान किया गया है। भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेस के मार्ग में आने वाली बाधाओं पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिए और साथ ही मूल्यांकन कीजिए कि पैनल की सिफारिशें इनसे निपटने में कैसे सहायता कर सकती हैं? (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- संक्षेप में कॉरपोरेट गवर्नेस और इसे सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता समझाइए।
- भारत में कॉरपोरेट गवर्नेस के मार्ग में आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिए।
- कोटक पैनल द्वारा की गई सिफारिशों पर चर्चा कीजिए।
- कॉरपोरेट गवर्नेस में सुधार लाने में बोर्ड, लेखा परीक्षकों और नियामक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिए कि ये सिफारिशें बाधाओं पर विजय पाने में किस प्रकार सहायक होंगी।
- अन्य सुधार उपायों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर
कॉर्पोरेट गवर्नेस ऐसे नियमों, कार्यप्रणालियों और प्रक्रियाओं का तंत्र है, जिससे कंपनी निर्देशित और नियंत्रित होती है। इसमें अनिवार्य रूप से सभी हितधारकों के हितों में संतुलन स्थापित करना शामिल होता है। इसके साथ ही निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भी यह महत्वपूर्ण होता है।
भारत में कारपोरेट गवर्नेस के मार्ग में आने वाली बाधाएँ:
- हालांकि निदेशक मंडल शेयरधारकों द्वारा नियुक्त किया जाता है, किन्तु भारत में बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों के अधिकांश शेयरों का स्वामित्व किसी एक व्यक्ति या परिवार के पास होता है।
- इस कारण से निदेशक छोटे शेयरधारकों के हितों की रक्षा करने में अप्रभावी होते हैं।
- लेखा परीक्षा समिति (audit committee) का समझौतापूर्ण रवैया; स्वतंत्र निदेशकों के वास्तव में स्वतंत्र होने पर संदेह; रोजगार संबंधों की पूर्ण अनुपस्थिति।
- नियामकीय ढाँचे के अनुपालन का अभाव और कमजोर प्रवर्तन व निगरानी प्रणाली।
- सूचना के सम्बन्ध में पारदर्शिता एवं उसके प्रकटीकरण का अभाव।
- जिन कंपनियों में निवेशक निवेश करते हैं, उनके साथ उनका व्यापारिक संबंध।
कोटक समिति ने वर्तमान स्थिति की व्यापक जाँच-पड़ताल की और आमूलचूल परिवर्तन की सिफारिश की जिससे प्रशासन को बेहतर बनाने और निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायता मिलेगी। तीन मुख्य स्तम्भ (Three gatekeepers )– बोर्ड, लेखा परीक्षकों और नियामक को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया गया है। इस समिति ने निम्नलिखित पर बल दिया है:
स्वतंत्र निदेशक
- लघु निवेशकों की रक्षा करने के लिए बोर्ड में स्वतंत्र निवेशकों की संख्या 33% से बढ़ाकर 50% की जानी चाहिए।
- स्वतंत्र निदेशक की उपस्थिति के बिना बोर्ड की कोई बैठक नहीं होनी चाहिए।
- उन उपायों का सुझाव दिया जिनसे बोर्ड में सम्मिलित स्वतंत्र निदेशक वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र हों।
लेखापरीक्षा के संबंध में:
- सूचीबद्ध कंपनी द्वारा फंड का उपयोग विदेशी सहायक कंपनी सहित गैर-सूचीबद्ध सहायक कंपनियों में किये जाने की जाँच पड़ताल करने के लिए लेखा परीक्षा समिति।
- यह रिपोर्ट सूचीबद्ध कंपनियों के लेखांकन (accounting) और लेखा परीक्षा से सम्बंधित मुद्दों को शामिल करती है तथा बोर्ड के मूल्यांकन के तौर तरीकों की प्रभावशीलता में सुधार लाने का प्रयास करती है।
नियामक को सुदृढ़ बनाना:
- सूचीबद्ध इकाइयों में गवर्नेस के कार्यप्रणालियों में सुधार लाने के लिए बाजार नियामक की भूमिका को सुदृढ़ बनाना।
- आवश्यकता उत्पन्न होने पर SEBI के पास लेखा परीक्षकों के विरुद्ध कार्यवाही करने की शक्ति होनी चाहिए।
- SEBI को स्वयं में सूचीबद्ध कंपनियों को अधिक प्रभावी ढंग से विनियमित करने और छोटे शेयर धारकों के हितों की सुरक्षा करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
अन्य सुधार:
- इसने सरकारी कंपनियों के सम्बन्ध में यह सिफारिश की है कि स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति पर अंतिम नियंत्रण बोर्ड के पास होना चाहिए न कि नोडल मंत्रालय के पास।
- इसने रिलेटेड-पार्टी ट्रांजैक्शन से संबंधित सुरक्षा उपायों और सूचना के प्रकटीकरण में सुधार लाने के लिए कुछ मौलिक सुझाव दिए हैं।
- रिपोर्ट ने, मतदान और वार्षिक आम बैठक में भागीदारी के सन्दर्भ में लघु निवेशकों के समक्ष आने वाली समस्याओं को सम्बोधित करने का प्रयास करती है।
यद्यपि समिति की रिपोर्ट में अधिकांश सिफारिशें प्रकृति में वृद्धिशील (incremental) हैं, इसमें से कुछ सिफारिशें दूरगामी परिणाम भी रखती हैं। इनका उद्देश्य कॉर्पोरेट गवर्नेस को, विशेषकर कार्यान्वयन के क्षेत्र को अधिक सुदृढ़ बनाना है। इन सिफारिशों से कंपनी अधिनियम 2013 के उद्देश्यों को साकार करने और इसके आधार पर SEBI द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेस को बेहतर बनाने के लिए किये गए सुधारों की सफलता में सहायता प्राप्त होगी।
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