पेड न्यूज़ और राजनीतिक विज्ञापन और विनियमन

प्रश्न: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के आयोजन में पेड न्यूज़ और राजनीतिक विज्ञापन द्वारा प्रस्तुत चुनौतियां क्या हैं? संक्षेप में, इस मुद्दे का विनियमन करने हेतु लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। इन्हें दूर करने हेतु कौन-से अन्य कदम उठाए जा सकते हैं?

दृष्टिकोण:

  • पेड न्यूज़ की अवधारणा का परिचय दीजिए।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के आयोजन में पेड न्यूज़ एवं राजनीतिक विज्ञापन द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • इस मुद्दे का विनियमन करने हेतु लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) में संशोधन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  • इनसे निपटने हेतु उठाए जा सकने वाले अन्य कदमों को भी सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तरः

धन या अन्य किसी स्वरूप में लाभ प्राप्त करने हेतु किसी राजनीतिक विज्ञापन को समाचार या विश्लेषण के रूप में प्रकाशित करना पेड न्यूज कहलाता है। इसका उद्देश्य मतदाताओं द्वारा निर्दिष्ट विज्ञापन की तुलना में समाचार रिपोर्ट पर अधिक विश्वास किए जाने की प्रवृत्ति का लाभ उठाना है। इसलिए, पेड न्यूज समाचार रिपोर्ट की आड़ में मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर सकती  है।

स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के आयोजन में प्रस्तुत चुनौतियां:

  • यह राजनीतिक एजेंडा का प्रसार कर अनुचित रूप से लोक मत को प्रभावित करता है तथा नागरिकों के सूचना के अधिकार को बाधित कर उन्हें वास्तविकता से दूर करता है।
  • इस प्रकार के समाचारों एवं विज्ञापनों पर किये जाने वाले व्यय को सामान्यतः धन अथवा अन्य किसी प्रकार के लाभों के रूप में प्रदान किया जाता है, जिससे इस प्रकार के व्यय का पता लगाना कठिन हो जाता है। इससे चुनावी व्यय की पारदर्शिता में कमी आती है, जो आयकर और चुनावी व्यय संबंधी कानूनों के उल्लंघन को बढ़ावा देता है।
  • यह प्रतिस्पर्धा के समान स्तर को प्रभावित करता है और सम्पन्न व्यक्तियों एवं समाचार चैनलों के साथ जुड़ाव रखने वाले लोगों को अनुचित लाभ पहुँचा कर चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को प्रभावित करता है।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) में संशोधन की आवश्यकता:

वर्तमान में पेड न्यूज से निपटने हेतु RPA में कोई प्रावधान मौजूद नहीं है। हालाँकि, भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा RPA की धारा 10 का सहारा लिया जाता है। यह निधियों की गलत रिपोर्टिंग से संबंधित है तथा निकट अतीत में इसका उपयोग करते हुए निर्वाचित उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित किया गया है। हालांकि, स्पष्ट रूप से परिभाषित दायरे के अभाव के कारण निर्वाचन आयोग को विधिक बाधाओं का सामना करना पड़ा है। अतः,भारत के विधि आयोग द्वारा की गई अनुशंसाओं के अनुरूप RPA में संशोधन करना उचित होगा। इस संदर्भ में विधि आयोग ने “पेड न्यूज” को एक चुनावी अपराध घोषित करने तथा इसे प्रकाशित करने अथवा प्रकाशन हेतु उकसाने के लिए न्यूनतम दो वर्ष के कारावास की सजा के प्रावधान की अनुशंसा की है।

अन्य कदम

  • हितों और अन्य उद्योगों से संबद्धता का अनिवार्यतः अस्वीकरण एवं प्रकटीकरण।
  • संपादन एवं प्रबंधन को पृथक करना तथा निवारण तंत्र का सृजन करना।
  • मीडिया रैंकिंग फ्रेमवर्क का विकास करना और कंटेंट की निगरानी में शैक्षणिक निकायों एवं सिविल सोसाइटी को सम्मिलित करना।
  • चुनावी कवरेज हेतु न्यूज़ मीडिया के लिए सख्त दिशा-निर्देशों को तैयार करना।
  • चुनावों से 6 माह पूर्व से ही सरकारी अभियानों को हतोत्साहित करना और राजनीतिक विज्ञापनों का स्पष्ट रूप से पृथक निर्धारण सुनिश्चित करना।
  • भारतीय प्रेस परिषद्, न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी आदि द्वारा स्व-विनियमन के मानकों में वृद्धि करना।
  • मीडिया को सूचना का अधिकार (RTI) अथवा इसी प्रकार के किसी अधिनियम के अंतर्गत लाना।

इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया और ऑनलाइन विज्ञापन हेतु एक व्यापक नीति विकसित करना महत्वपूर्ण है, जिससे ये लोकतांत्रिक राजनीति की कार्यप्रणाली में अवरोध उत्पन्न करने वाले साधन न बनें।

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