1980 के दशक में जम्मू-कश्मीर में हिंसा की लहर उत्पन्न होने के कारणों का उल्लेख
प्रश्न: नियंत्रित करने के निरंतर प्रयासों के बावजूद, 1980 के दशक के उत्तरार्ध में उपद्रव (इंसजेंसी) आरंभ होने के बाद से ही जम्मूकश्मीर हिंसा की लहरों का साक्षी रहा है। आपकी राय में, राज्य में लगातार हिंसा के क्या कारण हैं? साथ ही, राज्य में स्थिति में सुधार के लिए उपाय भी सुझाइए।
दृष्टिकोण
- 1980 के दशक में जम्मू-कश्मीर में हिंसा की लहर उत्पन्न होने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- राज्य में हिंसा के निरंतर जारी रहने के क्या कारण हैं।
- राज्य में स्थिति में सुधार के लिए उपाय सुझाइए।
उत्तर
जम्मू-कश्मीर राज्य में हिंसा ने लगभग तीन दशकों तक राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी समस्याओं को उत्पन्न किया है। कहा जाता है कि अपेक्षाकृत शांतिकाल में भी हिंसा की विशिष्ट लहरें व्याप्त रही हैं।
हिंसा के निरंतर जारी रहने के लिए निम्नलिखित कारणों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है:
- पाकिस्तान की भूमिका: पाकिस्तान ने आंतरिक तनाव को बढ़ावा देने और कश्मीर में आतंकवादी एवं अलगाववादी गतिविधियों को प्रायोजित कर जम्मू-कश्मीर में स्थिति को तनावपूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- राजनीतिक विफलता: 1987 के चुनावों में आरोपों और अनियमितताओं ने अविश्वास और व्यापक विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा दिया। तब से, प्रमुख आतंकवादी संगठन एक स्वतंत्र कश्मीर के निर्माण अथवा पाकिस्तान द्वारा इसके अधिग्रहण (accession) का समर्थन कर रहे हैं। आतंकवादी समूहों के प्रसार के कारण, राजनीतिक प्रक्रिया लंबे समय के लिए बाधित हो गयी। इससे जमीनी स्तर के उस विश्वसनीय राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष खतरा उत्पन्न हो गया जो लोगों के विश्वास में वृद्धि, तनाव में कमी और शांति व्यवस्था स्थापित करने में समर्थ था।
- विकास संबंधी मुद्देः विकास और रोजगार के अवसरों के अभाव के कारण युवाओं में व्यवस्था विरोधी भावना उत्पन्न हुई।
- 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में तीव्र चरमपंथीकरण: 1980 के दशक के उत्तरार्ध में तीव्र कट्टरता के कारण सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ, परिणामतः 1990 के दशक में कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ। कई उग्रवादी और आतंकवादी संगठनों ने प्रचलित मुद्दों को सांप्रदायिक स्वरूप प्रदान करना आरंभ कर दिया।
- सुरक्षा बलों की उपस्थिति और AFSPA-1958 का अधिरोपण: AFSPA, 1958 का प्रभाव इस क्षेत्र में विवाद का मूल कारण है, क्योंकि यह संकटकाल में सैन्य बलों को अनियंत्रित शक्ति प्रदान करता है और निवासियों के मध्य असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता है।
- राष्ट्रपति शासन का अधिरोपण और अनुच्छेद 370 के संबंध में चर्चा: राष्ट्रपति शासन के अधिरोपण ने संघीय प्रकृति में असंतुलन और जम्मू-कश्मीर में व्यापक असंतोष को बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 370 के निरसन से संबंधित चर्चाओं ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के मध्य असंतोष उत्पन्न किया है।
- राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा दमन किए जाने संबंधी धारणा: ऐसी धारणा है कि भारतीय एजेंसियां कश्मीरी पहचान का दमन कर रही हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कथित फर्जी मुठभेड़ों ने इस धारणा को और अधिक तीव्र कर दिया है।
- मुक्त किए गए आतंकवादियों की भूमिका: कारावास की अवधि पूर्ण करने अथवा जमानत पर रिहा होने वाले आतंकवादियों की संख्या लगभग 30,000 है। उनके पास वैचारिक दृढ़ विश्वास और युवाओं को हिंसा हेतु संगठित करने की क्षमता है। वे युवाओं में चरमपंथी और राज्य विरोधी विचारों का प्रचार करते हैं। इन अभिकर्ताओं को हाल के दिनों में पत्थर-बाजी की घटनाओं के कारण के रूप में उद्धृत किया गया है।
स्थिति में सुधार हेतु किए जाने वाले उपायों में शामिल हैं:
- जम्मू-कश्मीर के वार्ताकारों को शिकायतों और जमीन स्तर की वास्तविकता को समझने के लिए निवासियों और सिविल सोसायटी संगठनों के साथ संलग्न होना चाहिए।
- युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिससे उनमें उग्रवादी और अलगाववादी प्रवृत्तियों को विकसित होने से रोका जा सके।
- जम्मू-कश्मीर में विकास कार्यों में तेजी लाने हेतु निजी निवेश को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- पड़ोसी देशों से घुसपैठियों के प्रवेश को रोकने के लिए सीमा सुरक्षा को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
- लोगों की शिकायतों की समग्र समझ प्राप्त करने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों को हिजबुल मुजाहिदीन, ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे अलगाववादी समूहों के साथ बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए।
- छात्रों को शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही उनमें अलगाववादी प्रवृत्तियाँ विकसित होने से तथा उन्हें विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से रोका जाना चाहिए।
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