भारत में बाढ़ : बार-बार बाढ़ आने के कारण और बाढ़ प्रबंधन हेतु NDMA के दिशा-निर्देश

प्रश्न: भारत के विभिन्न बाढ़ प्रवण क्षेत्रों को सूचीबद्ध कीजिए और उन क्षेत्रों में बार-बार बाढ़ आने के कारणों की पहचान कीजिए। बाढ़ प्रबंधन हेतु NDMA के क्या दिशा-निर्देश हैं?

दृष्टिकोण

  • भारत में बाढ़ के विषय में संक्षेप में लिखिए।
  • भारत में विभिन्न बाढ़ प्रवण क्षेत्रों और इन क्षेत्रों में बाढ़ के प्रमुख कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • बाढ़ प्रबंधन हेतु NDMA के दिशा-निर्देशों को रेखांकित कीजिए।

उत्तर

बाढ़ से आशय नदी के किनारे या तटीय क्षेत्रों में उच्च जल स्तर की स्थिति से है जो भूमि को जलप्लावित कर देती है। देश की लगभग सभी नदी घाटियों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। भारत में लगभग 12 प्रतिशत (40 मिलियन हेक्टेयर) भूमि बाढ़ प्रवण है।

बाढ़ प्रवण क्षेत्र और इन क्षेत्रों में बाढ़ के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  •  ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र
  • वर्षा ऋतु के दौरान भारी वर्षा (लगभग 250 सेमी)।
  • नदी धाराओं के तलछटीकरण के परिणामस्वरूप नदी की जल वहन क्षमता कम हो जाती है।
  • ब्रह्मपुत्र घाटी की चौड़ाई का कम होना।
  • बार-बार आने वाले भूकंप के कारण नदी मार्ग परिवर्तित होता रहता है और नदी के जल प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के विस्तृत भूभाग में जलप्लावन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • भूस्खलन के परिणामस्वरूप नदी पर अस्थायी बांधों का निर्माण हो जाता है और विस्तृत क्षेत्र जलमग्न हो जाता है। तत्पश्चात जल के दबाव के कारण ये अस्थायी बांध टूट जाते हैं और नदी प्रवाह के निचले विस्तृत क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • अत्यधिक जनसंख्या दबाव ने लोगों को बाढ़ प्रवण क्षेत्र में निवास करने हेतु बाध्य किया है, जिससे उनकी सुभेद्यता में वृद्धि हुई है

गंगा नदी क्षेत्र

  • उत्तरी उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा की सहायक नदियां प्रायः अपना मार्ग परिवर्तित करती रहती हैं और निचले क्षेत्रों में बाढ़ का कारण बनती हैं।
  • बड़ी संख्या में सहायक नदियाँ। उदाहरण के लिए- चंबल और बेतवा, यमुना की बाढ़ क्षमता में वृद्धि करती हैं।
  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपवाह संकुलन (Drainage congestion)।
  • पश्चिम बंगाल में, नदी धाराओं की अपर्याप्त क्षमता और ज्वारीय प्रभाव के कारण दक्षिणी और केंद्रीय भागों में बाढ़ आती है

उत्तर-पश्चिमी नदी क्षेत्र

पंजाब-हरियाणा मैदान में अपर्याप्त सतही अपवाह (इस क्षेत्र की तश्तरीनुमा स्थलाकृति के कारण) विशाल क्षेत्रों में जलप्लावन और जल-जमाव (वॉटर-लॉगिंग) का कारण बनता है।

  • सतलज, ब्यास, रावी और चेनाब के कारण प्रायः विशाल क्षेत्र बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं।
  • झेलम में बाढ़ के कारण वुलर झील के जल स्तर में वृद्धि हो जाती है, परिणामस्वरूप निकटवर्ती क्षेत्र जलप्लावित हो जाते

केंद्रीय और दक्कन क्षेत्र

  • व्यापक स्तर पर तलछटीकरण तथा इसके परिणामस्वरूप नदी मार्गों में परिवर्तन के कारण महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदी के डेल्टाई क्षेत्र कभी-कभी बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं।
  • वनोन्मूलन।
  • बाढ़ के समय उच्च ज्वार बाढ़ की स्थिति में और अधिक वृद्धि करता है।

तटीय क्षेत्र

  • गोदावरी और कृष्णा नदियों में जल निकासी की गंभीर समस्या विद्यमान है और इन्हें विशेष रूप से चक्रवातीय तूफानों के चलते बाढ़ का सामना करना पड़ता है।
  • उच्च ज्वार के कारण महानदी, ब्राह्मणी और वैतरणी नदियों के डेल्टाई क्षेत्र की बाढ़ में वृद्धि हो जाती है।

बाढ़ प्रबंधन से संबंधित NDMA के दिशानिर्देश:

संरचनात्मक उपाय

  • बाढ़ के समय अतिरिक्त जल को संग्रहित करने हेतु नदी मार्गों में जलाशयों का निर्माण करना।
  • तलछट को हटाना (डिसिल्टेशन) और नदी तट से बाहर बाढ़ के जल को प्रवाहित होने से रोकने हेतु बाढ़ संरक्षण तटबंधों का निर्माण करना।
  • बाढ़ के जल को बाढ़ के मैदानों में स्थित प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से निर्मित नदी धाराओं की ओर मोड़ना।
  • बांध, अवरोध बेसिन जैसे संरचनात्मक उपायों के साथ वनीकरण और मृदा आवरण का संरक्षण।

गैर-संरचनात्मक उपाय

  •  बाढ़ के कारण होने वाली क्षति को न्यूनतम करने के लिए बाढ़ के मैदानों में भूमि उपयोग को नियंत्रित करने हेतु बाढ़ के
  • मैदान का क्षेत्रीकरण करना (Zoning)।
  • बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के लोगों की कठिनाइयों को कम करने तथा शीघ्र राहत प्रदान करने के लिए फ्लड प्रूफिंग।
  • बेसिन या जल संभरण स्तर पर जल संसाधनों का एकीकृत प्रबंधन।
  • बाढ़ पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली के निर्माण के लिए नदी प्रवाह और वर्षा संबंधी वास्तविक समय (रियल टाइम) आधारित आँकड़े उपलब्ध कराना।
  • गंगा बाढ़ नियंत्रण बोर्ड और ब्रह्मपुत्र बोर्ड को सुदृढ़ करने हेतु उपाय किए जाने चाहिए।

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