कल्याणकरी नीतियों का एक संक्षिप्त परिचय
प्रश्न: हाल के दशकों में भारत में कल्याणकारी नीतियों में मूलभूत बदलाव (पैराडाइम शिफ्ट) आए हैं, फिर भी उनमें निरंतरता के कुछ तत्व बने हुए हैं। उदाहरण सहित चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- कल्याणकरी नीतियों का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- विगत वर्षों में आए बदलावों को दर्शाते हुए इन नीतियों की रूप-रेखा के रुझानों की चर्चा कीजिए। )
- उन विशेषताओं का वर्णन करें जो समान बनी हुई हैं।
- अपने दिए गए तर्कों को उदाहरणों से स्पष्ट करें।
उत्तर
भारत में कल्याणकारी नीतियाँ, संसाधनों के न्यायसंगत वितरण और वंचितों को न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा उपकरण प्रदान करने के सार्वजनिक उत्तरदायित्व जैसे सिद्धांतों से संचालित होती है। हाल के दशकों में, कल्याणकारी नीतियाँ मांग-चालित हो गई हैं और ये सार्वभौमिक कवरेज के स्थान पर लक्षित लाभार्थियों हेतु तैयार की जा रही हैं, जैसे- PDS और MGNREGST भारत में कल्याणकारी नीतियों का रुझान:
1950s- 1970s | क्षेत्र-वार फोकस के साथ पंचवर्षीय योजनाएं; संस्था-केंद्रित विकास, उदाहरण के लिए- नदी घाटी परियोजनाएं; चुनावी राजनीति का कम प्रभाव। |
1970s – 1990s | मुख्य फोकस गरीबी हो गया। निर्देशित गरीबी-रोधी कार्यक्रमों, रोजगार सृजन कार्यक्रमों के माध्यम से गरीबी निवारण का लक्ष्य रखा गया, जैसे- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP)
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1990s – 2000s | LPG सुधारों के साथ, सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में एक सेवा प्रदाता की जगह एक सुविधा प्रदाता बनने की दिशा में कदम उठाए हैं, उदाहरणस्वरुप- निजी निकायों द्वारा विद्युत वितरण; फिर भी ( कल्याणकारी नीतियों का ध्यान ग्रामीण क्षेत्र पर केंद्रित था , उदाहरणस्वरुप- प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना। |
2000s-2015s | कल्याणकारी सेवाओं का अधिकार-आधारित वितरण, जैसे कि MGNREGA अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम आदि; वैश्विक लक्ष्यों के साथ संरेखण उदाहरण- MDGs, SDGs, UNAIDS के 90: 90:90 लक्ष्य। |
2015 – onward | योजनाओं का समेकन; पंचवर्षीय योजनाओं की समाप्ति और अल्पकालिक रणनीतियों का उपयोग करते हुए दीर्घकालिक योजनाओं की शुरुआत , जैसे- राष्ट्रीय पोषण रणनीति; JAM का प्रयोग करके प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण; डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग में वृद्धि; न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन; सहकारी संघवाद। |
यद्यपि इन कल्याणकारी नीतियों के फोकस क्षेत्र समय के साथ परिवर्तित हुए हैं, फिर भी कुछ तत्व पूर्ववत ही हैं।
निरंतरता के तत्व:
- DPSPS से क्रमिक समीपता।
- समय-समय पर वित्त आयोग और हाल ही में NITI आयोग के इनपुट के माध्यम से नीतियों की रूप-रेखा बनाने हेतु औपचारिक लोकतांत्रिक नियोजन का प्रयोग,
- सब्सिडी का वार्षिक संशोधन और आवंटन आर्थिक प्राथमिकताओं की अपेक्षा प्रायः राजनीतिक लाभ द्वारा संचालित होता
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं में कमी।
भारत का विभिन्न विकास संबंधी सूचकांकों पर निम्न प्रदर्शन है। यह बेहतर लक्ष्यीकरण के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा पर किए जाने वाले व्यय के मौजूदा स्तर (सकल घरेलू उत्पाद का 1.4%) में वृद्धि की आवश्यकता पर बल देता है।
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