सामरिक खनिज : भारत की सामरिक खनिज संबंधी आवश्यकताएँ पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता

प्रश्न: सामरिक खनिजों की सतत आपूर्ति की सुनिश्चितता पर चयनात्मक फोकस करना भारत के लिए अत्यावश्यक है। इस संदर्भ में, इनके अन्वेषण और उत्पादन के संबंध में भारत के समक्ष चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। इन चुनौतियों से निबटने के लिए भारत क्या दृष्टिकोण अपना सकता है?

दृष्टिकोण

  • सामरिक खनिजों को परिभाषित कीजिए और इनके सामरिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारणों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • भारत की सामरिक खनिज संबंधी आवश्यकताएँ पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता को सिद्ध कीजिए।
  • भारत के समक्ष विद्यमान सामरिक खनिजों के अन्वेषण एवं उत्पादन संबंधी चुनौतियों और अन्य मुद्दों का उल्लेख कीजिए।
  • इन चुनौतियों को कम करने हेतु भारत द्वारा अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण पर चर्चा करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

सामरिक खनिज व्यापक आधार वाली श्रेणी है जिसमें विभिन्न खनिज पदार्थ और तत्व सम्मिलित हैं जैसे कि टिन, कोबाल्ट, लीथियम, टंगस्टन आदि। सामरिक सामग्रियों की धारणा प्रत्येक देश के लिए उसकी आवश्यकताओं और उपलब्ध खनिज निक्षेपों की प्रकृति के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकती है।

निम्नलिखित कारणों से कुछ खनिजों को सामरिक माना जाता है:

  • उनके विकल्प सीमित होते हैं या विकल्प चुनने पर कुछ गुणधर्मों की हानि होती है और प्राय: वे भी उन्ही सीमाओं के अधीन होते हैं जिनके कि मूल रूप से वांछित खनिज (उदाहरण के लिए, उत्पादन कुछ भौगोलिक क्षेत्रों तक ही सीमित होना)।
  • उनका उत्पादन/आपूर्ति बढ़ाने की संभावना अत्यंत सीमित होती है क्योंकि इनमें से कई को केवल मूल धातुओं के निष्कर्षण के उप-उत्पाद के रूप में ही उत्पादित किया जा सकता है।
  • इनकी माँग में तीव्र वृद्धि हुई है क्योंकि ये धातु गहन प्रौद्योगिकी के लिए महत्वपूर्ण इनपुट हैं, उदाहरणार्थ उच्च तकनीकी रक्षा अनुप्रयोग, हाइब्रिड कारों आदि में।  विश्व भर में इन प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता बढ़ रही है।

भारत अपने बढ़ते औद्योगीकरण को सुनिश्चित और निरंतर बनाये रखने हेतु अपना स्वयं का उच्च-प्रौद्योगिकी औद्योगिक आधार स्थापित और सुदृढ़ करना चाहता है। इसलिए भारत के लिए ऐसी सामरिक सामग्रियों की निरंतर आपूर्ति पर चयनात्मक ध्यान देना आवश्यक है। वर्तमान में, भारत आयात पर अत्यधिक निर्भर है और इस प्रकार आपूर्ति व कीमतों में उतार-चढ़ावों के प्रति सुभेद्य भी है।

अन्वेषण और उत्पादन में भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

  • इन खनिजों से संबंधित वर्तमान समझ और ज्ञान सीमित है। अतः भारत सामरिक जोखिम के प्रति पूर्ण रूप से इष्टतम अनुक्रिया न कर पाने की स्थिति में बना हुआ है।
  • विश्व की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में नीति निर्माताओं के लिए ‘सामरिक खनिजों’ का विचार अपेक्षाकृत नया है। इस प्रकार, क्रॉस-कटिंग एनालिसिस और नीति निर्माण के दायरे को सीमित करता है।
  • इनमें से कई खनिजों के लिए असंगत खनन विनियम, विधायी व्यवस्थाएँ और पर्यावरण संबंधी जोखिम की समस्या विद्यमान है।
  • कुछ सामरिक खनिजों की अनुपलब्धता के अतिरिक्त, पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स जैसे उपलब्ध खनिजों के अन्वेषण से जुड़ी तकनीकी चुनौतियाँ भी हैं।
  • अन्य देशों की भाँति निवेश को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। इस प्रकार, निवेशक इसे अलाभकारी उद्यम मानते हैं क्योंकि सामान्यत: इस प्रकार के खनिजों का निष्कर्षण जटिल और प्रौद्योगिकी गहन होता है।

भारत हेतु संभावित दृष्टिकोण में शामिल किया जा सकता है:

  •  विश्व बाजार में कच्चे माल तक पहुँच: अल्पकालिक और दीर्घकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए खनिज संपन्न देशों के साथ द्विपक्षीय समझौता करना।
  • भारतीय स्रोतों से दीर्घकालिक आपूर्ति को बढ़ावा देने वाला ढाँचा: प्रासंगिक वित्तीय उपायों के माध्यम से इन धातुओं का उत्पादन करने हेतु घरेलू उत्पादकों को प्रोत्साहित करना।
  • संसाधन दक्षता में वृद्धि करना और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना: अनुसंधान में निवेश करना ताकि विकल्पों की तलाश की जा सके। पुनर्चक्रण से भी इन धातुओं की माँग का एक हिस्सा पूरा करने में सहायता मिल सकती है।
  • राष्ट्रीय भंडार का निर्माण करना: कमी की स्थिति में आपूर्ति सुनिश्चित करने और कीमतों को नियंत्रण में रखने हेतु।

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