केस स्टडीज : मॉब-लिंचिंग के लिए उत्तरदायी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों
प्रश्न: भारत के विभिन्न राज्यों से बार-बार मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या)के उदाहरणों की रिपोर्ट आई हैं। यहाँ गौर करने वाली बात है कि संभवत: चेहराविहीन भीड़ बाल तस्करी, यौन उत्पीड़न, गौवध आदि जैसे समाज के सामूहिक अंत:करण को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर असत्यापित जानकारी के आधार पर तत्काल इकट्ठा हो जाती है। यहाँ तक कि इनमें से अधिकांश लोगों को कानून का उल्लंघन करने के कृत्य पर पश्चाताप भी नहीं होता है और साथ ही इस प्रकार का गंभीर अपराध करके वे बच भी निकलते हैं। (a) लोगों को भीड़ में सम्मिलित होने और साथी मनुष्यों की हत्या करने के लिए प्रेरित करने वाले सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारक कौन-से हैं ? (b) समाज पर लिंचिग (भीड़ हत्या) के बढ़ते अपराध के निहितार्थों की पहचान कीजिए। (c) लिंचिग (भीड़ हत्या) के हाल के दृष्टान्तों में सोशल मीडिया की भूमिका का परीक्षण कीजिए। कानून प्रवर्तन अधिकारी के रूप में, आप अपने जिले में ऐसी घटनाओं को कैसे रोकेंगे?
दृष्टिकोण
- संक्षेप में लिंचिंग की व्याख्या और समाज में मॉब-लिंचिंग परिदृश्य पर टिप्पणी कीजिए।
- मॉब-लिंचिंग के लिए उत्तरदायी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों पर चर्चा कीजिए।
- समाज पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
- सोशल मीडिया की भूमिका का परीक्षण कीजिए और बताइए कि आप इसका दुरुपयोग रोकने के लिए क्या करेंगे।
- संक्षेप में इस मुद्दे पर अपना सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
लिंचिंग, सामूहिक हिंसा का एक प्रकार है जिसमें व्यक्तियों का एक समूह कानूनी प्रक्रिया की अवहेलना करते हुए वास्तविक या कल्पित अपराधों के लिए किसी व्यक्ति को दण्डित करता है। लिंचिंग की घटनाओं का मुख्य प्रेरक तत्त्व व्यक्ति की पहचान के बजाय भीड़ की अनामिकता है। यह सरकारी प्राधिकरण की आधिकारिक सीमाओं के बाहर सामूहिक हिंसा की अभिव्यक्ति है। विगत कुछ समय से चरम भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को भड़काने वाले मुद्दों पर आधारित लिंचिंग की घटनाओं में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
(a) विशिष्ट सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारक जो भीड़ द्वारा हिंसात्मक गतिविधियों में व्यक्तिगत भागीदारी सुनिश्चित करते है और हिंसक व्यवहार के विरुद्ध निषेध को कम करते हैं:
सामाजिक
- रूढ़िवादी छवि और पूर्वाग्रह: बच्चों के पालन-पोषण, संगति के प्रभाव, सामाजिक अलगाव और विचारधारात्मक असमानता इत्यादि ने इस प्रकार के व्यवहारों को विकसित किया गया।
- सामान्य धारणा में न्याय प्रणाली धीमी और अप्रभावी है: यह इस विचार को सुदृढ़ करता है कि लोगों को क़ानून अपने हाथों में ले लेना चाहिए।
- निरंतर सामाजिक-राजनीतिक अभियान के माध्यम से कुछ वर्गों के विरुद्ध घृणा और संदेह का वातावरण बना दिया गया है ।
- किसी की संस्कृति या समुदाय को किसी अन्य समुदाय से खतरे की झूठी धारणा को मजबूती प्रदान कर, एक व्यवस्थित तरीके से उनके प्रति उत्तेजना को भड़काना।
- सत्ता द्वारा उन लोगों का संरक्षण एवं बचाव।
- गलतफहमी के प्रति सुभेद्यता: प्रायः लिंच मॉब (भीड़) में वे युवा शामिल होते हैं जो बेरोजगार/अल्प रोजगार और कम /पूर्णतया अशिक्षित होते हैं और जिन्हें आसानी से इस कार्य हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
- करुणा और सहानुभूति जैसे मानवीय मूल्यों में गिरावट इस प्रकार के कायरतापूर्ण कृत्यों को क्रूरतम बनाती है।
मनोवैज्ञानिक करक :
- भीड़ में व्यक्तिगत पहचान का खो जाना: इसमें भाग लेने वालों को अपने व्यवहार पर सामान्य बाधाओं से मुक्ति का अनुभव होता है, जब उनकी व्यक्तिगत पहचान अनामिकता के साथ एक सामूहिक पहचान के रूप में प्रसारित हो जाती है।
- समूह के साथ सम्बद्धता की भावना के अतिरिक्त सामान्य कार्यकलापों से विराम के कारण उत्तेजना एवं नवीनता की भावना।
- प्रभुत्व और सर्वोच्चता की भावना के कारण अधिक सामान्यीकृत विरोध और सशक्तिकरण की झूठी भावना का प्रदर्शन।
- भीड़ की शीघ्र प्रसारित होने वाली भावनाएं जो आसानी से भड़क सकती हैं और किसी व्यक्ति की भावनाओं को भी उत्तेजित कर सकती हैं।
(b) बार-बार होने वाली घटनाओं से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित होंगे:
- विधि के शासन का कमजोर होना: क्योंकि राज्य की शक्ति और अधिकार में लोगों का विश्वास समाप्त हो सकता है।
- सामाजिक अन्याय: अधिकांश पीड़ित निर्धन एवं अत्यधिक कमजोर वर्ग वाले होते हैं और उनकी मृत्यु, उनके परिवारों की निर्धनता और समस्याओं को और बढ़ा देती है।
- यह घृणा को कायम रखता है और समाज की एकता और पारस्परिक जुड़ाव के विरुद्ध है।
- आतंकवाद और अपराध को प्रोत्साहन: यह कुछ समूहों में भय और अलगाव की भावना उत्पन्न करना है जिसके कारण ये समूह आसानी से आतंकवादी और आपराधिक संगठनों के प्रभाव में आ सकते हैं।
- सरकार की जवाबदेही में कमी: चूंकि लोगों का ध्यान भावनात्मक मुद्दों पर केंद्रित हो जाता है, इसलिए सरकार की जवाबदेही कम हो जाती है।
- यह व्यापार और निवेश के माहौल को नकारात्मक रूप से प्रभावित करके सामाजिक-आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है।
(c) लिंच मॉब को सोशल मीडिया द्वारा तीव्रता से प्रसारित गलत सूचना के माध्यम से संगठित किया जाता है। भ्रामक ख़बरों (फेक न्यूज़) का प्रसार भारत में विशेष रूप से हानिकारक रहा है। नए एवं अनुभवहीन स्मार्टफोन उपयोगकर्ता व्हाट्सएप पर एक दिन में अरबों संदेश प्रेषित करते हैं। इस समय देश में व्हाट्सएप के 200 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता हैं। ऐसे संदेशों की उत्पत्ति का स्रोत पता लगाना कठिन है। निहित स्वार्थों वाले अज्ञात व्यक्ति प्राय: ऐसे झूठ संदेश प्रसारित करने के पश्चात भाग जाते हैं। इसके अतिरिक्त, लोग अफवाहों की जांच नहीं करते हैं और प्रायः इस प्रकार के संदेशों को चित्रित तस्वीरों के साथ प्रसारित किया जाता है जिससे लोगों को बहकाना उनके लिए सरल होता है।
एक विधि प्रवर्तन अधिकारी के रूप में संभावित खतरे से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- एक स्पष्ट संदेश दिया जाना चाहिए कि ‘हत्या’ का आरोप उन सभी के खिलाफ आरोपित किए जाएगा जो लिंचिंग में भाग लेते हैं। यह सन्देश एक निवारक के रूप में कार्य करेगा। वास्तव में IPC की धारा 302 हत्या के आरोप को उस व्यक्ति तक ही नहीं सीमित करती है जो इसे अंजाम देता है। यह उन सभी पर एक समान रूप से लागू होती है जो हत्या करने में सहयोग करते हैं या हत्या के लिए उकसाते हैं।
- सोशल मीडिया कंपनियों को इस बात के लिए निर्देश देना कि अग्रेषित संदेशों को मूल स्रोतों के साथ टैग किया जाना चाहिए, ताकि इसका दुरुपयोग रोकना आसान हो और उपयोगकर्ताओं को दुर्भावनापूर्ण सामग्री बनाने से हतोत्साहित किया जा सके।
- ग्रुप एडमिन को ग्रुप पर होने वाली गतिविधियों को रोकने में असफल रहने के लिए उत्तरदायी माना जाएगा।
- दुर्भावनापूर्ण अफवाहों में संलिप्त किसी भी व्यक्ति की तत्काल गिरफ्तारी।
- सोशल मीडिया और स्थानीय टीवी चैनलों पर महत्वपूर्ण अभियान द्वारा गलत सूचना के प्रसार से निपटना। सोशल मीडिया पर नागरिकों का समूह बनाया जा सकता है जो लोगों और अधिकारियों दोनों को ही किसी भी गलत अफवाह के बारे में जानकारी प्रदान करेगा।
- जन जागरूकता प्रसार के लिए पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों, SHGs, स्कूलों, कॉलेजों, नुक्कड़ नाटकों जैसे अन्य उपायों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- उन साईटों और लिंकों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना जो धोखाधड़ी की पहचान करने में सहायता प्रदान करते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने “मॉबोक्रेसी” शब्द का प्रयोग कर सरकार को दिशा-निर्देश देते हुए कहा है कि यह लोकतांत्रिक और सामाजिक स्थिरता के लिए खतरा है। यह संवैधानिक मूल्यों पर हमला है और सरकार, मीडिया, सोशल मीडिया कंपनियों एवं नागरिकों, सरकार की समस्त शाखाओं सहित सभी हितधारकों द्वारा इससे दृढ़ता से निपटना चाहिए।
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