ध्रुवीय भंवर (पोलर वोर्टेक्स) : उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होने वाले शून्य से भी कम तापमान की परिघटना

प्रश्न: ध्रुवीय भंवर (पोलर वोर्टेक्स) की परिघटना की व्याख्या कीजिए। साथ ही, उन कारणों की भी विवेचना कीजिए कि क्यों फ्लोरिडा जैसे दक्षिणवर्ती उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक में हाल के वर्षों में शून्य से भी कम तापमान देखने को मिल रहा है।

दृष्टिकोण

  • ध्रुवीय भंवर (पोलर वोर्टेक्स) का अवधारणात्मक परिचय एवं विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  • ध्रुवीय भंवर के परिणामतः उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होने वाले शून्य से भी कम तापमान की परिघटना पर चर्चा कीजिए, साथ ही ध्रुवीय भंवर परिघटना की अवधारणा को संक्षिप्त में समझाइए।
  • ध्रुवीय भंवर की परिघटना के विभिन्न कारणों का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।

उत्तर

ध्रुवीय भंवर पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के चारों ओर निम्न दाब और ठंडी वायु का एक विस्तृत क्षेत्र होता है। भंवर शब्द क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धा में वायु के वामावर्त और दक्षिणावर्त प्रवाह को संदर्भित करता है, जो ठंडी वायु को ध्रुवों के निकट बनाए रखने में सहायता करता है।

ध्रुवीय भंवर का क्षेत्र (उत्तरी गोलार्ध के परिप्रेक्ष्य में) वस्तुतः उत्तर में विद्यमान ठंडी ध्रुवीय वायु और उष्ण उपोष्ण वायु के मध्य विस्तृत होता है। इस सीमा रेखा को ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम (अत्यधिक तीव्र गति से पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाला एक सँकरा पवन प्रवाह) द्वारा निर्धारित किया जाता है।

ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम द्वारा निर्धारित सीमा रेखा सदैव परिवर्तित होती रहती है। ग्रीष्म ऋतु में यह ध्रुवों की ओर संकुचित हो जाती है, जबकि शीत ऋतु में ध्रुवीय भंवर अस्थिर और विस्तारित हो जाता है। इसके कारण ही जेट स्ट्रीम के साथ-साथ ठंडी वायु दक्षिण की ओर विस्थापित हो जाती है। भंवर के कमजोर पड़ने पर भंवर के एक भाग के “पृथक होने” हो जाने को “ध्रुवीय भंवर परिघटना (polar vortex event)” कहा जाता है।

ध्रुवीय भंवर के इस विभाजन और उसके कमजोर होने का प्रमुख कारण तरंग ऊर्जा का निचले वायुमंडल से ऊपर की ओर प्रसारित होना है। इसके कारण पृथ्वी की सतह से कुछ मील की ऊंचाई पर स्थित समतापमण्डल के तापन में कुछ ही दिनों में तीव्र वृद्धि होती है, इस घटना को आकस्मिक समतापमंडल तापन (sudden stratospheric warming) के रूप में जाना जाता है।

ध्रुवीय भंवर की परिघटना फ्लोरिडा जैसे दक्षिणवर्ती उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक तापमान को प्रभावित करती है। यह कुछ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शून्य से भी कम तापमान का कारण होती है। साथ ही, ऐसे अवलोकन संबंधी साक्ष्य उपलब्ध हैं जो ये दर्शाते हैं कि कमजोर ध्रुवीय भंवर की स्थितियाँ अब प्रायः अधिक उत्पन्न हो रही हैं। इस परिस्थिति के लिए विभिन्न कारणों को उत्तरदायी माना जा सकता है, जैसे कि:

  • ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण आर्कटिक क्षेत्र के तापन में तथा हिम और बर्फ के पिघलने की दर में वृद्धि हुई है, जिसके कारण अधिक गहरी सागरीय और स्थलीय सतहें अनावृत हुई हैं और परिणामतः सूर्याताप के अवशोषण में भी वृद्धि हुई है।
  • तीव्र आर्कटिक तापन के कारण, उत्तर-दक्षिण के तापान्तर में कमी आई है, यह स्थिति आर्कटिक और मध्य-अक्षांशों के मध्य दाबांतर को कम करती है तथा जेट स्ट्रीम वायु को भी कमजोर कर देती है जिसके कारण जेट स्ट्रीम में विसों का निर्माण होता है।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.