सामाजिक लेखा परीक्षण
प्रश्न: सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में सामाजिक लेखा परीक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका है। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, इसके मजबूत पक्षों और सीमाओं पर भी चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- परिचय में सामाजिक लेखा परीक्षण के बारे में संक्षेप में लिखिए।
- सामाजिक लेखा परीक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- सामाजिक लेखा परीक्षण के मजबूत पक्षों और सीमाओं की चर्चा कीजिए।
- निष्कर्ष में, इन सीमाओं से निपटने के उपायों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सामाजिक लेखा परीक्षण एक प्रक्रिया है जिसमें सार्वजनिक अभिकरण द्वारा विकास कार्यों के लिए प्रयुक्त संसाधनों का विवरण लोगों के साथ साझा किया जाता है। ऐसा विवरण प्रायः सार्वजनिक मंचों के माध्यम से साझा किया जाता है। इससे अंतिम प्रयोक्ता को विकासात्मक कार्यक्रमों के प्रभाव की सूक्ष्म जाँच करने में मदद मिलती है।
सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के सामाजिक लेखा परीक्षण का महत्त्व निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
- आवश्यकताओं की सटीक पहचान।
- आवश्यकताओं के मुताबिक विकास गतिविधियों की प्राथमिकता का निर्धारण।
- निधियों का समुचित उपयोग।
- लक्षित वर्ग को लाभ।
- बताए गए लक्ष्यों के साथ विकास गतिविधि की साम्यता।
- सेवा की गुणवत्ता।
- अपव्यय में कमी।
- भ्रष्टाचार में कमी।
हाल के वर्षों में, स्थानीय सरकारों को प्रदान की जाने वाली निधियों और कार्यों में सुनिश्चित बदलाव के चलते सामाजिक लेखा परीक्षण की माँग बढ़ी है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार मनरेगा जैसे फ्लैगशिप कार्यक्रमों में सामाजिक लेखा परीक्षण को बढ़ावा दे रही है। इसी प्रकार, राजस्थान और आंध्रप्रदेश जैसी विभिन्न राज्य सरकारों ने गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी में और ग्राम सभाओं के माध्यम से सामाजिक लेखा परीक्षण को अपनी निगरानी प्रणाली के एक भाग के रूप में सम्मिलित करने की पहल की है।
सामाजिक लेखा परीक्षण के मजबूत पक्ष:
- यह व्यय के स्थान पर परिणामों पर ध्यान केन्द्रित करता है।
- यह शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को सरल बनाता है।
- यह संसाधनों व संपत्तियों के उपयोग का सबसे मजबूत और प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध कराता है।
- यह भागीदारी और सुनवाई के लिए लोगों को अवसर प्रदान करता है।
- यह निगरानी और मूल्यांकन तन्त्र को बहु-उद्देशीय और पारदर्शी बनाता है।
- यह कार्यक्रम के नियोजन, कार्यान्वयन और निगरानी की सूक्ष्म स्तरीय जाँच को मजबूत बनाने के अवसर प्रदान करता है।
- यह लोगों के बीच सत्यनिष्ठा और समुदाय की भावना को प्रोत्साहित करता है।
- मानव संसाधनों और सामाजिक पूँजी को प्रोत्साहित करता है; वंचित समूहों को लाभ पहुँचाता है।
सामाजिक लेखा परीक्षण की सीमाएं:
- सामाजिक लेखा परीक्षण का दायरा अत्यधिक स्थानीय प्रकृति का होता है और केवल चुनिंदा पहलुओं को ही कवर करता है।
- सामाजिक लेखा परीक्षण प्राय: अव्यवस्थित व अस्थायी होते हैं।
- निगरानी अनौपचारिक व अपरिष्कृत होती है।
- सामाजिक लेखा परीक्षण के निष्कर्षों का सम्पूर्ण जनसमूह के लिए सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता।
- प्रत्येक कार्यक्रम की अपनी विशिष्ट चुनौती होती है, जैसे वयस्कों के लिए साक्षरता कार्यक्रम के लिए प्रवसन के आंकड़ों की आवश्यकता होती है।
- कई समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को एक साथ क्रियान्वित करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए जलापूर्ति, शिक्षा, स्वच्छता, पोषण आदि से संबंधित कार्यक्रमों को एक साथ संचालित करने की आवश्यकता होती है।
- इस प्रकार सामाजिक लेखा परीक्षण के हेतु अधिक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक होगा।
- प्रशिक्षित सामाजिक लेखा परीक्षकों की अनुपस्थिति।
- लेखा परीक्षण रिपोर्टों और निष्कर्षों पर कार्यवाही की कमी।
- निहित स्वार्थों के चलते विरोध।
आगे की राह:
- सामाजिक लेखा परीक्षण को लेकर हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करना।
- देश के भीतर ही बड़े सामाजिक लेखा परीक्षण संगठनों के साथ सतत भागीदारी के लिए प्रोटोकॉल स्थापित करना।
- सामाजिक लेखा परीक्षण को सुविधाजनक बनाने के लिए सूचनाओं का अग्रसक्रिय ढंग से खुलासा करने को बढ़ावा देना।
- सामाजिक लेखा परीक्षण को संस्थागत बनाना, जैसा कि जमीनी स्तर से लेकर राज्य स्तर तक संगठित संपर्क के माध्यम से आंध्रप्रदेश द्वारा किया गया है।
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