कॉर्नवॉलिस द्वारा आरंभ किए गए न्यायिक सुधार : इस व्यवस्था से भारतीयों का बाहर रखा जाना
प्रश्न: यद्यपि कॉर्नवॉलिस द्वारा आरंभ किए गए न्यायिक सुधारों की अपनी उपलब्धियां थीं, तथापि इस व्यवस्था से भारतीयों का बाहर रखा जाना इसकी एक मुख्य विशेषता थी। विश्लेषण कीजिए।
दृष्टिकोण
- कॉर्नवॉलिस संहिता के रूप में प्रसिद्ध कॉर्नवॉलिस द्वारा आरंभ किए गए प्रमुख सुधारों का उल्लेख कीजिए।
- कॉर्नवॉलिस द्वारा आरंभ किए गए न्यायिक सुधारों की सकारात्मक विशेषताओं को वर्णित कीजिए।
- उन कारणों पर चर्चा कीजिए कि क्यों भारतीयों को इस न्यायिक मशीनरी से बाहर रखा गया था।
उत्तर
कॉर्नवॉलिस ने गवर्नर-जनरल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कुछ प्रमुख सुधार किए, जिन्हें संक्षेप में कॉर्नवॉलिस संहिता के रूप में जाना जाता है। यह 1793 में अधिनियमित विनियमों की एक सूची थी जिसने ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक ढांचे का गठन करने वाले जटिल उपायों को एक कानूनी शुचिता प्रदान की थी। इसमें राजस्व सुधार, पुलिस सुधार, न्यायिक सुधार आदि शामिल थे।
कॉर्नवॉलिस द्वारा किए गए न्यायिक सुधारों में नागरिक और आपराधिक न्याय प्रणाली, दोनों में किए गए सुधार शामिल थे। ये निम्नलिखित हैं:
- न्यायपालिका का पुनर्गठन किया गया; जिला न्यायाधीशों को मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान करते हुए उन्हें सिविल मामलों में प्रांतीय अदालतों और आपराधिक मामलों में सर्किट अदालतों के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।
- जिलों, राज्य और प्रांतों में न्यायालयों के विभिन्न स्तर, यथा- मुंसिफ अदालतें, दीवानी अदालतें, प्रांतीय अपील अदालतें और सदर दीवानी अदालत स्थापित किए गए।
- फौजदारी अदालत को समाप्त कर दिया गया और कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद तथा पटना में सर्किट अदालतें स्थापित की गईं।
कॉर्नवॉलिस द्वारा आरंभ न्यायिक सुधारों की कुछ सकारात्मक विशेषताएं थीं, जैसे:
- देश के प्रत्येक व्यक्ति को इन न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में शामिल किया गया था।
- न्यायपालिका को जन सामान्य के लिए सुलभ बनाने हेतु न्यायालय फीस को समाप्त कर दिया गया था।
- वकीलों के लिए उनकी फीस निर्धारित करने के नियम निर्धारित किए गए थे।
- सामान्य व्यक्ति भारत सरकार के कर्मचारियों पर मुकदमा दायर कर सकता था।
- अमानवीय दंडों को समाप्त कर दिया गया था।
- राजस्व और न्यायिक कार्यों को पृथक कर कलेक्टर को न्यायिक कार्यों से वंचित कर दिया गया था।
- विधि की संप्रभुता के सिद्धांत की स्थापना की गयी थी।
इन उपलब्धियों के बावजूद, भारतीयों को न्यायिक मशीनरी से बाहर रखा गया था। उदाहरण के लिए, सर्किट कोर्ट की अध्यक्षता अनिवार्य रूप से केवल ब्रिटिश व्यक्ति द्वारा ही की जानी निर्धारित की गयी थी।
निम्नलिखित कारणों से भारतीयों को न्यायिक मशीनरी से बाहर रखा गया था:
- अंग्रेजों द्वारा न्यायपालिका और प्रशासनिक व्यवस्था पर एकाधिकार स्थापित किया गया क्योंकि उनका विश्वास था कि ब्रिटिश विचारों, संस्थानों और प्रथाओं पर आधारित प्रशासन केवल अंग्रेज कर्मचारियों द्वारा ही दृढ़ता से स्थापित किया जा सकता है।
- भारतीयों की भ्रष्टता के संबंध में एक सामान्य धारणा प्रचलित थी। हालांकि ये लोगों का शोषण करने वाले भारतीय अधिकारियों और जमींदारों के केवल एक छोटे वर्ग के लिए ही सत्य थी।
- भारत में ब्रिटिश शासन को स्थापित करने और सुदृढ़ करने के लिए भी भारतीयों को न्यायिक मशीनरी से बाहर रखा गया था।
इस प्रकार, विभिन्न कारणों से, कॉर्नवॉलिस द्वारा प्रारंभ सुधारों में भारतीयों को उनके ही देश की न्यायिक प्रणाली से बाहर रखा गया।
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