सहायक संधि की नीति की महत्त्वपूर्ण विशेषतायें

प्रश्न: ब्रिटिश शासन के दौरान सहायक संधि की नीति की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को सूचीबद्ध कीजिए। इस नीति ने भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार में किस प्रकार सहायता प्रदान की?

दृष्टिकोण

  • सहायक संधि की नीति की संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  • भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार के सन्दर्भ में इस नीति के प्रभाव की चर्चा कीजिए।

उत्तर

सहायक संधि प्रणाली की शुरुआत 1764 के बक्सर युद्ध के पश्चात हुई थी। इस युद्ध के पश्चात् कंपनी ने विभिन्न राज्यों में रेजिडेंट नियुक्त करना आरम्भ कर दिया और इन राज्यों के प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। इस नीति ने अपना अंतिम स्वरूप 1798 में लॉर्ड वेलेजली के कार्यकाल में ‘अहस्तक्षेप की नीति’ के रूप में ग्रहण किया। अंग्रेजों के साथ इस प्रकार की सहायक संधि करने वाले सभी राज्यों को कुछ नियमों तथा शर्तों को स्वीकार करने हेतु बाध्य होना पड़ा।

इन नियम तथा शर्तों में निम्नलिखित प्रावधान सम्मिलित थे: 

  • सहायक संधि करने वाले राज्यों के समक्ष उत्पन्न होने वाले वाह्य तथा आंतरिक खतरों से उनकी रक्षा करने का उत्तरदायित्व अंग्रेज़ों को सौंपा गया था।
  • सहायक संधि करने वाले राज्यों के क्षेत्र में ब्रिटिश सशस्त्र सैन्य दल की तैनाती की जाती थी।
  • इस सैन्य दल के रख-रखाव हेतु संसाधनों की उपलब्धता सहायक संधि करने वाले राज्य को सुनिश्चित करनी होती थी।
  • सहायक सेना के रख-रखाव के लिए देशी राज्यों को नकद राशि का भुगतान करना होता था या अपने क्षेत्र के एक भाग को ब्रिटिश शासन को सौंपना होता था।
  • सहायक संधि करने वाले राज्य केवल अंग्रेजों की अनुमति के पश्चात् ही अन्य शासकों के साथ समझौता कर सकते थे अथवा युद्ध में सम्मिलित हो सकते थे।
  • देशी राज्यों को अपने विदेशी संबंधों का अधिकार कंपनी को सौंपना होता था।
  • देशी राज्य कंपनी की अनुमति के बिना किसी भी प्रकार के युद्ध या शांति की घोषणा नहीं कर सकते थे।
  • यदि भारतीय शासक भुगतान करने में विफल रहते थे तो उनके क्षेत्र के एक भाग को हर्जाने के रूप में अधिगृहीत कर लिया जाता था। उदाहरण के लिए, 1801 में अवध के शासक को अपने क्षेत्र के आधे से भी अधिक भाग को कंपनी को सौंपने हेतु बाध्य किया गया था, क्योंकि वह सहायक सेना के लिए नगद भुगतान करने में विफल रहा था।

इस प्रणाली ने निम्नलिखित तरीकों से भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार में सहायता की:

  • इसने कंपनी को अत्यधिक वित्तीय बोझ के बिना एक विशाल सेना को बनाए रखने का अवसर प्रदान किया।
  • इस प्रकार की सेनाओं के बटालियनों को भारत के किसी भी हिस्से में उत्पन्न होने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने हेतु रणनीतिक महत्त्व के स्थानों पर तैनात किया जाता था।
  • इस प्रकार अंग्रेजों की रक्षात्मक और साथ ही आक्रामक क्षमता में वृद्धि हुई।
  • अंग्रेजों द्वारा किया जाने वाला क्षेत्रीय विस्तार तीव्र हो गया क्योंकि देशी राज्यों द्वारा सहायक सेनाओं के रख-रखाव हेतु भुगतान न किए जाने पर उनके क्षेत्र का लगभग आधा भाग छीन लिया गया था।
  • इसने भारतीय मुख्य भूमि पर फ्रांसीसी चुनौती को समाप्त करने में सहायता की।
  • इसने अंग्रेजों के विरुद्ध देशी राज्यों के परस्पर एकजुट होने की संभावनाओं को समाप्त कर दिया।

वास्तव में सहायक संधि की नीति के परिणामस्वरूप देशी राज्यों की संप्रभुता नष्ट हो गयी और इसने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाई।

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