भारतीय संविधान में उल्लिखित राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का संक्षिप्त विवरण

प्रश्न: राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के व्यापक निरूपण एवं अविवेकपूर्ण अनुप्रयोग संबंधी चिन्ताओं के संदर्भ में सावधानीपूर्वक ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय संविधान में उल्लिखित राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • भारत की संघीय राजव्यवस्था के सम्बन्ध में इन शक्तियों से उत्पन्न होने वाले मुद्दों और चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • प्रासंगिक कानूनों और रिपोर्टों का उल्लेख कीजिए।
  • सुझावों सहित उत्तर का समापन कीजिए।

उत्तर

सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में राज्यपाल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि वह केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है। इस भूमिका के तहत उसे अनुच्छेद 163(1) और अनुच्छेद 163(2) के अनुसार कुछ विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त हैं। इन शक्तियों के अनुसार यदि कोई मुद्दा राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों से संबंधित है तो उसका निर्णय अंतिम होगा। इस प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल को व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं।

परन्तु, इन शक्तियों के व्यापक निरूपण (wide formulation) तथा अविवेकपूर्ण इस्तेमाल के कारण विभिन्न चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं। उदाहरणार्थ:

  • अनुच्छेद 200 और 201: राज्यपाल को किसी भी विधेयक पर अपनी स्वीकृति रोकने के साथ-साथ उस विधेयक को राष्ट्रपति के विचार हेतु आरक्षित करने की शक्ति प्राप्त है। राज्यों द्वारा आरोप लगाया जाता है कि इस प्रावधान का राज्यपाल द्वारा केंद्र के इशारे पर प्रायः दुरुपयोग किया जाता है।
  • अनुच्छेद 356: राज्य में संवैधानिक आपात लागू करने की संस्तुति करना। राजनीतिक लाभ हेतु केंद्र सरकार द्वारा इस शक्ति का अब तक लगभग 120 बार दुरुपयोग किया जा चुका है।
  • अनुच्छेद 164: मुख्यमंत्री की नियुक्ति। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सरकार बनाने के लिए एक दल को आमंत्रित करने के राज्यपाल के विवेकाधिकार पर प्रायः प्रश्न उठाये जाते हैं। गोवा और मणिपुर के चुनाव इसके हालिया उदाहरण हैं।

राज्यपाल को संविधान का परिरक्षण, सरंक्षण और बचाव करने का कर्तव्य सौंपा गया है; हालाँकि राज्यपाल प्रायः ‘केंद्र के अभिकर्ता के रूप में ही कार्य करते हैं। राज्यपाल के विवेकाधिकार को सीमित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ वाद में कहा गया कि राज्य कार्यपालिका पर संघीय कार्यपालिका का नियंत्रण भारतीय संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

सरकारिया आयोग की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि, “कार्यवाही के चयन का सीमित क्षेत्र भी मनमाना नहीं होना चाहिए। यह चयन ऐसा हो जिसमें तर्कों के आधार पर चर्चा, सद्भावना द्वारा उत्प्रेरण और सावधानी के साथ तैयारी का समावेश हो।” इसके साथ ही यदि राज्यपाल संविधान की रक्षा करने में असफल रहे, तो एक नागरिक को यह अधिकार होना चाहिए कि वह न्यायालय के माध्यम से इसके उपचार की मांग कर सके। इस सन्दर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय ने शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य जैसे मामलों के माध्यम से उस पूर्ण उन्मुक्ति (absolute immunity) को दरकिनार कर दिया है, जिसका दावा राज्यपाल के कार्यालय द्वारा किया जा सकता है।

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