अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति की शक्ति
प्रश्न: अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमा पर प्रकाश डालिए। राष्ट्रीय आपात के उद्घोषणा की न्यायिक संवीक्षा और आपातकाल के दौरान कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग पर टिप्पणी कीजिए। यह शक्ति अनुच्छेद 356 के अंतर्गत प्रदत्त शक्ति से किस प्रकार भिन्न है?
दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 352 का अधिदेश निर्दिष्ट करते हुए, अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति की शक्तियों पर प्रकाश डालिए।
- राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने पर न्यायिक संवीक्षा की भूमिका और कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
- विभिन्न मापदंडों पर अनुच्छेद 352 और 356 के मध्य शक्तियों की प्रकृति में अंतर का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
संविधान का भाग XVIII उस प्रक्रिया को रेखांकित करता है जिसके द्वारा असामान्य परिस्थितियों के दौरान सामान्य संघीय संविधान को प्रभावी ढंग से अनुकूलित किया जा सकता है और संघ को असाधारण शक्तियाँ प्रदान की जा सकती हैं। ये आपातकालीन प्रावधान विघटनकारी शक्तियों के विरुद्ध लोकतंत्र की रक्षा करने में सहायता प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार देश की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा को संरक्षण प्रदान करते हैं।
अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति की शक्तियों का विस्तार
राष्ट्रपति, राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है, यदि वह संतुष्ट हो जाए कि गंभीर आपातकालीन स्थिति विद्यमान है तथा भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा, युद्ध या बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण संकट में है। ऐसा करने पर, राष्ट्रपति को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं:
- राष्ट्रपति राज्यों को उनकी कार्यपालिका शक्तियों के प्रयोग के तरीके से सम्बंधित निर्देश दे सकता है।
- सैन्य संघर्ष की स्थिति में, राष्ट्रपति अनुच्छेद 19 को निलंबित करने हेतु भी अधिकृत है। वह अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर सभी मूल अधिकारों के प्रवर्तन को भी प्रतिबंधित कर सकता है।
हालांकि, राष्ट्रपति इस सम्बन्ध में एकाकी निर्णय नहीं ले सकता। मंत्रिमण्डल की लिखित सलाह पर संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन के द्वारा ही इस प्रकार की उदघोषणा की जा सकती है।
उद्घोषणा की न्यायिक संवीक्षा
पूर्व में, राष्ट्रपति की ‘संतुष्टि’ को ‘व्यक्तिनिष्ठ संतुष्टि’ माना जाता था, जिसे किसी भी परिस्थिति में न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। परन्तु मिनर्वा मिल्स वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 352(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई आपातकाल की उद्घोषणा की वैधता पर न्यायिक समीक्षा हेतु कोई रोक नहीं है। उद्घोषणा की संवैधानिकता को दुर्भावना के आधार पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
हालांकि, न्यायालय की शक्ति केवल यह परीक्षण करने तक ही सीमित है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त सीमाओं का पालन किया गया है अथवा नहीं। न्यायालय तथ्यों को सुधारने तथा उन परिस्थितियों, जिन पर सरकार की संतुष्टि आधारित है, की जाँच नहीं करता है।
कार्यपालिका की शक्तियों का प्रयोग
- आपातकाल की उद्घोषणा लागू होने के दौरान संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस सम्बन्ध में निर्देश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यकारी शक्ति का किस रीति से प्रयोग करे।
- सामान्य परिस्थितियों, जिनके अंतर्गत केंद्र केवल कुछ विशिष्ट विषयों पर राज्य को निर्देश प्रदान कर सकता है, के विपरीत आपातकाल के दौरान केंद्र किन्हीं भी विषयों पर राज्य को निर्देश देने हेतु अधिकृत है।
- इस प्रकार, शक्तियों का वितरण निलंबित रहता है और राज्य सरकारें, केंद्र सरकार के प्रभावी नियंत्रण के अधीन हो जाती हैं।
अनुच्छेद 352 और अनुच्छेद 356 के बीच शक्तियों की प्रकृति में अंतर:
मापदंड | अनुच्छेद 352 | अनुच्छेद 356 |
विधायी और कार्यपालिका कार्यों पर प्रभाव | राज्य विधायिका और राज्य कार्यपालिका कार्यरत रहती है। केंद्र, राज्य के विषयों पर विधायन और प्रशासन की समवर्ती शक्तियाँ जाती है प्राप्त कर लेता है। | राज्य कार्यपालिका भंग हो जाती है और राज्य विधायिका और निलंबित या विघटित कर दी जाती है। राष्ट्रपति राज्यपाल के माध्यम से प्रशासन करता है। राज्य का प्राप्त कर लेता है।और संसद राज्य के लिए कानून ‘बनाती है। |
केंद्र-राज्य संबंध | केंद्र के सन्दर्भ में सभी राज्यों के संबंधों की केंद्र के साथ केवल एक राज्य का संबंध परिवर्तित प्रकृति परिवर्तित हो जाती है। | केन्द्र के साथ केबल एक राज्य का संबंध परिवर्तित होता है |
कानून बनाने की शक्तियाँ | राज्य सूची में प्रगणित विषयों पर केवल संसद कानून बना सकती है। | संसद राष्ट्रपति या किसी अन्य प्राधिकारी को कानून बनाने की शक्ति कानून प्रत्यायोजित कर सकती है। |
मूल अधिकारों पर प्रभाव | यह मूल अधिकारों को प्रभावित करता है। | इसका मूल अधिकारों पर प्रभाव नहीं पड़ता है। |
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