राष्ट्रगान संबंधी मुद्दा (Issue on National Anthem)

जनवरी 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय ने नवंबर 2016 में दिए गए अपने एक निर्णय को परिवर्तित करते हुए सिनेमाघरों में फिल्म आरंभ होने से पूर्व राष्ट्रगान बजाने को वैकल्पिक बना दिया गया है।

पृष्ठभूमि

  • श्याम नारायण चौकसे बनाम भारत संघ, 2016 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाया जाना अनिवार्य है। स्क्रीन पर भारतीय ध्वज की छवि दिखाई जानी चाहिए तथा इस दौरान दिव्यांग जनों को छोड़कर सभी लोगों को खड़े हो जाना चाहिए। साथ ही लोगों के प्रवेश या बाहर जाने को रोकने हेतु दरवाजे बंद होने चाहिए।
  • केरल के एक फिल्म क्लब ने सर्वोच्च न्यायालय के उपर्युक्त निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि सिनेमाघरों को राष्ट्रगान बजाने और लोगों को अपने स्थान पर खड़े होने के लिए बाध्य करना, लोगों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा “सम्मान के बाहरी दिखावे” और “सम्मान की वास्तविक भावना” के मध्य मिथ्या समानता स्थापित करता है।
  • इससे पूर्व बिजोय एम्मानुएल बनाम केरल राज्य, 1986 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जब राष्ट्रगान गाया जा रहा हो तब किसी व्यक्ति के द्वारा इसके सम्मान में अपने स्थान पर खड़े होना परन्तु उसके द्वारा इसे गाया नहीं जाना, राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 की धारा 3 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

राष्ट्रगान के लिए संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 51A – भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 संविधान, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान के अपमान के मामलों से संबंधित है। यह इन प्रतीकों का अपमान करने के लिए दंड का प्रावधान करता है।
  • अधिनियम की धारा 3 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर भारत के राष्ट्रगान के गायन से रोकता है या गायन कर रही किसी सभा में व्यवधान डालता है तो उसे तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
  •  इस अधिनियम की कोई भी धारा या भारतीय दंड संहिता, राष्ट्रगान बजाए जाने पर नागरिकों के लिए अपने स्थान पर खड़ा होना अनिवार्य नहीं बनाती है।
  •  2015 में जारी गृह मंत्रालय का एक आदेश राष्ट्रगान के बजाये जाने के संदर्भ में एक विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करता है।

संबंधित तथ्य

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्व के उस निर्णय को परिवर्तित कर दिया है जिसमें सिनेमाघरों में फिल्म के आरंभ होने से पूर्व राष्ट्रगान बजाना और दर्शकों का अपने स्थान पर खड़े होना अनिवार्य बना दिया गया था। इस सन्दर्भ में सुझाव देने हेतु नियुक्त समिति की रिपोर्ट के पश्चात् इस मुद्दे पर और स्पष्टता आएगी।

  •  निर्णय के पश्चात् अब सिनेमाघरों को यह चुनने का अधिकार है कि वे राष्ट्रगान को बजाएँ अथवा नहीं। यदि यह बजाया जाता है तो दर्शकों का अपने स्थान पर खड़ा होना अनिवार्य होगा।
  • परन्तु दिव्यांग जनों पर यह लागू नहीं होगा, उन्हें इससे छूट प्राप्त होगी।

विश्लेषण

एक नागरिक के लिए अधिकार और कर्तव्य दोनों आवश्यक है अतः संविधान में मूल अधिकारों और मूल कर्तव्यों को शामिल किया गया

प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान में अंतर्निहित आदर्शों का पालन करे और राष्ट्र गान एवं राष्ट्र ध्वज का आदर करे। यह नागरिकों की राष्ट्रवादी चेतना को भी बढ़ावा देता है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय की अपनी अन्य विशेषताएं भी हैं

  •  राष्ट्रगान के बजाये जाने को विवेकाधीन बनाता है, लेकिन इसका सम्मान करना अनिवार्य बनाता है। यह निर्धारित करता है कि जब भी राष्ट्रगान बजाया जाए तब दर्शकों को (रोगी, दिव्यांग जन आदि के साथ-साथ नागरिकों के कुछ छूट-प्राप्त वर्गों को छोड़कर) इसके प्रति सम्मान में खड़े होना अनिवार्य है।
  • यह पूर्व के निर्णय की अस्पष्टता को समाप्त करता है। पूर्व का निर्णय सिनेमाघरों पर लागू होता था, मनोरंजन के अन्य रूपों जैसे नृत्य कार्यक्रमों, कॉमेडी शो आदि पर लागू नहीं होता था।
  • केवल सिनेमाघरों में ही बजाये जाने से राष्ट्रगान को महत्व नहीं मिलेगा क्योंकि राष्ट्रगान में भावनाएं, देश के लिए गर्व और गायन सम्मिलित होते हैं तथा इसका सम्मान करना एक भावनात्मक निर्णय होता है। विशेषकर तब जब कोई व्यक्ति गौरवान्वित, आशान्वित और आनंदित महसूस करता है। इस प्रकार, इसका खेल के क्षेत्र में बजाया जाना तो औचित्यपूर्ण है किन्तु सिनेमाघरों में यह आवश्यक नहीं है।
  • देशभक्ति को कानून के भय से प्रदर्शित नहीं करवाया जाना चाहिए, क्योंकि मूल्यों को अंतर्निविष्ट किया जाता है न की आरोपित। न्यायालय द्वारा अधिदेशित देशभक्ति में प्रतीकात्मकता अधिक होती है। ऐसे मुद्दे जिन पर प्राथमिकता से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है वो कर अपवंचन, सड़कों पर गंदगी आदि से सम्बंधित वास्तविक मुद्दे हैं जिनसे देशभक्ति विलुप्त होती दिखाई दे रही है। इसके अतिरिक्त, भारत को देशभक्ति की संस्कृति की आवश्यकता है न कि संस्कृति के देशभक्तिकरण की।
  • हमारी लोकतांत्रिक परिपक्वता के मूल्य- एक परिपक्व लोकतंत्र में नागरिकों की देशभक्ति को प्रदर्शित एवं प्रसारित करने के अवसर या तरीके के लिए न्यायिक निर्देशन या किसी विशेष बल की आवश्यकता नहीं होती है।
  • कानून और व्यवस्था संबंधी मुद्दे- इन दिशानिर्देशों के कारण सिनेमाघरों में यदि कोई राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता है। (दिव्यांगजन या विदेशी नागरिक होने के कारण) तो उसके प्रति लोगों द्वारा की जाने वाली हिंसा के कई मामले देखे गए हैं।

आगे की राह

  • केंद्र सरकार शीघ्र ही 12 सदस्यीय अंतर-मंत्रालयी समिति की अनुशंसाओं के आधार पर राष्ट्रगान के सम्मानपूर्वक गायन के लिए अवसर, परिस्थितियों और कार्यक्रमों के संदर्भ में नए नियम जारी करेगी। उक्त समिति राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 में किसी भी आवश्यक संशोधन की आवश्यकता की भी जांच करेगी ताकि राष्ट्रगान के सम्मान के अर्थ को स्पष्ट किया जा सके। अगली कार्यवाही तक न्यायालय का वर्तमान आदेश प्रभावी रहेगा।
  • केवल एक अच्छा मनुष्य और एक अच्छा नागरिक ही एक सच्चा देशभक्त हो सकता है। इस प्रकार, किसी भी सभ्य समाज का ध्यान अपने देशवासियों को देशभक्त बनने के लिए बाध्य करने के स्थान पर उनके चरित्र निर्माण पर होना चाहिए।

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