दबाव समूहों और हित समूहों के मध्य अंतर

प्रश्न: दबाव समूहों और हित समूहों के मध्य अंतर का वर्णन कीजिए। उदाहरणों को उद्धृत करते हुए, उन तरीकों का सविस्तार वर्णन कीजिए जिनके माध्यम से दबाव समूह भारत में सरकारी निर्णयों और नीति-निर्माण को प्रभावित करते हैं।

दृष्टिकोण

  • दबाव समूहों और हित समूहों का संक्षिप्त परिचय दजिए तथा दबाव एवं हित समूहों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
  • दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली विभिन्न तकनीकों और विधियों का उल्लेख कीजिए। कुछ प्रासंगिक उदाहरण भी दीजिए।
  • उपयुक्त रूप से उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

हित समूह मूल रूप से अपने कुछ हितों को साधने की आकांक्षा रखने वाले लोगों के संगठित समूहों को कहा जाता है। उनका लक्ष्य एक ऐसी नीति हो सकती है जो विशेष रूप से समूह के सदस्यों या समाज के एक वर्ग को ही लाभान्वित करे (जैसेकिसानों के लिए सरकारी अनुदान) या एक ऐसी नीति जो व्यापक सार्वजनिक उद्देश्य (जैसे- हवा की गुणवत्ता में सुधार) को आगे बढ़ाती हो।

दबाव समूह, हित समूहों का एक उप-समूह है। जहाँ हित समूह अपने स्वरूप, फोकस एरिया और संगठन में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं, वहीं दबाव समूह औपचारिक रूप से संगठित होते हैं और राजनीतिक लोगों से जुड़ने पर केन्द्रित होते हैं। जहाँ सभी दबाव समूह हित समूह होते हैं, वहीं सभी हित समूह दबाव समूह नहीं होते हैं।

दबाव समूह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु विभिन्न तकनीकों और विधियों का उपयोग करते हैं। उनमें से सर्वाधिक आम तकनीकें निम्नलिखित हैं:

  • लॉबिंग: इसमें स्वयं के पक्ष में सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने हेतु विधायिका और सरकार के अन्य विभागों में अभिवेदन करना सम्मलित है। उदाहरण के लिए CII और FICCI जैसे संगठन सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए प्रायः ऐसे अभिवेदन प्रस्तुत करते रहते हैं।
  • हड़तालें और प्रदर्शन: इसमें निर्णयन को प्रभावित करने के लिए अहिंसक उपायों का उपयोग सम्मलित है। उदाहरण के लिए, मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा सूचना के अधिकार की मांग के लिए सार्वजनिक सुनवाई, हड़ताल आदि का आयोजन करना।
  • सशरीर प्रदर्शन और हिंसा: इन उपायों का उपयोग कुछ अनियत दबाव समूहों द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए, नक्सलवादियों और उल्फा द्वारा हिंसा का उपयोग।
  • राजनीतिक दलों के साथ जुड़ाव या सम्बद्धता: उदाहरणों में ट्रेड यूनियन, छात्र संघ आदि सम्मलित हैं।
  • प्रचार: मीडिया और अन्य साधनों का उपयोग करते हुए मास डोमेन में सूचना प्रकाशित करके जनमत को प्रभावित करना।
  • पारम्परिक और सामाजिक अवसरंचना का उपयोग: इसमें सांप्रदायिक समूह और धार्मिक निकाय सम्मलित हैं जो सरकार की निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करना चाहते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS), अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऐसे दबाव समूहों के उदाहरण हैं।

दबाव समूहों को अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक अनिवार्य और सहायक तत्व माना जाता है। समाज अत्यधिक जटिल हो गया है और लोग अपने दम पर अपने हितों को आगे नहीं बढ़ा सकते। उन्हें अपने लिए अधिक सौदेबाजी की शक्ति प्राप्त करने हेतु अपने जैसे लोगों के समर्थन की आवश्यकता होती है; यह साझे हितों के आधार पर दबाव समूहों को जन्म देता है।

लोकतान्त्रिक राजनीति में परामर्श और बातचीत के अतिरिक्त थोड़ी सौदेबाजी भी सम्मलित होती है। इसलिए सरकार के लिए परमावश्यक है कि वह नीति-निर्माण और कार्यान्वयन के समय इन संगठित समूहों से भी परामर्श करे।

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