भू-उपयोग के बदलते पैटर्न : बदलते प्रतिरूप के प्रभाव

प्रश्न: भू-उपयोग के बदलते पैटर्न ने संकट (hazards) के आपदाओं में परिवर्तन के जोखिम को किस प्रकार बढ़ा दिया है, उदाहरणों के साथ व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संकटों एवं इनके आपदा में परिवर्तित होने की संभावनाओं की व्याख्या कीजिए।
  • बदलते भूमि उपयोग प्रतिरूप (pattern) की व्याख्या कीजिए।
  • संकटों पर भूमि उपयोग के बदलते प्रतिरूप के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
  • अंत में अपने सुझाव प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

संकट प्राकृतिक परिघटनाएं हैं जो नियमित अंतराल पर घटित होती रहती हैं। नियंत्रण से बाहर हो जाने पर ये आपदाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। हाल के वैज्ञानिक आविष्कारों जैसे संकट निगरानी, पूर्व चेतावनी प्रणाली आदि के उन्नत रूपों ने संकटों के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायता की है, किंतु बदलते भूमि उपयोग प्रतिरूप ने इन संकटों को आपदाओं में परिवर्तित कर दिया है।

शहरीकरण एवं जनसंख्या विस्फोट के कारण भूमि उपयोग प्रतिरूप बदलाव के दौर से गुज़र रहा हैं। आर्थिक विकास के कारण कृषि और वन भूमि का उपयोग औद्योगिक एवं ढांचागत गतिविधियों में किया जाने लगा है। भूमि उपयोग प्रतिरूप में हुए इस बदलाव ने पारिस्थितिकीय परिवर्तनों को बढ़ावा दिया हैं।

जनसंख्या का अधिकतर संकेन्द्रण, संकट प्रवण क्षेत्रों (तटों अथवा बाढ़ के मैदान आदि) के निकट अवस्थित हैं, जिससे शहरी जनसंख्या और भौतिक परिसंपत्तियों पर बाढ़, तूफान, भू-स्खलन, सुनामी आदि का खतरा बना रहता है।

हाल के दिनों में अनेक आपदाएं भूमि उपयोग हेतु जिम्मेदार रही:

  • तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव तेज पवनों और तूफानों के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि, पूर्वी तट पर जलीय कृषि (aquaculture) के लिए मैंग्रोव वनस्पतियों की कटाई से तीव्र तटीय चक्रवातों का खतरा बढ़ गया  है।
  • 2005 में मुंबई की बाढ़ का कारण था वहाँ स्थित समृद्ध मैंग्रोव पारितंत्र को हटाकर खतरनाक निर्माण कार्य करना।
  • 2015 की चेन्नई की बाढ़ तथा बेंगलुरु एवं हैदराबाद की बाढ़ ने यह दिखाया है कि निरंतर लुप्त होती अपवाह प्रणाली पर समुचित ध्यान दिए बिना अव्यवस्थित भूमि उपयोग परिवर्तन ने आपदाओं में प्रमुख योगदान दिया है।
  • समुचित बचाव के उपायों के बिना अनियोजित विकास प्रतिरूप और अनियंत्रित शहरी विस्तार के कारण छोटी घटनाएं भी आपदा में परिवर्तित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए – मुंबई की झुग्गी-झोपड़ियों में आए दिन लगने वाली आग।
  • 2014 में उत्तराखंड और कश्मीर में आई भयंकर बाढ़, नदी तल का अतिक्रमण करने वाली अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों तथा अनियोजित विकास कार्यों का ही परिणाम थी।

इस प्रकार, महत्त्वपूर्ण परिणामों की प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना, 2016 को गंभीरतापूर्वक क्रियान्वित किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इसमें उपचारात्मक उपायों के साथ-साथ सुभेद्यता विश्लेषण की भी बात की गई है।

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