भारत में भूमि सुधारों हेतु किए गए प्रयास

प्रश्न: भारत में भूमि सुधारों हेतु किए गए प्रयासों में न केवल विधि-निर्माण अपितु सरकार से असंबद्ध आंदोलन भी सम्मिलित थे। इस संदर्भ में, भूदान आंदोलन के महत्व का परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भारत में भूमि सुधारों का विधि निर्माण एवं सामाजिक आन्दोलन, दोनों ही दृष्टिकोणों से परिचय दीजिए।
  • भूदान-आन्दोलन के महत्व का विश्लेषण कीजिए।
  • वर्तमान प्रासंगिकता को बताते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तरः

स्वतंत्रता के समय व्याप्त असमानता से निपटने हेतु भारत में भूमि वितरण के प्रारूप को सुधारने के प्रयास किए गए थे। ऐसा सर्वप्रथम 1951 में प्रथम संविधान संशोधन एवं उसके परिणामस्वरूप विभिन्न राज्यों में बनने वाले भूमि वितरण व चकबंदी (सीलिंग) कानूनों के माध्यम से किया गया। इसके अतिरिक्त, 1951 में आचार्य विनोबा भावे द्वारा तेलंगाना में भूदान-आन्दोलन नाम का एक सामाजिक आंदोलन आरंभ किया गया।

यह आंदोलन गाँधीवादी दर्शन पर आधारित था और प्रकृति में अहिंसक था। इसका उद्देश्य संपन्न भू-स्वामियों को उनकी भूमि का एक छोटा-सा भाग भूमिहीनों को स्वेच्छा से देने के लिए तैयार करना था। 

  • भूदान-आन्दोलन का महत्व:
  • इस आंदोलन के माध्यम से 20 वर्षों की अवधि में देश भर में कुल 40 लाख एकड़ भूमि वितरित की गई।
  • इसने भूमि के पुनर्वितरण को प्रोत्साहित किया जिससे कृषि मजदूर भूमि के स्वामी बन सकें। परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • लोगों के मन में इस केंद्रीय विचार को स्थान मिला कि भूमि, पृथ्वी का एक उपहार है एवं इस पर सभी का अधिकार है। 
  • इसने सर्वोदय समाज को प्रोत्साहित किया। सर्वोदय समाज, भारत के सामाजिक ढाँचे को मूल्यों के क्रांतिकारी परिवर्तन के माध्यम से रूपांतरित करने का एक अहिंसक एवं रचनात्मक कार्यक्रम था।
  • समय बीतने के साथ इसने अपना दायरा बढ़ाकर इसमें ग्रामदान आंदोलन को भी सम्मिलित कर लिया जहाँ गाँधी जी के ट्रस्टीशिप के विचार पर जोर दिया गया था।
  • चुनौतियाँ 
  • प्राय: दानदाताओं ने केवल नाम के लिए अपनी बेकार एवं बंजर भूमि दान में दी। इससे इसका वास्तविक उद्देश्य ही भंग हो गया। 
  • लोकतांत्रिक मूल्यों को आत्मसात करवाने की बजाय इसने स्वामी-सेवक संबंधों के पुराने मूल्यों को ही और मजबूत किया।
  •  भूदान का लक्ष्य केवल भूमिहीन ग्रामीणों की सहायता करना था। इसके तहत अर्द्ध-भूमिहीनों अथवा उन ग्रामीणों को सम्मिलित नहीं किया गया जिनके पास छोटा भूमि क्षेत्र था और वे फिर भी जुताई मजदूरों के तौर पर कार्य करते थे।
  •  आगे चलकर, आंदोलन में विभिन्न समस्याएं जैसे धीमी प्रगति, घूसखोरी, फर्जी भूमि का दान किया जाना इत्यादि देखने को मिलीं।

ध्यातव्य है कि भूदान आंदोलन के माध्यम से भूमि सुधारों का सफल कार्यान्वयन एवं भूमि का पुनर्वितरण, कृषि संकट तथा किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दों के समाधान हेतु महत्वपूर्ण है। हालांकि कुछ अभिलेखों के अनुसार दान की गयी 23 लाख एकड़ भूमि का अभी तक वितरण नहीं हो पाया है। कृषि संकट का समाधान करने के लिए इनको शीघ्र वितरित किया जाना चाहिए।

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