केस स्टडीज- भारत में डिजिटल अपवर्जन की सीमा और इसके परिणाम

प्रश्न: आप एक जिले में BPL परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के अंतर्गत खाद्यान्न आवंटन की निगरानी करने हेतु जिम्मेदार प्रभारी अधिकारी है। जिले में BPL परिवारों के एक समूह का दावा है कि अपने BPL कार्ड को आधार कार्ड से न जोड़ने के कारण उन्हें उचित मूल्य की दुकानों से राशन देने से मना कर दिया गया है। उनका कहना है कि सरकार एवं संबंधित अधिकारी उनकी स्थिति से समानुभूति नहीं रखते हैं और वे मौन विरोध प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त इस घटना को देश के अन्य क्षेत्रों में घटित इसी प्रकार की घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है जहां ऐसे ही कारणों से लोगों को PDS से लाभ प्राप्त करने से वंचित कर दिया गया था। इस घटना के कारण सोशल मीडिया नेटवर्कों पर सरकार की अत्यधिक आलोचना हो रही है। अब आप विकट समस्या में फंस गए हैं क्योंकि आपको ज्ञात है कि इन BPL परिवारों को समय पर खाद्यान्न की आवश्यकता है। हालांकि, सरकारी अधिकारी होने के नाते आपको निर्धारित नियमों का पालन भी करना है। मीडिया जाँच से स्थिति और भी बिगड़ गई है और आपको अहसास होता है कि इस मामले में आपको सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना पड़ेगा। उपर्युक्त जानकारी के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए:

(a) दी गई परिस्थिति में शामिल पक्षकारों द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए।

(b) इस परिस्थिति में, नियमों का उल्लंघन किए बिना पीड़ित व्यक्ति की मांगों की पूर्ति सुनिश्चित करने हेतु आप कौन-सा/से कदम उठाएंगे?

(c) इस संदर्भ में, संक्षेप में चर्चा कीजिए कि देश में निर्धन लोग वर्तमान समय में डिजिटल अपवर्जन (बहिष्करण) और इसके परिणाम (मों) का सामना किस प्रकार करते हैं?

दृष्टिकोण

  • दिए गए परिदृश्य की संक्षेप में चर्चा कीजिए और इस मामले में विभिन्न हितधारकों द्वारा सामना किए गए मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • दी गई परिस्थिति में एक प्रभारी अधिकारी के रूप में आपके द्वारा उठाए जाने वाले कदमों का वर्णन कीजिए।
  • भारत में डिजिटल अपवर्जन की सीमा और इसके परिणामों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।

उत्तर

उपर्युक्त परिदृश्य में, प्रभारी अधिकारी द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना है कि पात्र परिवारों को BPL कार्ड को आधार कार्ड से न जोड़ने के बावजूद निर्धारित नियमों का पालन करते हुए PDS योजना के तहत समय पर खाद्यान्न आवंटित किया जाए। यह एक ऐसा मामला है जो समानुभूति मूल्य और वस्तुनिष्ठता/नियमों के अनुसार कार्य करना दोनों को परस्पर विरोधी रूप में दर्शाता है।

(a) इस मामले में विभिन्न हितधारकों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दे निम्नानुसार हैं:

  • विरोध करने वाले परिवार (Protesting families) – क्योंकि वे BPL कार्ड को आधार कार्ड से न जोड़ने के कारण आवंटित खाद्यान्न को खरीद नहीं पाएंगे। वे इस मामले में प्रमुख हितधारक हैं जिनकी चिंताओं को प्राथमिकता के आधार पर हल किए जाने की आवश्यकता है।
  • वृहद् समाज (Larger society) – इसके तहत देश के विभिन्न भागों में समान परिस्थिति के कारण खाद्यान्नों से वंचित रहने वाले परिवारों को शामिल किया गया है। उनकों उनके PDS की पात्रता (PDS entitlements) से वंचित करना पूर्ण रूप से उनके विधिक अधिकारों की अस्वीकृत करना है।
  • मीडिया के माध्यम से सूचित संबद्ध नागरिक (Concerned Citizens, informed through media)-इसमें कुछ आंशिक रूप से सूचित नागरिक भी हो सकते हैं जो इस संबंध में प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाहियों की जानकारी के बिना इस स्थिति को और अधिक भड़का सकते हैं। यह ऐसा समूह हो सकता जिसका हित PDS में लीकेज से लाभ प्राप्त करने में निहित है। यह प्रवृत्ति यथार्थ तथ्यों को भी विकृत कर सकती है और अंततः राज्य के विरुद्ध लोगों को भड़का सकती है।
  • सरकार- चूंकि सरकार PDS योजना के तहत BPL परिवारों को न्यूनतम मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार है। निर्धारित समय सीमा के भीतर खाद्यान्न उपलब्ध न होना, लोगों में सरकार के प्रति विश्वास में कमी कर सकता है।
  • प्रभारी अधिकारी (मैं) – परिवारों को स्वयं के जीवन निर्वाह हेतु खाद्यान्नों की आवश्यकता होती है, हालांकि, उनके पास आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।

(b) इस परिस्थिति में मेरे द्वारा किए जा सकने वाले उपाय निम्नानुसार हैं:

  •  मैं एक ऐसे अधिकारी से अनुरोध करूंगा जिसके पास पूर्व के PDS रिकॉर्ड के आधार पर विरोध करने वाले परिवारों को अस्थायी उपाय के रूप में खाद्यान्न आवंटित करने के विवेकाधीन प्राधिकार प्राप्त है, क्योंकि वे अपनी दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु राज्य के समर्थन पर निर्भर होते हैं। साथ ही, मैं परिवारों को उनके BPLकार्ड को आधार कार्ड से को तत्काल लिंक करवाने हेतु भी कहूंगा, ताकि भविष्य में उनके समक्ष इस प्रकार की समान परिस्थिति उत्पन्न न हो। इस कदम को सुचारु रूप से निष्पादित करने के लिए, मैं पदानुक्रम में उच्च अन्य विभागों से तत्काल आधार पर अधिक मानव और वित्तीय संसाधनों के लिए आग्रह करूँगा ताकि लोगों की सभी चिंताओं का समाधान किया जा सके।
  • मैं अन्य विभाग के अधिकारियों की सहायता से डोर-टू-डोर और सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम का भी शुभारंभ करूँगा और अपने BPL कार्ड को आधार कार्ड के साथ लिंक करवाने के लाभों के संबंध में उन्हें स्मरण कराने और शिक्षित करने का कार्य भी करूँगा।
  • मैं राज्य के अन्य जिलों के प्रभारी अधिकारियों के साथ अपने जिले से सीखे गए सभी संभावित वैकल्पिक कार्यवाहियों और उपायों पर चर्चा करूंगा, ताकि समान परिस्थितियों में समयबद्ध तरीके से अधिक प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।

किसी भी जिले में भूख के कारण होने वाली मृत्यु के लिए जिला प्रशासक प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी होता है। कुछ दस्तावेजों की आवश्यकता, जीवित रहने के लिए आवश्यक मूलभूत आवश्यकताओं को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकती है। ये नियम, व्यवस्था के कामकाज को सरल बनाने हेत निर्मित किए गए हैं। हालांकि, उसी दौरान जब लोगों (विशेष रूप से कमजोर समूह) के लिए नए नियमों को लागू किया जाता हैं तो एक वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए और साथ ही दस्तावेज़ बनाने की प्रक्रिया को तीव्र किया जाना चाहिए।

(c) आर्थिक और सामाजिक अपवर्जन का सामना करने के अतिरिक्त, भारत में निर्धनों को मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं की उच्च लागत के कारण डिजिटल अपवर्जन का भी सामना करना पड़ रहा है, जो कई निम्न आय वाले परिवारों को आवश्यक और वांछनीय दोनों प्रकार की सूचना और ज्ञान तक पहुंच से प्रतिबंधित करता है। अधिकांश लोगों की सूचना तक पहुँच नहीं होती हैं, जो साधन-संपन्न (haves) और साधन-विहीन (have-nots) दोनों ही के मध्य अंतरालों (सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक) में वृद्धि करता है। इंटरनेट एक सशक्त उपकरण है क्योंकि इसमें समानता, निष्पक्षता, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने की शक्ति विद्यमान है। हालांकि, डिजिटल डिवाइड के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन लोगों को अधिकार, पात्रता और अवसरों का लाभ उठाने हेतु सशक्त बनाने के लिए सूचना तक पहुंच के साधन उपलब्ध नहीं है। इसमें PDS योजना के तहत लाभ, मनरेगा के तहत मजदूरी, अन्य प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, जिन्हें वे प्राप्त करने के हकदार हैं आदि सम्मिलित हैं। इसलिए वास्तविक रूप में समावेशी सूचना आधारित समाज की स्थापना के प्रयास में, मौजूदा डिजिटल डिवाइड को कम करने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना को बेहतर और विस्तारित किया जाना चाहिए और संभावित लाभों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।

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