भारतीय स्थापत्य में यूरोपीय देशों के योगदान

प्रश्न: औपनिवेशिक काल में भारत पर पश्चिमी स्थापत्य शैलियों का प्रभाव पड़ा। इस संदर्भ में, उदाहरण देते हुए, भारतीय स्थापत्य कला में यूरोप वासियों के योगदान पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय स्थापत्य में यूरोपीय देशों के योगदान की चर्चा कीजिए।
  • उदाहरणों के साथ पुष्टि कीजिए।
  • पूर्वकथित बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

स्थापत्यकला के शक्ति का प्रतीक बन जाने के कारण यूरोपीय देशों द्वारा भारत का औपनिवेशीकरण किए जाने का स्थापत्य कला पर भी व्यापक प्रभाव परिलक्षित हुआ। उन्होंने भारत को पाश्चात्य स्थापत्य शैली से परिचित कराया तथा भारतीय स्थापत्य कला को समृद्ध किया। पुर्तगालियों और फ्रांसीसियों ने इमारतों एवं उपासना स्थलों का निर्माण अधिकांशतः औपनिवेशिक स्थापत्य शैली में किया। ब्रिटिशों द्वारा भी भारत पर शासन के आरम्भिक काल में इसी नीति का अनुसरण किया गया, हालाँकि बाद में उनके द्वारा औपनिवेशिक शैली का भारतीय शैलियों के साथ संश्लेषण किया गया।

भारतीय स्थापत्य कला में यूरोपीय देशों के योगदान में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पुर्तगाली: स्थापत्य कला पर इनका प्रभाव गोवा, दमन और दीव, दादरा और नागर हवेली इत्यादि में परिलक्षित होता है।
  • पुर्तगाली उपनिवेशवादियों ने अनेक चर्च, कैथेड्रल, बैसिलिका आदि निर्मित करवाए जिन पर पुनर्जागरण, बारोक तथा रोकोको स्थापत्य कला का प्रभाव था। उदाहरणार्थ- पुराने गोवा के चर्च तथा कॉन्वेंट्स, गोवा में बॉम यीशु की बैसिलिका, दीव में संत पॉल कैथेड्रल आदि।
  • पुर्तगालियों द्वारा उपनिवेशित क्षेत्रों में निर्मित पुर्तगाली शैली के आवासगृहों की विशेषताओं में विशिष्ट रूप से बड़ी एवं अलंकृत खिड़कियाँ, बंद बरामदे व ड्योढ़ी, कृत्रिम काष्ठ निर्मित आंतरिक छतें, उज्वल रंगों से रंगी हुई भीतरी दीवारें इत्यादि शामिल हैं।
  • फ्रांसीसी: फ्रांसीसी स्थापत्य शैली पुडुचेरी जैसे पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेशों में वर्तमान में भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
  • फ्रांसीसी ग्रिड पैटर्न, स्पष्ट खंड, लम्बवत गलियाँ, विशाल अहाते पुडुचेरी के ‘ह्वाइट टाउन’ या ‘विले ब्लांच’ (Ville _Blanche) की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
  • फ्रांसीसी शैली की स्थापत्य कला पुडुचेरी की डूमा स्ट्रीट में ‘जॉन ऑफ आर्क की प्रतिमा’, कराईकल में नियो-गॉथिक शैली में निर्मित ‘ऑवर लेडी ऑफ एंजेल्स’ गिरिजाघर, चंद्रनगर के ‘सैक्रेड हार्ट’ गिरिजाघर आदि में प्रकट होती है।
  • फ्रांसीसी शैली के अधिकांश आवासगृहों में फ्रांसीसी प्रकार की शटर युक्त खिड़कियों से सुसज्जित नक्काशीदार तोरण तथा स्तम्भावली दृष्टिगोचर होती है। उनमें ऊंची दीवारें तथा कई आंगन भी होते हैं।
  • ब्रिटिश: भारतीय स्थापत्यकला पर सर्वाधिक स्थायी प्रभाव ब्रिटिश स्थापत्य का पड़ा। उनकी विरासत कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली इत्यादि नगरों में निर्मित इमारतों तथा अवसंरचनाओं में वर्तमान समय में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

उनके शासन के अधीन देखी गई विविध स्थापत्य शैलियों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • नियो-क्लासिकल (नव-शास्त्रीय) स्थापत्य शैली: आरंभ में ब्रिटिशों ने स्थानीय जलवायु तथा परम्पराओं की उपेक्षा कर क्लासिकल तथा नियो-क्लासिकल आदर्शों के माध्यम से अपना प्राधिकार सृजित करने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए, कोलकाता का राजभवन, बंगलौर (बेंगलुरु) का टॉउन हॉल इत्यादि।
  • पल्लड़ियन शैली (पैलेडियन शैली) की स्थापत्य कलाः भारत में इस शैली का आरंभ 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश अधिकारियों ने किया। इसमें सोपानकृत छतों के अनुक्रमण से उभरता हुआ एक विशाल केन्द्रीय बुर्ज होता था। उदाहरण के लिए, लखनऊ में ला मार्टिनियर।
  • विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको: इसमें 19वीं शताब्दी की विक्टोरिया काल की नियो-गोथिक शैली की इमारतें तथा 20वीं शताब्दी की आर्ट डेको इमारतें शामिल हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस विक्टोरिया काल की गोथिक पुनरुद्धार शैली को दर्शाता है। मुंबई की विक्टोरिया और आर्ट डेको समष्टि में ओवल मैदान, न्यू इंडिया एश्योरेंस की इमारत इत्यादि भी सम्मिलित हैं।
  • इंडो-सारसेनिक स्थापत्य कला: 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के उत्तरवर्ती चरण के दौरान औपनिवेशिक स्थापत्य कला पर इंडो-सारसेनिक शैली का प्रभाव परिलक्षित होता है। यह पुनरुद्धार शैली थी जिसमें इंडो-इस्लामिक स्थापत्य, विशेषतः मुगल स्थापत्य कला के साथ यूरोपीय स्थापत्य शैली और हिन्दू शैली के तत्वों को मिश्रित किया गया। यह सार्वजनिक और सरकारी इमारतों तथा देशी रियासतों के शासकों के महलों इत्यादि में प्रतिबिंबित होती है। इसकी कुछ विशेषताओं में कंदाकार गुम्बद, नुकीले मेहराब, गुंबददार छतें, बुर्ज, छोटी मीनारें इत्यादि सम्मिलित हैं। उदाहरणार्थ- दिल्ली का राष्ट्रपति भवन, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल, मुम्बई का गेटवे ऑफ इंडिया आदि।

एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर जैसे लोगों ने नई दिल्ली एवं आस-पास के स्मारकों, यथा इंडिया गेट और संसद भवन इत्यादि के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई थी। इस प्रकार भारतीय स्थापत्य कला में यूरोप वासियों के योगदान की चिरकालिक स्मृति बनी हुई है।

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