भारतीय शहरीकरण के तीव्र विकास : शहरों को संधारणीय एवं आपदा-प्रत्यास्थ बनाने हेतु उपायों का सुझाव

प्रश्न: द्रुत शहरीकरण प्रमुख आपदाओं के प्रति सुभेद्यता को कैसे बढ़ाता है? उदाहरणों के साथ व्याख्या करते हुए, आपदा-प्रत्यास्थ शहरों का विकास करने के उपाय सुझाइए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारतीय शहरीकरण के तीव्र विकास का आंकड़ों सहित परिचय दीजिए।
  • उन आपदाओं को सूचीबद्ध कीजिए जिनके लिए शहरी केंद्र प्रवण हैं।
  • उन आपदाओं के पीछे निहित कारणों को निरुपित कीजिए।
  • शहरों को संधारणीय एवं आपदा-प्रत्यास्थ बनाने हेतु उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत की वर्तमान जनसंख्या का 34% से अधिक भाग शहरी क्षेत्रों में निवास करता है जिसमें 2011 की तुलना में 3% की वृद्धि हुई है। यूनाइटेड नेशन डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल अफेयर्स द्वारा जारी विश्व शहरीकरण संभावनाओं की पुनरावलोकन रिपोर्ट 2018 के अनुसार 2050 तक भारत की शहरी जनसंख्या बढ़कर 52.8% हो जाएगी।

भारतीय शहर विभिन्न प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं जैसे भूकंप, शहरी बाढ़, महामारी, आतंकवादी हमलों, साइबर हमलों आदि के प्रति सुभेद्य हैं। शहरी भारत विशेष रूप से सुभेद्य है क्योंकि:

  • अनियोजित और तीव्र शहरीकरण ने संकुलन को बढ़ावा दिया है जिसके परिणामस्वरूप व्यापक स्तर पर जनहानि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
  • आपदा-प्रत्यास्थ ईमारतों में मानकों एवं संहिताओं का बेहतर तरीके से क्रियान्वयन न किया जाना।
  • शहरी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण अवसंरचना की अवस्थिति कमजोर हो सकती है।
  • कंक्रीट के अत्यधिक प्रयोग तथा आर्द्रभूमियों एवं जल निकासी प्रणालियों के अतिक्रमण के कारण, जल प्रवाह, बाढ़ और शहरी ऊष्मा द्वीप आदि घटनाओं में वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए 2013 में उत्तराखंड में और 2015 में चेन्नई में आयी बाढ़।
  • उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों में अवस्थिति एवं अन्य आपदा के प्रति सुभेद्यता।
  • आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय सरकार के स्तर पर संस्थागत क्षमता एवं पर्याप्त प्राधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का अभाव।
  • जोखिम-प्रवण क्षेत्रों में शहरी गरीबों की बढ़ती संख्या जो आपदाओं के प्रति अधिक सुभेद्य हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में वनों की कटाई, रेत खनन, बाढ़ के मैदानों पर निर्माण जैसी अधारणीय पर्यावरणीय गतिविधियाँ बाढ़ और भूस्खलन को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में केरल में आयी बाढ़।

आपदा प्रत्यास्थता समाज को अत्यधिक हानि और क्षति पहुंचाए बिना आपदा का सामना करने की क्षमता को कहा जाता है। आपदा सुभेद्य शहरों को विकसित करने हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:

  • एक शहरी जोखिम आकलन फ्रेमवर्क के उपयोग के माध्यम से जोखिम एवं आपदाओं का मानचित्रण करना।
  • महत्वपूर्ण एवं बहुउद्देश्यीय सुरक्षित एवं प्रत्यास्थ अवसंरचना योजना के माध्यम से जोखिम को कम करना।
  • आपदाओं के पश्चात तत्काल मौद्रिक तरलता प्रदान करने एवं वित्तीय प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने हेतु वित्तीय-जोखिम योजना विकसित करना उदाहरणार्थ श्रीलंका में इसी प्रकार की योजना को अपनाया गया है।
  • क्षमता निर्माण और प्राधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के पर्याप्त निर्धारण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही स्थानीय स्तर पर सुदृढ़ संस्थानों का निर्माण करना।
  • संगठनों और लोगों के मध्य आपदा संबंधी डेटा को एकत्रित करना, उसे साझा करना और प्रसारित करना।
  • भूमि क्षेत्रीकरण (लैंड जोनिंग), भवन मानकों और अतिक्रमण नीतियों का कठोर क्रियान्वयन।
  • मॉक ड्रिल, प्रशिक्षण आदि के माध्यम से स्थानीय समुदायों की सहभागिता और क्षमता निर्माण करना।
  • संभावित आपदा के पूर्व ही रोकथाम एवं बचाव करने हेतु क्लाइमेट मॉडलिंग, पूर्व चेतावनी प्रणाली, खुफिया/साइबर सुरक्षा उपाय में निवेश करना।

Read More 

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.