भारत में आंतरिक प्रवासन : प्रवासियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौती

प्रश्न: भारत में आंतरिक प्रवासन के स्तर को देखते हुए, प्रवासियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। इस संदर्भ में प्रवासन पर राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में उच्च आंतरिक प्रवास पर आँकड़ें प्रस्तुत करते हुए, प्रवासियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • भारत में प्रवासन पर एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।

उत्तर

आर्थिक सर्वेक्षण 2017 में उल्लेख किया गया है कि 2011-16 के दौरान राज्यों के मध्य होने वाला औसत वार्षिक श्रमिक प्रवास लगभग 9 मिलियन था। भारतीय जनगणना, 2011 के अनुसार भारत में कुल आंतरिक प्रवासियों की संख्या 139 मिलियन थी, जिनमें से 70% महिलाएं थी। इसके अतिरिक्त, 20% से कम शहरी प्रवासियों को पूर्व-निर्धारित नौकरियां प्राप्त हुई और लगभग दो-तिहाई प्रवासी शहर में प्रवेश करने के एक सप्ताह के भीतर नौकरी प्राप्त करने में सफल रहे।

इसके कारण भारत में आंतरिक प्रवास करने वालों के समक्ष अनेक चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं जैसे:

  • स्वास्थ्य एवं जीवन यापन की निम्न स्थिति : प्रवासी श्रमिक असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं और अस्वच्छ और प्रदूषित वातावरण जैसे मलिन बस्तियाँ, फुटपाथ आदि में निवास करते हैं।
  • मनो-सामाजिक विकार : प्रवासी अपने मूल स्थान से स्वयं को पृथक कर लेते हैं और एक नए सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में शामिल हो जाते हैं जो सुदृढ़ सामाजिक समर्थन के अभाव में मनोवैज्ञानिक विकार का कारण बनता है।
  • व्यावसायिक खतरे : प्रवासी श्रमिकों को सामान्यतः 3-D रोजगारों यथा-खतरनाक (dangerous), गंदे (dirty) और अपमानजनक (degrading), में नियुक्त किया जाता है। यह नियुक्ति इन्हें विभिन्न समस्याओं के प्रति सुभेद्य बनाते हैं। उदानिर्माण स्थलों पर कार्य करने वाले श्रमिक सामान्यतः गिरने, मशीनों के कारण घायल होने, अंग-भंग तथा गंभीर चोट लगने जैसी समस्याओं का सामना करते हैं।
  • दस्तावेज़ीकरण और पहचान संबंधी समस्या: दस्तावेज़ीकरण और पहचान की अनुपलब्धता के परिणामस्वरूप अधिकारिता और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच संभव नहीं हो पाती होती है। इसका अर्थ है कि प्रवासी सब्सिडी युक्त भोजन, ईंधन, स्वास्थ्य सेवाओं, बैंकिंग सेवाओं या शिक्षा जैसे विभिन्न प्रावधानों के लाभों से वंचित रहते हैं।
  • राजनीतिक बहिष्कार : निरंतर प्रवासन की स्थिति, प्रवासी श्रमिकों को उनके राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करने से प्रतिबंधित है। परिणामतः वे अपने अधिकारों के लिए राजनीतिक मांग करने में असमर्थ रहते हैं।
  • एजेंटों द्वारा शोषण : प्रवास संबंधी मध्यस्थता ठेकेदारों और बिचौलियों की एक विस्तृत श्रृंखला द्वारा की जाती है जो अनौपचारिक अनुबंधों और गैर-प्रवर्तनीय समझौतों के आधार पर श्रमिकों की सोर्सिंग और भर्ती संबंधी महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
  • महिला प्रवासियों से संबंधित मुद्दे : वे विशेष रूप से उत्पीड़न, कार्यस्थल पर शौचालय सुविधाओं का अभाव, पारिश्रमिक संबंधी भेदभाव, सामाजिक सेवाओं की कमी जैसे मातृत्व लाभ आदि से संबंधित समस्याओं का सामना करती हैं।

प्रवासियों के लिए किए गए अधिकांश नीतिगत हस्तक्षेप वित्तीय सेवाएं प्रदान करने और निर्धनता कम करने की दिशा में लक्षित हैं। हालांकि, विभिन्न प्रेरक कारकों पर आधारित प्रत्यक्ष हस्तक्षेपों अभाव है। ये प्रेरक कारक क्षेत्र के अनुसार भिन्न होते हैं।

इस प्रकार, निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए प्रवासन संबंधी एक व्यापक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है:

  •  प्रवासियों की कार्य परिस्थितियों में और बुनियादी सामाजिक सेवाओं तक पहुंच में सुधार करना।
  • स्थानीय शहरी परिवेश में प्रवासियों के एकीकरण में सहायता प्रदान करना। उदाहरण के लिए एक नियमित प्रवास पूर्वानुमान के साथ शहर योजना का निर्माण करना।
  • प्रवास की लागत कम करना, प्रवासियों के विरुद्ध भेदभाव को समाप्त करने और उनके अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ संकट प्रेरित प्रवासन को कम करना।
  • श्रम बाजार में सरलतापूर्वक प्रवेश को सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित करने हेतु शिक्षा को प्रोत्साहन (स्कूल में ड्रॉप आउट दर को कम करना) और कौशल विकास।
  • प्रेषण के सुचारू प्रवाह और इसके प्रभावी उपयोग को सक्षम करके वित्तीय अवसंरचना में सुधार करना।
  • विभिन्न व्यावसायिक खतरों की जाँच करना और संक्रामक रोगों के प्रचार-प्रसार को नियंत्रित करना।
  • एकल प्रवासियों और परिवार सहित प्रवास करने वाले प्रवासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्योंकि परवर्ती (परिवार सहित) प्रवासियों की अवसंरचनात्मक आवश्यकताएं जैसे आवास, स्वच्छता और स्वास्थ्य देखभाल एकल प्रवासियों की आवश्यकताओं से अधिक होती है।

समग्र रूप से, एक सुदृढ़ नीतिगत संरचना दीर्घ काल तक निरंतर सक्रिय हस्तक्षेप प्रदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्यों जैसे केरल, में संचालित सफल मॉडलों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जा सकता है। केरल सरकार द्वारा अपने 30 मिलियन प्रवासी कामगारों के लिए बीमा और मुफ्त चिकित्सा उपचार प्रदान किया जाता है।

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